आर्थिकी

IMF का क्रॉल लाइक मॉडल: मिथकों से परे भारत की वास्तविक मुद्रा-नीति 

पंकज जायसवाल

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष समय-समय पर अलग– अलग देशों की विनिमय दर व्यवस्थाओं का मूल्यांकन और वर्गीकरण करता रहता है  और बताता है कि कोई देश अपनी मुद्रा को किस प्रकार प्रबंधित कर रहा है। हाल ही में आईएमएफ ने अपनी रिपोर्ट में भारत को “क्रॉल जैसी व्यवस्था” श्रेणी में रखा। इस टिप्पणी ने अर्थशास्त्रियों, निवेशकों और मीडिया में कई सवाल खड़े किए, मसलन क्या यह चिंता की बात है? क्या भारत की मुद्रा व्यवस्था बदल चुकी है? किसी ने इसे C लेवल बोल के ऐसा भ्रम फैलाया जैसे की आईएमएफ से मुद्रा को C ग्रेड में डाल दिया है. इस भ्रम को दूर करने और सच्चाई जानने के लिए जानते हैं क्रॉल जैसी व्यवस्था और स्टेबल पोजीशन में क्या अंतर है? और भारत के लिए कौन-सी व्यवस्था बेहतर है?

लेकिन इन सभी प्रश्नों को समझने के लिए पहले यह समझना आवश्यक है कि आईएमएफ विनिमय दरों का वर्गीकरण कैसे करता है और क्रॉल वास्तव में होता क्या है। क्रॉल जैसी व्यवस्था एक ऐसी विनिमय दर प्रणाली है, जिसमें किसी देश की मुद्रा का मूल्य  धीरे-धीरे, नियमित और नियंत्रित गति से बदलता रहता है। यह बदलाव न तो पूरी तरह 

मुक्त बाजार के हवाले होता है, न ही सरकार इसे स्थिर रखती है बल्कि केंद्रीय बैंक एक अनुमानित गति क्रॉल दर से मुद्रा को धीरे-धीरे अवमूल्यित या धीरे-धीरे मूल्यवृद्धि  करने देता है। इस व्यवस्था का उद्देश्य है मुद्रा में अचानक उथल-पुथल रोकना, वैश्विक झटकों का प्रभाव कम करना, महँगाई और व्यापार संतुलन के  अंतर की भरपाई करना, निर्यात को प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखना. सीधे शब्दों में क्रॉल  व्यवस्था मुद्रा को “नियंत्रित लचीलेपन” के साथ चलने देती है, जैसे किसी ट्रेन को धीमी गति से दिशा बदलने देना, न कि झटके से ब्रेक लगाना या अचानक तेज़ करना। या और सरल शब्दों में समझना है तो जैसे छोटे बच्चे जब क्रॉल करते हैं, वैसा समझिये, जहां आप निगरानी भी बनाये रखते हैं और उसे चलने भी देते हैं, केवल आप यह ध्यान रखते हैं कि उसे कोई चोट ना लगे. चूँकि भारत में विनिमय दर ऐसे ही निगरानी में था, उसे आईएमएफ ने अब अपने यहाँ करेक्ट क्लासिफिकेशन किया है. 

यह आईएमएफ के स्टेबल पोजीशन से कैसे अलग है उसे आगे समझिये। आईएमएफ की परिभाषा में स्टेबल पोजीशन वह व्यवस्था है जिसमें मुद्रा को एक निश्चित दायरे या एक निश्चित रेट पर लंबे समय तक स्थिर रखा जाता है। यहाँ क्रॉल व्यवस्था की  तुलना में लचीलापन कम होता है। क्रॉल व्यवस्थामें जहाँ मुद्रा नियमित और धीरे-धीरे बदलती रहती है वहीँ स्टेबल व्यवस्था में मुद्रा लंबे समय तक एक ही स्तर पर स्थिर रहती है. क्रॉल व्यवस्था में लचीलापन अधिक होता है जबकि स्टेबल व्यवस्था में लचीलापन बहुत कम. क्रॉल व्यवस्था में बाहरी झटकों को धीरे-धीरे बर्दाश्त और सोखने की क्षमता होती है जबकि स्टेबल व्यवस्था में बाहरी झटका  आए तो मुद्रा पर अचानक असर होता है. क्रॉल व्यवस्था निर्यात प्रतिस्पर्धा बनाए रखने में मदद करता है वहीँ स्टेबल में निर्यात महँगा होने का जोखिम रहता है. क्रॉल 

कम रिज़र्व वाले देशों के लिए बेहतर होता है जबकि स्टेबल में निरंतर बचाव हेतु अधिक विदेशी मुद्रा चाहिए रहता है. क्रॉल आर्थिक बदलावों के प्रति अधिक  responsive होता है जबकि स्टेबल व्यवस्था व्यापारिक माहौल स्थिर लेकिन कम  प्रतिस्पर्धी होता है. सारांश में क्रॉल व्यवस्था एक “गतिशील और लचीलापन मॉडल है  जबकि स्टेबल व्यवस्था “स्थिरता के साथ अनुशासन का मॉडल है।

 भ्रम को दूर करने के लिए ये जानना जरुरी है कि दोनों में बेहतर कौन है? तो इसका उत्तर है कि किस व्यवस्था को “बेहतर” कहा जाए, यह देश की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। फिर भी वैश्विक आर्थिक सिद्धांतों और आईएमएफ के शोध के आधार पर  एक स्पष्ट तुलना की जा सकती है।

क्रॉल व्यवस्था बेहतर है जब महँगाई अधिक हो, बाहरी झटके अधिक हों, निर्यात-मुखी अर्थव्यवस्था हो, बाज़ार अस्थिर हो और विदेशी मुद्रा भंडार सीमित हो और मुद्रा को धीरे-धीरे समायोजित करना हो. इसलिए उभरती अर्थव्यवस्थाओं  जैसे कि भारत, इंडोनेशिया, फिलीपींस, बांग्लादेश आदि में क्रॉल  व्यवस्था अधिक टिकाऊ मानी जाती है। वहीँ  स्टेबल व्यवस्था  बेहतर है जब देश छोटा हो और व्यापार मुख्यतः कुछ ही देशों से हो, विदेशी मुद्रा भंडार बहुत अधिक हो,              मुद्रा में स्थिरता बनाए रखना सर्वोच्च प्राथमिकता हो, महँगाई को  नियंत्रण में रखना कठिन हो, वित्तीय विश्वास निर्माण करना हो.

 चूंकि भारत एक विशाल, विविध, जटिल और बाहरी झटकों से प्रभावित होने वाली अर्थव्यवस्था है। भारत निर्यात–प्रमुख क्षेत्रों को बढ़ावा दे रहा है और  धीमी ह्रास निर्यात को प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखती है। भारत वैश्विक तेल कीमतों और डॉलर इंडेक्स के प्रति संवेदनशील है और क्रॉल व्यवस्था इन झटकों का प्रभाव धीरे-धीरे बर्दाश्त और सोख लेती है। फॉरेक्स रिज़र्व मजबूत तो है लेकिन अनंत नहीं है.  भारत को महँगाई और ग्रोथ दोनों संतुलित रखनी होती है. अतः भारत के लिए क्रॉल  व्यवस्था अधिक उपयुक्त है और यह नीति निर्धारण में लचीलापन भी देती है। रिजर्व  बैंक की लॉन्ग टर्म रणनीति  प्रबंधित लचीलापन पर आधारित है, भारत न पूरी तरह फ्लोटिंग है, न पूरी तरह निश्चित आकलित है. भारत का वास्तविक मॉडल एक  व्यवहारिक संतुलन है। इसलिए आईएमएफ का भारत को क्रॉल व्यवस्था कहना वास्तव में भारत के वर्तमान आर्थिक ढांचे के अनुकूल है।

इसलिए आईएमएफ द्वारा ‘क्रॉल जैसी व्यवस्था’ कहना चिंता की बात बिलकुल नहीं है. आईएमएफ का यह वर्गीकरण  कोई चेतावनी या आलोचना नहीं है। यह एक तकनीकी वर्गीकरण है कि किसी देश की मुद्रा व्यवस्था व्यवहार में कैसी दिख रही है।  आईएमएफ का कहना यह नहीं है कि  भारत की मुद्रा अस्थिर है या भारत आर्थिक संकट में है या भारत को सुधार करने की जरूरत है. यह यह कोई डाउनग्रेड है. वास्तव में आईएमएफ ने भारत की मुद्रा नीति को इस रूप में देखा कि चूंकि RBI मुद्रा को धीरे-धीरे समायोजित होने देता है, न ही उसे स्थिर रखता है, न ही पूरी तरह बाज़ार पर  छोड़ देता है इसलिए इसे क्रॉल व्यवस्था कहना ही उपयुक्त होगा. और ऐसा कह कर  आईएमएफ ने अपने स्टडी में सुधार किया है, अपने यहां करेक्शन किया है. भारत को लेकर कोई नेगेटिव कमेंट नहीं किया है.

यह मॉडल वैसे भी आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के लिए सबसे टिकाऊ माना जाता है, इसलिए आईएमएफ की टिप्पणी एक सामान्य, तकनीकी, स्थिर आकलन है, चिंता का विषय बिल्कुल नहीं।

इस तरह की क्रॉल व्यवस्था , आईएमएफ की परिभाषा में सॉफ्ट पेग श्रेणी में आता है, जिसमें करेंसी प्रबंधित तो होती है लेकिन स्थिर नहीं होती। निष्कर्ष यही है कि भारत के लिए आएमएफ़ का यह वर्गीकरण एक सकारात्मक, व्यावहारिक और संतुलित संकेत है. भारत का आर्थिक ढाँचा विशाल, गतिशील, विविध और झटकों से प्रभावित होने वाला है। ऐसे में एक “धीरे-धीरे समायोज्य विनिमय दर” भारत के लिए सही रणनीति है और यही रिजर्व बैंक  अपना रहा है. आईएमएफ का क्रॉल जैसी व्यवस्था कहना भारत की नीति पर विश्वास को दर्शाता है, यह भी दिखाता है कि RBI प्रबंधित हस्तक्षेप और जरुरत के समय करता है अत्यधिक हस्तक्षेप नहीं करता, वह मुद्रा को स्थिर भी रख रहा है और लचीला भी, बाहरी झटकों से मुद्रा की रक्षा भी कर रहा है और निर्यात को प्रतिस्पर्धात्मक भी रख  रहा है. इसलिए क्रॉल व्यवस्था न केवल आधुनिक अर्थशास्त्र में टिकाऊ  है बल्कि भारत के विकासमूलक मॉडल के लिए नीतिगत रूप से सबसे अनुरूप है।

 पंकज जायसवाल