बलम भरी मारो पिचकारी, लगाओ न गुलाल

होली
होली

                        प्रभुनाथ शुक्ल 

होली
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अबकी अपुन की होली का सेंसेक्स धड़ाम है। बेचारी पहले ही भंग पीकर औंधे पड़ी है। क्योंकि पूरी दुनिया में मंदी और बंदी छायी है। अपन के मुलुक में भी मंदी, बंदी और गोलबंदी जड़े जमा चुकी है। इस बार की होली कोरोना के डर से खुद लुका- छुपी का खेल खेल रहीं है। मुलुक के बड़े- बड़े स्वनामधन्य बिल में घुस गए हैं।  देवरजी इस बार भौजी के गालों पर गुलाल नहीं मल पाएंगे। लवगुरु में होली के बहाने अपने लवजेहाद की मुराद पूरी नहीँ कर पाएंगे। बलम रसिया तो हिंदुस्तानी पिचकारी से काम चलाएंगे। क्योंकि जान तो सबको प्यारी है न, वह गोरी के गालों पर गुलाल भी नहीँ मल पाएंगे। चीनी पिचकारी से भी तौबा करना होगा। मुआ कोरोना उसमें भी घुस सकता है। कोरोना ने तौबा- तौबा मचा रखा है। संतरी से लेकर मंत्री तक होली से दूर रहने और कोरोना से बचाव के प्रवचन उवाच रहे हैं। हद हो गई भाई। बेचारी गुझिया भी उदास है। उसने भी हड़ताल कर दिया है। मुझको हाथ न लगाओ नहीँ तो कलमूंहा कोरोना मेरी जान पर बनेगा। 
लव गुरुओं के मुंगेरी सपनों पर तुषारापात हो गया है। बेचारों का लव सेंसेक्स बढ़ाने का होली मुख्य और दिलफेंक साधन और समाधान होती है। उस दिन का लाखों लवगुरुओं को बेसब्री से इंतजार रहता है। जिसकी तैयारी महीनों से चलती है। प्रेमिका कि होली को हाईप्रोफ़ाइल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। महीनों से लिस्ट तैयार की जाती है। होली कैसे विश करेंगे इसका भी तरीका अजूबा और ग्लोबल होता है। होली और रोमांस की इसी लवेरिया से ग्रसित अपन के मुलुक में बैंकों को दिवालिया बना दिया। इस तरह के लवेरिया वायरस ने बैंकों के हाथों में कटोरा थमा दिया है। दीवाने अब विदेश में होली मना रहे हैं। बेचारे निवेशक कतारों में खड़े हो कर गुलाल भी नहीं मलवा पा रहे। उनका तो दिवाला निकल गया है। 
शर्मा जी बोले! देखो भाई , मान गए चाइना माल खपाने में गुरुओं का गुरु है। वह बजारबाद का गुरु है। अपन का पड़ोसी बेहद उस्ताद निकला। दुनिया में अभी चाइनीज माल की दीवानी थीं लो अब मुफ्त में कोरोना भी भेंट कर दिया।  बगैर कस्टम ड्यूटी के और जीएसटी के। पूरी दुनिया में तौबा- तौबा मचा है। अपने देश में तो कोरोना ने होली का होला बना दिया है और भाँग का गोला खिला दिया है। साहब , सरकार और सिस्टम सब कोरोन की हूंआ- हूंआ कर रहे हैं। होली को हमजोली बना कमरे बंद कर रहे हैं। यह कैसी गुलेलबाजी है जो अपुन के भेजा में नहीँ धंस रहीं। भाई कुछ भी हो अपन की होली में बोली की गोली तो चलेगी ही। देखिए ! आजकल बोली की गोली का जलवा है। चलो गालों पर गुलाल नही मल पाएंगे लेकिन गुलेल से काम चला लेंगे।
दिल्ली से होली पर गांव आए देवरजी की मायूसी भौजाई से देखी नहीँ गई। वह बोल उठी ! लल्ला परेशानन हो। गालों पर गुलाल नहीँ मल पाओगे तो क्या हुआ। गुलेल तो चला सकते हो। आजकल गुलेल के इश्कबाज खूब हो चले हैं। अरे भाई! छत और गुलेल  तुम्हारी। रंग और रंगबाजी भी तुम्हारी। बस गुब्बारे में रंग गुलाल भरो और गुलेल पर चढ़ा गुब्बारा बम मारो लल्ला। हा- हा- हा ! कैसा है आइडिया। फ़िर तो पानी भरेगा कोरोना। बस ! निशाना सही लगना चाहिए। क्योंकि जब चढ़ी होंगी भंग। उसमें होगा होली का रंग तो गुलेल का निशाना कभी फेल नहीँ होगा। देखो भाई! अबकी होली में ‘कोरोना’ से अजीब सी दिल लगी हो गई है। कवि, साहित्यकार, व्यंगकार, साहब और सरकार सब की जुबान कर चढ़ा है ‘करोना’। देखो देवरजी ! गुलेलबाजी में तुम्हारा कोई सानी नहीँ। वाह! मान गए भौजाई। गुड आइडिया। फ़िर पहला निशाना तो आप पर लगेगा। क्यों नहीँ! देख का रहे हो लल्ला! चढ़ाओ गुलेल, बरसाओ रंग। भगाओ कोरोना। आज बिरज में होली है, हम सब हमजोली हैं। बुरा न मानो होली है।

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