राजनीति

कब तक बचाएंगे मोदी…?

बीजेपी नेताओं की गिरती सा़ख

प्रतिमा शुक्ला

संसदीयबोर्ड के पुनर्गठन के साथ ही बीजेपी एक नई धज में आ गई। नरेंद्र मोदी केनेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ने के फैसले के साथ ही तय हो गया था कि पार्टी में एक नए दौर की शुरुआत होने वाली है। अमित शाह को राष्ट्रीय अध्यक्षबनाने के साथ शुरू हुई परिवर्तन की यह प्रक्रिया नए संसदीय बोर्ड के ऐलानके साथ संपन्न हो गई है। पर गौर करने वाली बात यह है कि बीजेपी के कईनेताओं पर लग रहे आरोपों से कहीं उपचुनाव पर बीजेपी के लिए संकट न खड़ी करदे। अभी हाल ही में बीजेपी नेता संगीत सोम को ‘जेड’ सुरक्षा देकर केन्द्रसरकार ने सांप्रदायिक हिंसा पर मुहर लगा दी।

अब भई गृहमंत्री राजनाथ जी कहते है कि मेरे पुत्र ने घूस नहीं ली, केंद्रीय रेलमंत्री सदानंद गौड़ा जी कहते है कि मेरे पुत्र ने बलात्कार नहींकिया, अब ये किसने क्या किया आईए विस्तार से जानते है…

पहलेतो केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के सुपुत्र पंकज सिंह पर सेना के एकअफसर के तबादले के लिए घूस लेने का आरोप लगा जिसका विडियो क्लिप भी लीक होचुका है। पर वो अलग बात है कि  गृहमंत्री जी इसे महज एक अफवाह बता रहे।

वही दूसरी ओर रेलमंत्री सदानंद गौड़ा के बेटे कार्तिक गौड़ा पर कन्नड़अभिनेत्री मैत्रेयी द्वारा बलात्कार और ठगी के मामला दर्ज कराया गया।अभिनेत्री का कहना है कि उसकी और कार्तिक की शादी ड्राइवर के सामने हुई हैऔर अब वह मां बनने वाली है। अभिनेत्री ने मंत्री के बेटे कार्तिक गौड़ा सेशादी का दावा किया और कहा कि उनके परिवार को उसे बहू के रूप में स्वीकारकरना चाहिए। रेलमंत्री सदानंद गौड़ा ने इसे राजनीतिक साजिश बताया है और कहाहै कि उनके बेटे को फंसाया गया है क्योंकि बाद में पूर्व में अभिनेत्री कारिश्ता कांग्रेस से रहा है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी दिल्ली गैंगरेप को मामूली घटना बताकरसियासी बवाल में फंसे थे। इस पर गैंगरेप की जघन्य घटना में जान गंवाने वालीनिर्भया के माता-पिता ने भी जेटली के बयान की आलोचना की थी। बवाल बढ़ता देखवित्त   मंत्री ने अपनी टिप्पणी के लिए खेद जताया था। उन्होने बयान जारीकर माफी मांगते हुए कहा कि उन्होंने किसी खास घटना का जिक्र नहीं किया थाऔर अपराध को कमतर करने का उनका कोई इरादा नहीं था। उनके बयान को तोड़मरोड़ करपेश किया गया , मुझे खेद है कि मेरे बयान का गलत अर्थ निकाल लिया गया।  मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था।

भाजपा नेता व अल्संख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेप तुल्ला का एकविवादित बयान ने भी तूल पकड़ा जिसमें उन्होने भारत में रहने वाले लोगों कोहिंदू कहने को उचित ठहराया था। बाद में अपने  बयान से पटलकर उन्होने कहा किउन्होंने हिंदी कहा, न कि हिंदू।

भ्रष्ट और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेता हर बार संसद और विधानसभाओं मेंदावे के साथ चुनकर आते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है राजनीतिक दलों का दोहराचरित्र। वे ऐसे प्रत्याशियों को टिकट न देने के वादे तो करते हैं पर चुनावआते ही अपना वादा भूल जाते हैं। इसलिए दागी नेता न सिर्फ विधायिका में, बल्कि मंत्रिमंडल तक में जगह पा जाते हैं। मौजूदा केंद्रीय मंत्रिमंडल कोही लें तो इसमें तेरह ऐसे मंत्री हैं, जिन पर गंभीर आरोप लगे हैं। इनमें सेनितिन गडकरी की कंपनियों पर भी ‘फर्जीवाड़े’ के आरोप लग चुके है पर आज वोकेंद्रीय परिवहन मंत्री बन चुके है। एक निहालचंद मेघवाल पर तो बलात्कारजैसा संगीन आरोप लगा हुआ है, और राजस्थान पुलिस अदालत में ऐसा बयान दे चुकीहै कि उसे इन मंत्री महोदय का कुछ भी पता-ठिकाना मालूम नहीं है। विवाहितासे दुष्कर्म के मामले में केन्द्रीय मंत्री एवं सांसद निहालचंद मेघवाल एवंअन्य का समन तामील कराने के आदेश पुलिस को दिए जा चुके है। इसके अलावा उमाभारती, मेनका गांधी, डॉ. हर्षवर्धन और रामविलास पासवान जैसे सीनियरमंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार आदि से जुड़े कई आपराधिक मामले चल रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने दागियों को मंत्री बनाने के संबंध में प्रधानमंत्रीऔर मुख्यमंत्रियों को जो नसीहत दी है, उसे उनको गौर से सुनना चाहिए। पीएमऔर सारे सीएम कोर्ट की यह सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं हैं, पर वे अच्छीतरह जानते हैं कि अदालत के सुझाव में देश के करोड़ों लोगों की भावनाएं निहितहैं। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद साफशब्दों में कहा कि पीएम और सीएम दागियों को कैबिनेट में शामिल न करें।हालांकि पीठ ने साफ किया कि किसी को मंत्री बनाना प्रधानमंत्री काविशेषाधिकार है और अदालत किसी दागी मंत्री की नियुक्ति कोरद्द नहीं करसकती।

राजनीति का अपराधीकरण हमारे सिस्टम की सबसे बड़ी बीमारियों में से एकहै, जिसके खिलाफ जनता की जंग अर्से से जारी है। न्यायपालिका और निर्वाचनआयोग जैसी संस्थाओं ने भी इसके खिलाफ अपनी सीमाओं में अभियान चलाए हैं।विधायिका में अपराधी तत्वों की मौजूदगी पर रोक के लिए कई कानून भी बने, मगरनिर्णायक जीत अभी सपना बनी हुई है।

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं में कुछ राज्यों केमुख्यमंत्रियों के खिलाफ हुई हूटिंग से जो परिस्थितियां बनी हैं वह देश केसंघीय ढांचे को नुकसान पहुंचा रही हैं। केंद्र-राज्य संबंधों में खटास कीबातें पहले भी सामने आती रही हैं लेकिन ‘हूटिंग’ के चलते संघर्ष की स्थितिबनना खतरनाक है। इस मुद्दे को लेकर राजनीति भी गर्मा गयी है क्योंकि अभी तकहूटिंग उन्हीं राज्यों में हुई है जहां कि जल्द ही चुनाव होने वाले हैं।

हालांकि मोदी अपने नेताओं की साख बचाने में तो लगे है जिसकी पहलउन्होंने सरकारी कार्यक्रम के बहाने विदेश जाकर मौजमस्ती करने पर कईदिशानिर्देश दिए जिससें नेता अपने पद प्रतिष्ठा का दुरूपयोग न कर सके।नेताओं और अफसरों की हरकतों पर मोदी सरकार की पैनी नजर है। सरकारी खजाने कीफिजूलखर्ची रोकने के लिए केंद्र ने अफसरों के विदेश दौरे के लिएप्रधानमंत्री कार्यालय से मंजूरी अनिवार्य कर दी है। अफसरों के विदेश दौरेका पूरा कार्यक्रम संबंधित विभाग की वेबसाइट पर भी अपलोड किया जानाअनिवार्य कर दिया गया है।

जनतंत्र में कानून की धाराओं से कहीं ज्यादा ताकत जनता की नजर मेंहोती है। बेहतर है कि पीएम इस नजर की अनदेखी न करें, और सुप्रीम कोर्ट कीबात रखते हुए कम से कम उस एक मंत्री से तो निजात पा ही लें, जिसके बारे मेंउसके राज्य की पुलिस इतना भी नहीं जानती कि अदालत का सम्मन तक उसके पासपहुंचा सके। जल्दी ही कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनमेंबीजेपी के खिलाफ बड़ा ध्रुवीकरण आकार ले सकता है। देखना होगा कि पार्टी कानया ढांचा उसकी काट किस तरह ढूंढ पाता है। लोकसभा चुनाव में पार्टी कोनौजवानों का जबर्दस्त समर्थन मिला था। अगर सरकार और पार्टी इस वर्ग कीआशाओं-आकांक्षाओं पर खरी उतरी तो मुश्किलें अपने आप हल होती जाएंगी।

बीजेपी राजनीतिक शुचिता की बात बहुत ज्यादा करती है।  देश में लोकपालको मुद्दा बनाकर चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का भी उसने खुलकर समर्थनकिया था। जाहिर है, उसे जनादेश भी मुख्यत: भ्रष्टाचार के खिलाफ ही मिला है।ऐसे में गंभीर आरोपों से घिरे लोगों को कैबिनेट में जगह देकर क्याप्रधानमंत्री इस जनादेश का मखौल नहीं उड़ा रहे हैं? मोदी भी आखिर कब तक अपनेनेताओं का गलतियों पर पर्दा डालते फिरेंगे