उसे पत्थर भी सहने हैं सदा ग़फ़्फ़ार रहना है
जहाँ में अब शरीफ़ों का बड़ा दुश्वार रहना है
कई चेहरे मिलेंगे मुस्कुराहट के नक़ाबों में
बड़ा मुश्किल नक़ाबों में मगर हर बार रहना है
ये धन-दौलत ये तख़्त-ओ-ताज सब अच्छे मगर फिर भी
मुसाफ़िर को क्या इनसे काम उसे दिन चार रहना है
बचो तुम ग़ैर से जब भी जहाँ भी भीड़ में जाओ
कहीं तन्हा रहो तो ख़ुद से भी होशियार रहना है
ख़याल-ए-ख़ाम से उठ रूह की सरगोशियाँ सुनना
ख़ुदा से बात करनी हो तो बे-आज़ार रहना है
भरोसा जब भी करना सोच लेना उम्र भर का है
मोहब्बत खेल अश्कों का सदा तैयार रहना है
वो सीटी दे रही है रेल मुझको कह रही है आ
मुझे बाँहों में कस लो तुम मुझे ऐ यार रहना है