मैं विषपान करता हूं

हर मुस्कान के पीछे,
छिपा होता है एक चीखता हुआ सच।
हर शब्द जो तुम पढ़ते हो,
वो मैंने आँसुओं से लिखा है — स्याही से नहीं।

मैं रोज़ अपने ही अंदर उतरता हूं,
जहाँ उम्मीदें दम तोड़ चुकी हैं,
और फिर वहां से निकालता हूं
एक टुकड़ा कविता का —
जिसे तुम ‘रचना’ कहते हो।

ये कोई कल्पना नहीं,
ये कोई सजावटी गुलदान नहीं,
ये वो काँटा है
जो मैंने हर दिन सीने में चुभोया है —
सिर्फ़ इसलिए कि तुम समझ सको
कि दर्द भी सुंदर हो सकता है।

मैं पुरस्कारों के लिए नहीं लिखता,
मंच की तालियों के लिए नहीं।
मैं लिखता हूं
क्योंकि नहीं लिखूं तो मर जाऊं।
क्योंकि लिखना —
मेरे विषपान का प्रतिकार है।

-डॉ.सत्यवान सौरभ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,045 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress