कविता

मैं शायर तो नही

shayarशहर की और निकल पड़ा हूँ …..

 

मुझमें कोई खास बात नही है

 

मुझमे कोई अंदाज नही है

 

मैं एक अनजान हूँ अनपढ़ हूँ

 

नही आता शब्दों को सहेजना

 

फिर भी राही हूँ …

 

पगड़ी में चलना सिखा

 

शहर की गलियों से अनजान हूँ

 

गाँव की गलियों में कटती है दिन

 

शहर की शोर -गुल से अनजान हूँ

 

मै गाँव का एक अजनबी राही

 

शहर की और निकल पड़ा हूँ …..

 

सर दर्द की गोली …

 

घर से लेकर निकल पडा हूँ

 

दर्द भरी जज्बातों का जज्बा दिल में दबाकर

 

शहर की और निकल पड़ा हूँ …..