कलाई पर रक्षासूत्र बाँधे फैशन या दिखावा नहीं


rakhi डॉ. दीपक आचार्य

रक्षाबंधन का पर्व रक्षा सूत्र की वजह से मशहूर है और इस दिन रक्षा सूत्र बाँधकर रक्षा और सुकून के पारस्परिक उत्तरदायित्वों को और अधिक प्रगाढ़ता देने के साथ ही बंधु-बांधवों की रक्षा के धर्म का पुनर्ऊर्जीकरण व प्राकट्य का विधान है।

रेशम की डोर सुचालक होती है और इसीलिए प्राचीनकाल से रक्षा सूत्र का अर्थ रेशम की उस छोटी सी डोर से ही लिया जाता रहा है जिसे मंत्रों और भावनाओं से अभिमंत्रित कर कलाई में बाँधा जाता है। अभिमंत्रित और भावनात्मक रूप से सुदृढ़ इस रेशम की डोर का शरीर से सीधा स्पर्श होता है और इस वजह से शरीर की रक्षा होने के साथ ही हमेशा सुकून का अहसास होता है।

लेकिन आजकल राखी या रक्षा सूत्र के नाम पर फैशन का ऎसा अंधा दौर चल पड़ा है कि जिसमें रेशम की डोर गायब हो गई है और उसका स्थान ले लिया है ढेर सारी उन वस्तुओं ने जो कुचालक हैं तथा इनका रक्षा से कोई संबंध नहीं है।

जात-जात की राखियों के बीच आजकल रक्षाबंधन पूरी तरह दिखावा होकर रह गया है जहाँ रक्षा सूत्र या उसके प्रभाव अथवा हृदय की भावनाओं के सारे तत्व समाप्त हो चुके हैं और इनका स्थान ले लिया है महंगी राखियों ने, जिन्हें रक्षा सूत्र की श्रेणी में कभी नहीं रखा जा सकता है।

जो लोग वास्तव में रक्षाबंधन मनाना चाहते हैं, वाकई रक्षासूत्र में विश्वास रखते हों, अपने दिल और दिमाग में भाइयों के प्रति भावना हो, उन सभी को चाहिए कि महंगी और फैशनी राखियों के इस्तेमाल का पागलपन छोड़कर सिर्फ और सिर्फ रेशम की छोटी सी, फुंदे वाली डोर का प्रयोग करें।

जो  बहनें वाकई अपने भाइयों के प्रति प्रगाढ़ रिश्ते रखती हैं वे रेशम की डोर का प्रयोग करती हैं लेकिन जो बहनें सिर्फ भाइयों के नाम पर दिखावा करना चाहती हैं वे फैशनी राखी और महंगी राखी का प्रयोग करती हैं। इस छोटी सी डोर से किसी भी बहन की भाइयों के प्रति दिली श्रद्धा और भावना को अच्छी तरह समझा जा सकता है।

समाज का यह दुर्भाग्य है कि हमने अपने दिल से जुड़े पर्व-उत्सवों और त्योहारों को भी पैसों और फैशन से जोड़ दिया है। जितना ज्यादा दिखावा होता है, जितनी अधिक फैशनी और महंगी चीजें होती हैं, तय मानियें कि उसी अनुपात में आत्मीयता खत्म होती है। जहाँ दिखावा और फैशन है वहाँ संबंध मात्र दिखावा ही होते हैं।

रिश्तों में रुपया-पैसा या संसाधनों के साथ दिखावा आ जाए, तब समझ लेना चाहिए कि यह सब श्रद्धा और भावनाओं की बजाय मात्र औपचारिकता ही है। आखिर बहन और भाई के रिश्तों से जुड़े इस पर्व में हम फैशनी और महंगी राखियां बाँधकर किसे बताना चाहते हैं? जमाने को बताने भर के लिए भाइयों को रेशम की डोर की बजाय खिलौनों की तरह राखियां बांधना अनुचित ही है।

यों भी रक्षा सूत्र के साथ और किसी भी प्रकार की सामग्री वर्जित है। फिर चाहे वह नोट हों, फैशनेबल सामग्री, रबर-प्लास्टिक हो या लौह-लक्कड़ या दूसरी फालतू की वस्तुएं।  रक्षा सूत्र के साथ दूसरी किसी भी प्रकार की सामग्री होने पर रक्षा सूत्र का कोई प्रभाव नहीं होता, उलटे इस सामग्री की वजह से ग्रह-नक्षत्रों की चाल व भाइयों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ सकता है क्योंकि प्रत्येक सामग्री किसी न किसी ग्रह-नक्षत्र से संबंधित होती ही है।

समाज को दिशादर्शन करने के लिए जिम्मेदार धंधेबाज ज्योतिषियों, पंड़ितों और बाबों ने अपने इस धर्म को भुला दिया है और भोग-विलासिता, पैसे कमाने तथा जमीन-जायदादों के फेर में ऎसे पड़े हुए हैं कि धर्म और शास्त्रों की सच्चाई से भी समाज को अवगत कराना छोड़ दिया है। जबकि यह इन लोगों की जिम्मेदारी है जो समाज का खा-पीकर घर भर रहे हैं और समाज को सही रास्ता नहीं दिखा पा रहे हैं।

यही कारण है कि आज कोई सा पर्व-त्योहार और उत्सव हो, समाज मेंं फैशनपरस्ती, आडम्बर और पाखण्ड बढ़ता जा रहा है और समाज दुरावस्था को प्राप्त करता जा रहा है जहाँ धर्म सिर्फ प्रभावशील या धनाढ्य लोगों के लिए ही रह गया है।

रक्षा सूत्र का एकमेव मकसद है रक्षा के लिए ऊर्जाओं से भरी रेशम की वह डोर, जो हमेशा हमारी कलाई के माध्यम से शरीर से स्पर्श करती रहे और इससे शरीर के लिए रक्षा कवच का निर्माण हो। होनी चाहिए सिर्फ रेशम की छोटी सी डोर, ताकि उसमें निरन्तर विद्युत ऊर्जा बनी रहे।

भाइयों को भी चाहिए कि वे फैशन और महंगी राखियों से परहेज करें और अपनी बहनों को भी समझाएं कि आखिर वे उन्हें रक्षा सूत्र बाँध रही हैं या खिलौने।  पुरातन परंपराओं के वैज्ञानिक रहस्यों को समझें और उनका अनुकरण करें।

रक्षाबंधन पर्व पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ ….

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,027 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress