गजल

अंजुमन में तुम्हारी कमी रह गई

दिल में फिर इक कसक सी चुभी रह गई

तुम न आओगे ये हम को मालूम था
दर पे तिश्ना निगाहें टिकी रह गई

एक आहट जगाती रही रात भर
ग़ालिबन कोई खिड़की खुली रह गई

है छुपी क्या बला ख़त में क़ासिद बता
उँगलियाँ क्यों मेरी काँपती रह गई

जी का खटका उसे आ न जाए कोई
चाँदनी जो बिछी थी बिछी रह गई

देख दीवानगी भँवरे की एक दिन
धूप में नादां नर्गिस खिली रह गई

कह सका कुछ न ‘राज’ अपनी ख़ामोशियाँ
दिल की हर बात दिल में दबी रह गई

राजपाल शर्मा ‘राज’