रामस्वरूप रावतसरे
केरल का नाम आते ही जेहन में सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र आते हैं क्योंकि वामपंथी मीडिया ने इन दोनों को हमेशा आदर्श की तरह पेश किया है। लेकिन क्या अब केरल वाकई एक आदर्श राज्य है? असल में सिर्फ पर्दे के पीछे ही नहीं खुले तौर पर भी केरल ड्रग्स के संकट से जूझ रहा है। शहरों से लेकर गाँवों तक केरल का कोई कोना इस समस्या से अछूता नहीं है। ड्रग्स के कारण सैकड़ों जिंदगियाँ तबाह हो चुकी हैं और अनगिनत परिवार टूट गए हैं।
अब तक पंजाब को भारत का ‘ड्रग्स का गढ़’ माना जाता था लेकिन ताजा रिपोर्ट्स केरल की एक भयावह तस्वीर पेश करती हैं। सिर्फ साल 2024 में ही राज्य में 27,700 मादक पदार्थों से जुड़े मामले दर्ज किए गए, जो पंजाब से तीन गुना ज्यादा हैं। पंजाब में इसी अवधि में सिर्फ 9,000 के करीब केस दर्ज हुए। आबादी के लिहाज से देखें तो केरल में हर एक लाख लोगों पर मादक पदार्थों से जुड़े 78 केस सामने आए हैं और यह दर पूरे देश में सबसे अधिक है। राज्य के सभी 14 जिले इस संकट से प्रभावित हैं। 2025 के शुरुआती दो महीनों में ही केरल में 30 हत्याएँ हुईं, जिनमें से आधी ड्रग्स से जुड़ी थीं।
राज्यसभा में 12 मार्च 2025 को पेश किए गए आँकड़ों के अनुसार पिछले तीन सालों से एनडीपीएस एक्ट के तहत सबसे अधिक मामले केरल में ही दर्ज हो रहे हैं। साल 2022 में 26,918 केस, 2023 में 30,715 केस और 2024 में 27,701 केस दर्ज हुए। इसकी तुलना में पंजाब में यही आँकड़े 12,423, 11,564 और 9,025 रहे। महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में भी मामले इतने नहीं हैं। यह साफ इशारा करता है कि नशे से जुड़े अपराधों के मामले में केरल अब ‘हॉटस्पॉट’ पंजाब से कहीं आगे निकल चुका है।
जानकारी के अनुसार सन 1971 में अमेरिका के हाई स्कूल में पढ़ने वाले 5 दोस्तों ने 4 बजकर 20 मिनट का समय अपने ‘गांजा सेशन’ के कोड के तौर पर तय किया था। आधी सदी से भी ज्यादा वक्त गुजरने के बाद यही ‘420 कल्चर’ अब दुनिया भर के युवाओं में फैल चुका है और केरल की नई पीढ़ी भी इससे अछूती नहीं रही। यहाँ के युवाओं के बीच यह ‘420 कल्चर’ अब एक तरह के ‘बगावत के प्रतीक’ के रूप में देखा जा रहा है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, केरल के युवाओं के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर ‘420‘ शब्द वाले हैशटैग और स्लैंग खुलेआम देखे जा सकते हैं। इंस्टाग्राम, स्नैपचौट और फेसबुक पर ‘420’ से जुड़ी मीम्स और वीडियो यह दर्शाते हैं कि किस तरह नशे की संस्कृति को अब कूल बना दिया गया है और यह युवाओं के बीच लोकप्रिय होता जा रहा है। गांजा को अक्सर एक ‘हल्का नशा’ मान लिया जाता है। लेकिन जमीनी हकीकत देखने पर समझ आता है कि यह नशे की लत को बढ़ाता ही जाता है। कई किशोर नशेड़ियों ने अधिकारियों को दिए बयानों में बताया कि उनका नशे की लत का सफर स्कूल के दिनों में दोस्तों के साथ गांजा पीने से शुरू हुआ और फिर धीरे-धीरे यह एमडीएमए , कोकीन और मेथ जैसे खतरनाक ड्रग्स तक पहुँच गया।
एक सरकारी अध्ययन में पाया गया कि केरल के 10वीं कक्षा के 37 प्रतिशत और 8वीं कक्षा के करीब 23 प्रतिशत छात्रों ने कभी न कभी कोई अवैध नशा या इनहेलेंट आजमाया है। इनमें सबसे अधिक प्रचलित गांजा ही है। स्थानीय मीडिया ने इस संकट को ‘उड़ता केरल’ नाम दिया है, ठीक उसी तरह जैसे ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म ने पंजाब के नशे की हकीकत उजागर की थी। अधिकतर मामलों में केरल के युवाओं की नशे की शुरुआत गांजा से होती है लेकिन अब यह आसानी से उपलब्ध भी है। राज्य की पुलिस और एक्साइज विभाग के मुताबिक, आज केरल के बाजार में ‘हाइड्रोपोनिक गांजा’ नाम की एक बेहद शक्तिशाली किस्म फैली हुई है जिसमें टीएचसी का स्तर 40 प्रतिशत से भी अधिक होता है। यह गांजा खेतों में नहीं बल्कि लैब में तैयार किया जाता है और अधिकतर दक्षिण-पश्चिम एशिया से तस्करी करके लाया जाता है। 2022 में ऐसे गांजे की तस्करी लगभग ना के बराबर थी, लेकिन 2024-25 में ही अधिकारियों ने 89 किलो से अधिक गांजा एयरपोर्ट्स पर पकड़ा। 2025 के शुरुआती 7 महीनों में यह जब्ती 129.7 किलो तक पहुँच गई है।
जानकारों की माने तो केरल में नशे की समस्या कोई रातों-रात नहीं आई। इसके पीछे कई गहरे और आपस में जुड़े कारण हैं, जिन्होंने इस राज्य को नशे की लत के प्रति बेहद संवेदनशील बना दिया है। भौगोलिक स्थिति यहाँ वरदान भी है और अभिशाप भी। केरल का 590 किलोमीटर लंबा समुद्र तट अरब सागर से जुड़ा है। यह जहाँ अंतरराष्ट्रीय व्यापार को आसान बनाता है, वहीं दूसरी ओर मादक पदार्थों की तस्करी के लिए एक खुला दरवाजा भी बन गया है। पिछले कुछ वर्षों में तस्करों ने केरल के तटवर्ती अंतरराष्ट्रीय जहाज मार्गों का खुलकर फायदा उठाया है। इसके अलावा, राज्य की नजदीकी बड़े ट्रांजिट हब्स जैसे बेंगलुरु और चेन्नई से होने के कारण यहाँ जमीन के रास्ते बनी नशे की सप्लाई चेन और भी मजबूत हो गई है।
कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, केरल में अब नशे की होम डिलीवरी उसी तरह हो रही है जैसे पिज्जा ऑर्डर किया जाता है। बाइक पर घूमने वाले डिलीवरी एजेंट्स ग्राहकों के दरवाजे तक नशा पहुँचा रहे हैं। कई पेडलर (तस्कर) सुपरबाइक्स पर नकली नंबर प्लेट लगाकर घूमते हैं और शक से बचने के लिए खुद को ‘युवा जोड़ों’ के रूप में पेश करते हैं। इस ‘ई-कॉमर्स स्टाइल’ नशे के धंधे ने पुलिस की नींद उड़ा दी है क्योंकि उन्हें लगातार अपनी जाँच और ट्रैकिंग तकनीक को अपडेट करना पड़ रहा है ताकि इन स्मार्ट तस्करों से निपटा जा सके। सप्लाई चेन के अलावा, केरल के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं ने भी नशे के लिए उपजाऊ जमीन तैयार की है।
जानकारी के अनुसार केरल में बेरोजगारी भी इस समस्या को बढ़ाने वाला बड़ा कारण है। राज्य में हर साल हजारों ग्रेजुएट निकलते हैं लेकिन उनके सपनों के मुकाबले अवसर बहुत कम हैं। कई युवा बिना नौकरी के खाली बैठे रहते हैं और इसी खालीपन को नशा भर देता है। धीरे-धीरे कई लोग खुद नशा बेचने लगते हैं ताकि कुछ कमाई कर सकें। इसके अलावा, केरल से बड़ी संख्या में लोग विदेशों खासकर खाड़ी देशों में काम करने जाते हैं। उनके बच्चे यहाँ अकेले रह जाते हैं। माँ-बाप की गैरमौजूदगी में बच्चों को वही भावनात्मक सहारा और मार्गदर्शन नहीं मिल पाता। ऐसे किशोर अक्सर भावनात्मक खालीपन या विद्रोह के चलते नशे की तरफ मुड़ जाते हैं।
खुफिया एजेंसियों के अनुसार, भारत के कुल नशीले पदार्थों के व्यापार का लगभग 95 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान से जुड़ी डी-कंपनी (दाऊद इब्राहिम सिंडिकेट) के नियंत्रण में है, जो परंपरागत रूप से उत्तर भारत के रास्ते ड्रग्स की सप्लाई करती थी। लेकिन अब केरल इस नेटवर्क का नया ठिकाना बन चुका है। 2024 से राज्य सरकार ने नशे के खिलाफ अपने अभियानों को तेज किया है। ‘ऑपरेशन डी-हंट’ के तहत विशेष दस्तों ने अचानक छापेमारी अभियान चलाए। बताया जाता है कि 22 फरवरी से 1 मार्च 2025 के बीच पुलिस ने 17,256 संदिग्धों की जाँच की, 2,762 एनडीपीएस मामले दर्ज किए और 2,854 लोगों को गिरफ्तार किया। इसी के दौरान, एजेंसियों ने 1.3 किलो एमडीएमए, 153.5 किलो गांजा, और थोड़ी मात्रा में हेरोइन व हैश ऑयल जब्त किया। इसके बाद 11 सितंबर 2025 को पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर छापेमारी की गई, जिसमें 146 गिरफ्तारियाँ और 140 नए केस दर्ज हुए। एमडीएमए और गांजा दोनों बरामद हुए। प्रमुख कार्रवाइयों में अगस्त 2024 में हैदराबाद में एक फार्मा यूनिट के नाम पर चल रही एमडीएमए लैब का भंडाफोड़ और सितंबर 2024 में ओडिशा में गांजा की खेती चला रहे एक केरल निवासी की गिरफ्तारी शामिल थी।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आँकड़ों के मुताबिक, 2022 में केरल में एनडीपीएस कानून के तहत हुई कुल गिरफ्तारियों में से करीब 93.7 प्रतिशत मामले ‘निजी इस्तेमाल’ के थे। लगभग 26,600 गिरफ्तारियों में से केवल 1,660 तस्कर थे जबकि 24,959 लोग ‘कम मात्रा’ में ड्रग्स रखने वाले उपभोक्ता थे। नशे के नेटवर्क इस कानून का फायदा उठाते हैं और वे माल को ‘व्यावसायिक मात्रा’ की सीमा से कम-कम बाँट देते हैं (जैसे 0.5 ग्राम एमडीएमए से कम या 1 किलो गांजा से कम) ताकि गिरफ्तारी होने पर जमानत मिल सके और सजा से बचा जा सके। पुलिस अब फॉलो-अप छापों के जरिए इन छोटी मात्राओं को जोड़कर बड़े केस तैयार कर रही है और सरकार से ‘कम मात्रा’ की परिभाषा पर पुनर्विचार की माँग कर रही है।
जानकारों के अनुसार सकारात्मक बात यह है कि समाज और धार्मिक संगठन भी अब इस संकट से निपटने के लिए आगे आ रहे हैं। नशामुक्ति केंद्रों में अब तक एक लाख से अधिक बाह्य रोगी और हजारों भर्ती मरीजों का इलाज किया जा चुका है। यह एक अच्छी शुरुआत है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि राज्य में नशे की समस्या नियंत्रण में आ रही है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि केरल की नशे की समस्या से निपटने के लिए केवल पुलिसिया कार्रवाई काफी नहीं है। विशेषज्ञों और नीति-निर्माताओं की राय भी यही है कि अब एक सामूहिक प्रयास की जरूरत है। इसका मुख्य उद्देश्य रोकथाम और जागरूकता पर होना चाहिए। क्योंकि अब स्कूल और कॉलेज नशा तस्करों के निशाने पर हैं, इसलिए शैक्षणिक संस्थानों में संगठित नशा-रोधी शिक्षा कार्यक्रम और छात्रों द्वारा संचालित ‘पीयर-एजुकेशन’ मॉडल जरूरी हैं ताकि बच्चे खुद जागरूक होकर साथियों को बचा सकें।
सोशल मीडिया भी युवाओं को नशे से दूर रखने में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। राज्य में अब शिक्षकों और अभिभावकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है ताकि वे नशे की लत के शुरुआती संकेत पहचान सकें। यह शुरुआती रोकथाम किसी भी तरह की लत को बढ़ने से रोकने में मदद करती है। राज्य सरकार ने स्कूलों में ‘रैंडम ड्रग टेस्टिंग’ का प्रस्ताव भी रखा है। यह भले विवादित हो लेकिन यह दिखाता है कि अब खुद सरकार भी मानती है कि नशा शिक्षा संस्थानों के भीतर तक घुस चुका है।
प्रवर्तन एजेंसियाँ अब खासकर एमडीएमए और मेथामफेटामाइन जैसे सिंथेटिक ड्रग्स और बड़े सप्लाई नेटवर्क पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। हालाँकि, हैरानी की बात यह है कि 590 किलोमीटर लंबे तट की निगरानी के लिए फिलहाल सिर्फ एक कोस्ट गार्ड पोत ही उपलब्ध है। राज्य अब स्कैनर, ड्रोन और साइबर मॉनिटरिंग सिस्टम में निवेश कर रहा है ताकि तस्करी और डार्कनेट पर हो रही डील्स पर नजर रखी जा सके।
चिंता की बात यह है कि राज्य में नशामुक्ति की क्षमता माँग के अनुपात में बहुत कम है। सरकारी और निजी साझेदारी के तहत अब तक करीब 1.47 लाख लोगों का इलाज हुआ है लेकिन मानसिक स्वास्थ्य सहायता और पुनर्वास की व्यवस्था अभी भी कमजोर बताई जा रही है। जब तक रोकथाम, शिक्षा और सामाजिक हस्तक्षेप की गति तेज नहीं होती, तब तक ‘नशामुक्त केरल’ का सपना सिर्फ एक नारा बनकर रह जाएगा।
रामस्वरूप रावतसरे