हिंदी – ‘जरुरत सख्ती की’

हिंदी हम सबकी प्यारी है।
हर भाषाओँ से न्यारी है।।
जो सच्चे हिन्दुस्तानी हैं,
वो हिंदी से क्यों डरते हैं?
हिन्दू कहने में गर्व जिसे
वो तो हिंदी पढ़ सकते हैं।।
हिंदी है किसी की शत्रु नहीं,
ये तो अपनों की मारी है।
हिंदी हम सबकी प्यारी है…………..

तमिल, मराठी, गुजराती
चाहे कन्नड या बंगाली।
केंद्र सभी का एक मगर
भाषा की गद्दी है खाली॥
क्षेत्रवाद की राजनीति मे
राष्ट्रवाद सब भूल गए।
संस्कृत पढ़ने वाले बच्चे
भी इंग्लिश स्कूल गए॥
हर देश की अपनी भाषा है
पर भारत मे मक्कारी है।
हिंदी हम सबकी प्यारी है…………..

हैं पैंसठ साल गुजार दिए
हमने कहने और सुनने में।
अब भला नहीं है हिंदी का,
बस खाली बातें करने में।।
हिंदी ने अपना हक़ माँगा
तो सदा उसे धुत्कार मिली।
हक़ मांग के किसको मिल पाया?
हक़ छीनने की जब प्रथा चली॥
विनती कर सबसे देख लिया
सख्ती  की  आई  बारी  है।
हिंदी  हम  सबकी  प्यारी है………….

 

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