‘मैं फिल्म निर्देशक कम और थियेटर निर्देशक ज्यादा हूं’

महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविधालय, वर्धा में त्रिदिवसीय महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का उद्घाटन सुप्रसिद्ध फिल्मकार “गाँधी माई फादर” के निर्देशक फ़िरोज़ अब्बास खान ने किया। इस अवसर पर उनकी फिल्म का प्रदर्शन भी हुआ. उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता विश्वविधालीय के कुलपति विभूति नारायण राय ने की.

फिल्म फेस्टिवल में तीन दिनों तक ओमपुरी, फ़िरोज़ अब्बास खान, सीमा कपूर, अनवर ज़माल, अमित राय, रणजीत कपूर, एल. एडविन, गौतम घोष, संजय झा, की रोड टू मेप, इस्ट टू इस्ट, स्वराज, जब दिन चले न रात चले, स्ट्रिंग्स, ब्राउंड बाई फेथ, सहित कई अन्य फिल्मों का प्रदर्शन होगा. 

इस मौके पर सुप्रसिद्ध फ़िल्मकार और थियेटर निर्देशक फ़िरोज़ अब्बास खान की ललित कुमार और हर्षवर्धन पांडे से विशेष बातचीत-

प्रश्न.1 : इस फिल्म को बनने के लिए आपके मन में विचार कहा से आया?

उत्तर: मैं काफी लम्बे अरसे से थियेटर से जुड़ा हुआ हू. और अभी भी जुड़ा हूं. इस फिल्म को बनाने में मुझे कुछ लोगों ने कहा कि एक फिल्म ऐसी बनाओ, जो थियेटर से एकदम हटकर हो. मैंने इस फिल्म को थियेटर से दूर रखा है. नये तरीके से इस पर रिसर्च किया और नई सोच के साथ मैंने इस पर काम किया.

प्रश्न. 2 : फिल्म को बनने के लिए आपको किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा?

उत्तर : मैंने इस फिल्म को लेकर काफी रिसर्च किया. फिल्म बनाने से पहले हमने देखा कि हमसे कोई गलती तो नहीं हुई, गाँधी जी की कहानी को लेकर जो काम किया उसमें सबसे ज़रूरी था कि जिस व्यक्तित्व को हम महात्मा कह रहे है. आखिर क्यों कह रहे है? उसके पीछे क्या कारण है? एक ऐसा आदमी जिसके पीछे सारा देश खड़ा है या फिर जिसकी एक आवाज़ पर सारा समाज खड़ा हो जाए, मुझे लगता है वही महात्मा है, रिसर्च के लिए में कई बार साउथ अफ्रीका भी गया, जहा मैं कई लोगों से मिला जो गाँधी जी को ही बड़े करीब से जानते थे. वहां के कुछ इतिहासकारों से बातचीत की, जिसके लिए मुझे थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

प्रश्न.3: आपके क्या-क्या स्रोत रहे हैं इस फिल्म के लिए?

उत्तर : मेरे सबसे बड़े स्रोत चंदीलाल दलाल जो गाँधी जी के लेखाकार थे उनकी किताबों को पढ़ा, लीलम बंसाली, हेमंत कुलकर्णी की अनमोल विरासत जैसी की किताबों को भी पढ़ा और महाराष्ट्र के बहुत बड़े इतिहासकार अज़ीज़ फड़के से मैं समय-समय पर बात करता था, रोबेर्ट सेन की बायोग्राफी को लिया ये मेरे स्रोत रहे है इस फिल्म के लिए।

प्रश्न. 4 : फिल्म के किरदारों को लेकर आपकी क्या राय है?

उत्तर : जैसा मुझे लगता है गाँधी के बेटे का रोल अक्षय खन्ना ने जो किया है उनकी अपनी ज़िन्दगी का अब तक का सबसे बेहतरीन किरदार था, महात्मा गाँधी का रोल “दर्शन जरीवाला” ने भी अच्छे से किया, और शेफाली शाह (कस्तूरबा बाई) को इस रोल के लिए कई बार इंटरनेश्नल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड भी मिला है. कुल मिलाकर सभी लोगों ने अच्छा काम किया. इस फिल्म को कई बार नेशनल अवार्ड मिले और इंटरनेश्नल अवार्ड भी मिला, हॉवर्ड विश्विधालीय ने भी इस फिल्म को अवार्ड दिया.

प्रश्न. 5 : वैश्वीकरण के इस दौर में इस फिल्म को लेकर दर्शकों से आप क्या अपेक्षा करते है?

उत्तर : आज के दौर में दर्शकों से मैं क्या उम्मीद करू? वही तय करते हैं कौन सी फिल्म अच्छी है और कौन सी अच्छी नहीं है. ये तो उनके ऊपर है. वो किस तरह की फिल्में देखना चाहते हैं.. देखिए जैसा कहा जाता है कि “लाइफ ब्लो द बेल्ट, बेल्ट इज ब्लो” ये तो आपको तय करना है कि आप जीवन में ब्लो द बेल्ट जाना चाहता है. इस फिल्म को बनाने की लिए मैंने पांच साल तक रिसर्च किया. मेरे लिए ये अपने आप में एक बड़ी बात है.

प्रश्न. 6 : आज के दौर की फिल्मों में जो अशिष्ट भाषा शैली का उपयोग किया जाता है जैसे “देहली बेली ” आपका क्या मानना है?

उत्तर: मेरा मानना है कि थोड़ा बहुत तो चल जाता है. अगर आप ज्यादा अशिष्ट भाषा शैली का उपयोग करते हैं तो उस तरह की फिल्मों को आप अपने परिवार के साथ बैठकर नहीं देख सकते. आज के लोगो में फिल्म देखने का नज़रिया बिलकुल ही बदल गया है. जिसके चलते निर्देशक भी ये तय करने लगे है की आपको क्या चाहिए?

प्रश्न. 7 : थियेटर के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?

उत्तर : देखिए मैंने आपको पहले भी बताया कि मैं फिल्म निर्देशक कम और थियेटर निर्देशक ज्यादा, बालीवुड में आज जितने भी थियेटर के कलाकार काम कर रहे है. मुझे नहीं लगता आज भी कोई उनसे अच्छी कलाकारी में निपुण हो. थियेटर में एक खास बात यह होती है कि इसमें दर्शक आपके प्ले को तुरंत फीडबैक देता है. जबकि फिल्म में ऐसा नहीं है.

प्रश्न. 8 : हबीब तनवीर जी के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?

उत्तर : तनवीर साहब से मेरे काफी अच्छे संबध रहे हैं. आखरी बार जब वे एनएसडी आए तो उन्हें पता चला फ़िरोज़ का प्ले है. तो उन्होंने वो मेरा प्ले देखा. मैंने उस प्ले में रामलाल का रोल किया था, उन्होंने मेरी काफी तारीफ भी की थी. मैं समझता हूं कि तनवीर साहब की तुलना में अब तक न तो कोई थियेटरकार था और न होगा. वो अलग मिजाज़ के थियेटरकार थे.

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