राजनीति

इतने झंझावातों के बाद कैसे टिकेंगे मोदी?

सिद्धार्थ शंकर गौतम 

अहमदाबाद, पटना और दिल्ली में कितनी और क्या समानता होनी चाहिए? यही कि तीनों अपने गृहराज्यों की राजधानियां हैं लेकिन इस वक़्त सियासी पारा इन्हीं तीन शहरों में अधिकता से दृष्टिगत हो रहा है| अहमदाबाद में मोदी, दिल्ली पहुंचे केशूभाई पटेल और पटना में बैठे नितीश अपनी-ढपली अपना राग अलाप रहे हैं| इस सियासी समर में किसका सितारा बुलंद होगा यह तो समय के गर्त में छुपा है मगर तीनों की आपसी अदावत ने भविष्य की राजनीति को रोचक बना दिया है| न केवल राज्य की राजनीति वरन राष्ट्रीय राजनीति पर भी इसका प्रभाव पड़ना तय है| संघ के कद्दावर स्वयंसेवक व भाजपा के महत्वपूर्ण रणनीतिकार संजय जोशी को पार्टी से निकलवाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले मोदी का कद राष्ट्रीय फलक पर जिस तेज़ी से बढ़ा उससे दोगुनी तेज़ी से कई कद्दावर नेता मोदी की राह का काँटा बनने को तैयार हो गए हैं| केशूभाई से मोदी की अदावत उस समय की है जब भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें केशुभाई का इस्तीफ़ा दिलवाकर ७ अक्टूबर २००१ को गुजरात की कमान सौंप दी थी| ६ माह बाद हुए गोधरा कांड व उससे उपजे दंगों ने मोदी को अघोषित रूप से हिंदुत्व का नया चेहरा बना दिया| दिसंबर २००२ में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी ने भाजपा को राज्य में स्थापित करवा दिया| इस बीच केशूभाई राजनीतिक परिदृश्य से पूर्ण रूप से अदृश्य रहे किन्तु २००७ में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में उन्होंने मोदी विरोध का झंडा बुलंद किया तो संघ को बीच-बचाव में उतरना पड़ा| केशूभाई दूसरी बार अपमान का घूँट पी कर रह गए| पर अब जबकि काफी कुछ बदल चुका है, मोदी का नाम और कद दोनों सीमाओं में नहीं बंध रहे, संघ मोदी की नकेल कसने के लिए उचित समय का इंतज़ार कर रहा है, केशूभाई वरिष्ठ भाजपा नेताओं को मोदी की हठधर्मिता बताने दिल्ली आए हैं, गुजरात में राजनीतिक रूप से अतिसक्षम पटेल समुदाय मोदी के विरुद्ध होता जा रहा है तो सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि मोदी की राज्य में तीसरी बार सत्ता शीर्ष पर पहुँचने की हसरतों पर किस तरह कुठाराघात लगाए जाने की तैयारी है?

वैसे भी संजय जोशी अध्याय भी अभी खत्म नहीं हुआ है| संजय जोशी ने नरेन्द्र मोदी को राजनीति में स्थापित करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन समय के फेर ने उन्हें मोदी की नज़रों में सबसे बड़ा खलनायक बना दिया| मुंबई में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक और उसके बाद मोदी-जोशी समर्थकों में चले पोस्टर वार से संजय जोशी को संघ के एक बड़े धड़े सहित मीडिया की भी सहानुभूति मिली है| राजकोट में गुजरात भाजपा इकाई की कार्यकारिणी में जोशी के छाए रहने से एकबारगी तो मोदी भी असहज दिखे थे| मोदी को यह अच्छी तरह भान है कि यदि इस बार उन्होंने गुजरात में अपेक्षानुरूप प्रदर्शन नहीं किया तो उसका असर उनकी राष्ट्रीय स्थापत्यता पर पड़ना तय है| इसलिए वे राष्ट्रीय राजनीति में आने को बेकरार हैं| चूँकि गुजरात में संजय जोशी के समर्थकों की कमी नहीं है जो यह मानते हैं कि मोदी ने अपने बढ़ते कद के मद्देनज़र उन्हें किनारे लगाया है, लिहाजा वे जोशी के अपमान का बदला मोदी से अवश्य लेंगे| यानी गुजरात में मोदी को कांग्रेस, केशूभाई तथा जोशी समर्थकों से एक साथ निपटना होगा| यह भी संभव है कि २००७ की भांति इस बार संघ केशूभाई को न मनाते हुए मोदी को ही ठिकाने लगा दे| जिस तरह से केशूभाई ने मोदी के विरुद्ध मोर्चा खोला है उससे यह आभास होता है कि जोशी और संघ केशूभाई को मोहरा बना कर मोदी को आइना दिखाना चाहते हैं, और यदि ऐसा होता है तो यक़ीनन मोदी का राजनीतिक रूप से गुम होना तय है| कुल मिलाकर केशूभाई व संजय जोशी समर्थक दोनों तरफ से मोदी को घेर रहे हैं|

फिर गुजरात ही क्यों, मोदी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता पर भी सवाल उठने लगे हैं| मोदी की विकास पुरुष छवि को दंगों की भयावहता से जोड़ना इसी रणनीति का हिस्सा है| यूँ तो भाजपा भी मोदी को लेकर एकमत नहीं है, अटल बिहारी वाजपई उन्हें राजधर्म का पाठ पढ़ा चुके हैं, दिल्ली चौकड़ी मोदी की दिल्ली उड़ान को रोकने की भरसक कोशिश कर रही है किन्तु एनडीए के लिहाज से देखें तो मोदी की राह में नितीश सबसे बड़ा रोड़ा बन गए हैं| २०११ के बिहार विधानसभा चुनाव में नितीश ने मोदी को राज्य में चुनाव प्रचार में आने से रोककर अपनी ताकत का एहसास करवा ही दिया था, गाहे-बगाहे वे मोदी की सेक्युलर छवि पर भी सवालिया निशान लगाते रहे हैं| हाल ही में उन्होंने यह कहकर सनसनी फैला दी कि एनडीए को अपनी परंपरानुसार २०१४ के लोकसभा चुनाव हेतु प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी की घोषणा करनी चाहिए| नितीश ने प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी हेतु योग्यताओं का पैमाना भी तैयार कर लिया| ज़ाहिर है उस पैमाने में मोदी कहीं से भी फिट नहीं बैठते| जब मोदी का स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक इतना विरोध है तब वे प्रधानमंत्री पद पर कैसे आसीन हो सकते हैं? मोदी ने कभी यह नहीं कहा कि वे प्रधानमंत्री बनने के इच्छुक हैं किन्तु जिस प्रकार उन्होंने अपनी उन्नति की राह में आने वालों को ठिकाने लगाया है, उससे यह सिद्ध होता है कि मोदी निरंकुश शासक की भांति शासन चलाना चाहते हैं जो वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में तो कतई संभव नहीं है| नितीश के बयान के तुरंत बाद शिवसेना द्वारा नितीश का समर्थन किया जाना यक़ीनन भाजपा सहित मोदी का सिरदर्द जरूर बढ़ाएगा| कुल मिलाकर आने वाले दिनों में मोदी को लेकर राजनीति में बबाल मचना तय है|