कविता

मैं

alone-manमैं

चुप रहता हूँ

कुछ भी काम नहीं करता

सिर्फ सपने बुनता हूँ

अकेला दौड़ता रहता हूँ

धूल भरी मेड़ों पर ।

 

मैं

खो जाता हूँ

देर तक कविताओं में

और डूबता-उबरता हूँ

उन कविताओं के स्पंदन में ।

 

मैं

नहीं चाहता हूँ

विष बोना

आदमियत की मिट्टी में ।

 

मैं

यही चाहता हूँ

कि प्रेम की गंगा बहे

हर इन्सान की खून में ।

 

इसलिए

मैं बैठा हूँ

अपने सपनों के मेड़ पर

और बंधन खुलती

आपकी कविताओं के पास ।

मोतीलाल