कविता

पिता है तो लगता परिवार है।

पिता है तो लगता परिवार है।
वरना दुनिया में सब बेकार है।।

पिता है तो सोने में सुहागा है।
वरना सारा परिवार अभागा है।।

पिता परिवार की धन दौलत है।
घर में सब कुछ उसकी बदौलत है।।

पिता परिवार की रीड की हड्डी है।
जैसे शरीर में पीठ वाली हड्डी है।।

पिता बाहर गर्मी में जब जलता है।
तब कही घर का चूल्हा जलता है।।

पिता है तो सारे खिलोने अपने है।
पिता नही है तो ये कोरे सपने है।।

पिता है तो घर में सब सुविधाए है।
पिता नही घर में सब दुविधाए है।।

पिता है तो घर की सजावट है।
बाकी सब तो घर की बनावट है।।

पिता के संचालन से घर चलता है।
वरना घर दुविधा में ही फंसता है।।

पिता परिवार की छत व दीवार है।
वही तो घर का असली चौकीदार है।।

पिता है तो मां का सब श्रंगार है।
पिता है तो बच्चो का सुखी संसार है।

आर के रस्तोगी