जैसे चाहूँ, जिसको सौंपूँ!
हो कौन तुम-
मुझ पर लगाम लगाने वाले?
जब तुम नहीं हो मेरे
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?
पहले तुम तो होकर दिखाओ
समर्पित और वफादार,
मैं भी पतिव्रता, समर्पित
और प्राणप्रिय-
बनकर दिखाऊंगी|
अन्यथा-
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?
तुम्हारी ‘निरंकुश’ कामातुरता-
ही तो मुझे चंचल बनाती है|
मेरे काम को जगाती है, और
मुझे भी बराबरी का अहसास
दिलाने को तड़पाती है|
यदि समझ नहीं सकते-
मेरी तड़त का मतलब!
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?

आदरणीय डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ सप्रेम अभिवादन आपका रचना शिक्षा प्रद और प्रसंसनीय है .आपको हार्दिक बधाई ………..
लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर रायगढ़ छत्तीसगढ़
आदरणीय डॉ. पुरुषोत्तम मीणा जी सप्रेम अभिवादन
आपका रचना शिक्षा प्रद एव प्रसंसनीय है विचारणीय है
हार्दिक बधाई …. धन्यवाद …..
महिलाओं मे यौन स्वच्छंदता की वकालत करती यह कविता आज की भोगवादी युवा मानसिकता प्रनिधित्व करती है. मै आने वाले 10 वर्षो मे भारत के नगरिको के यौन आचरण मे बडा परिवर्तन देख रहा हुं. इस परिवर्तन के अपने लाभ है तो खोने को भी बहुत कुछ है.