कमलेश पांडेय
इंडिगो संकट दिसंबर 2025 में नई FDTL (फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिट) नियमों के कारण पैदा हुआ, जिसके चलते एयरलाइन ने 1600 से अधिक उड़ानें रद्द कीं, लेकिन सरकार ने तुरंत हस्तक्षेप कर किराए पर कैप लगाया और रिफंड सुनिश्चित किए। दरअसल इस संकट का कारण नई FDTL नियमों से पायलटों की रात्रिकालीन ड्यूटी सीमित हुई, जबकि इंडिगो ने पर्याप्त क्रू भर्ती नहीं की और पतली मार्जिन पर संचालन किया। इससे कैंसिलेशन बढ़े और अन्य एयरलाइंस पर दबाव पड़ा, जिससे दिल्ली-मुंबई जैसे रूट्स पर किराए 5-10 गुना (₹48,000-₹82,000 तक) उछले। इसलिए इंडिगो संकट के दृष्टिगत डायनेमिक प्राइसिंग पर उठते सुलगते सवालों के जवाब चाहिए। आज नहीं तो कल चाहिए और इस गोरखधंधे पर लगाम लगनी चाहिए।
यह ठीक है कि इससे परेशान यात्रियों के हितों के मद्देनजर सरकार ने कार्रवाई की, लेकिन तबतक करोडों के बारे न्यारे हो गए। मसलन DGCA ने इंडिगो को अस्थायी छूट दी, शो-कॉज नोटिस जारी किया, 10% फ्लाइट शेड्यूल कटौती का आदेश दिया और किराए पर कैप लगाए (जैसे 500 किमी के लिए ₹7500)। साथ ही विमानन मंत्री राम मोहन नायडू ने प्रबंधन की विफलता को जिम्मेदार ठहराया, ₹750 करोड़ रिफंड सुनिश्चित किए और सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी।
जबकि इंडिगो के इस अनप्रोफेशनल व्यवहार से भद्र लोगों को हुई क्षति के मुआवजे दिलवाने की व्यवस्था हो, ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाहियों से बचा जा सके।
इसलिए तो लोगों का मानना है कि विफलता का मूल्यांकन होना चाहिए और हो भी रहा है। ऐसा इसलिए कि यह मुख्यतः इंडिगो की आंतरिक गलत योजना और नियमों की अनदेखी का परिणाम है, न कि सरकार की विफलता—क्योंकि सरकार ने संकट बढ़ने पर तत्काल नियंत्रणात्मक कदम उठाए। हालांकि, लंबी अवधि में नियामकीय अनुपालन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी साझा है। यह ठीक है कि इंडिगो की उड़ान कटौती ने कंपनी के शेयर मूल्य में भारी गिरावट लाई, जिसमें 6 दिनों में 16% की कमी दर्ज हुई और 37,000 करोड़ रुपये का मार्केट कैप मिटा। कुल मिलाकर, दिसंबर 1 से 8 तक शेयर ₹5,794 से गिरकर ₹4,923 पर पहुंचे।

जहां तक इसके वित्तीय प्रभाव की बात है तो 10% शेड्यूल कटौती वास्तव में औसतन 2.35% उड़ानों (लगभग 5,600 फ्लाइट्स) की कमी के बराबर है, जिससे राजस्व में ₹1,200-1,400 करोड़ का नुकसान अनुमानित है। HSBC ने FY26-27 EBITDA पूर्वानुमान 4-5% घटाए, जबकि नेट प्रॉफिट में ₹300-500 करोड़ की हानि संभव हो सकता है। UBS ने लागत बढ़ोतरी मानी लेकिन लॉन्ग-टर्म ग्रोथ पर भरोसा जताया। जहां तक बाजार और प्रतिस्पर्धा की बात है तो उड़ान कटौती से एकाधिकार वाले रूट्स (जैसे कोलकाता-हैदराबाद) पर किराए प्रभावित हो सकते थे, लेकिन सरकार ने कैप लगाकर नियंत्रित किया। अन्य एयरलाइंस (एयर इंडिया, अकासा) पर भी शेड्यूल कटौती हुई, जबकि स्पाइसजेट ने बढ़ोतरी की। कुल डोमेस्टिक उड़ानों में कमी से पैसेंजर सुविधा बाधित हुई।
वास्तव में इंडिगो की 10% उड़ान कटौती (लगभग 200-210 दैनिक फ्लाइट्स) से अन्य एयरलाइंस को स्लॉट आवंटन और बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने का अवसर मिला है। हालांकि, कई ने खुद शेड्यूल घटाए, लेकिन स्पाइसजेट को सबसे अधिक फायदा हुआ। जहां तक स्पाइसजेट का लाभ की बात है तो स्पाइसजेट ने विंटर शेड्यूल में 26% उड़ानें बढ़ाईं (1,240 से 1,568 साप्ताहिक), 17 विमानों की जोड़ से क्षमता बढ़ी और इंडिगो के खाली स्लॉट्स का अधिकतम उपयोग किया। इससे यात्रियों की मांग पूरी करने और राजस्व बढ़ाने में मदद मिली जबकि अन्य एयरलाइंस एयर इंडिया, अकासा एयर और अन्य को इंडिगो के 10% हिस्से का बंटवारा मिलेगा, जो फ्लीट क्षमता पर आधारित है। अकासा ने नए पायलट भर्ती से FDTL नियमों का पालन किया, जबकि एयर इंडिया ने घरेलू क्रू बढ़ाया। कुल मिलाकर, बाजार हिस्सेदारी में बदलाव संभव हुआ, लेकिन क्षमता सीमाओं से सीमित लाभ मिला।
यही वजह है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हवाई यात्रा में अप्रत्याशित किराया बढ़ोतरी पर सख्त रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार और DGCA को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने चार सप्ताह में जवाब मांगा और मामले को यात्रियों के हितों से जुड़ा महत्वपूर्ण मुद्दा माना। इस क्रम में कोर्ट की मुख्य टिप्पणियां निम्नलिखित हैं- याचिका में एयरलाइंस की डायनेमिक प्राइसिंग को मनमानी बताया गया, जिससे टिकट कीमतें घंटों में दोगुनी हो जाती हैं। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए पारदर्शी नियम बनाने की मांग पर विचार किया। यदि संबंधित घटनाक्रम पर नजर डालें तो दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इंडिगो फ्लाइट कैंसिलेशन पर किराया 5,000 से 35-40,000 रुपये तक बढ़ने पर केंद्र से सवाल किए। इसके बाद सरकार ने अस्थायी रूप से घरेलू उड़ानों पर अधिकतम किराया कैप किया, जैसे 500 किमी तक 7,500 रुपये निर्धारित किया।
दरअसल, याचिका में एयरलाइंस द्वारा अपनाई गई डायनेमिक प्राइसिंग को मनमानी और उपभोक्ता शोषण वाला करार दिया गया था। इसलिए कुछ मुख्य मांगें की गई हैं जो इस प्रकार हैं- याचिकाकर्ता ने डायनेमिक प्राइसिंग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने या इसे सख्ती से नियंत्रित करने की मांग की, ताकि टिकट कीमतें मांग के आधार पर घंटों में दोगुनी न हो सकें। वहीं पारदर्शी मूल्य निर्धारण नियम बनाने और अधिकतम किराया सीमा तय करने पर जोर दिया गया। यह मांग सुप्रीम कोर्ट में दायर PIL का हिस्सा थी, जिसमें DGCA और केंद्र से हवाई किरायों पर नियमन की अपील की गई। कोर्ट ने इसे स्वीकार कर नोटिस जारी किया।
बता दें कि डायनेमिक प्राइसिंग एक मूल्य निर्धारण रणनीति है जिसमें उत्पाद या सेवा की कीमतें वास्तविक समय में बाजार की मांग, आपूर्ति, ग्राहक व्यवहार और अन्य कारकों के आधार पर बदलती रहती हैं। यह सर्ज प्राइसिंग या डिमांड प्राइसिंग के नाम से भी जाना जाता है, जहां ऊबर जैसी सेवाओं में व्यस्त समय पर कीमतें बढ़ जाती हैं। एयरलाइंस, होटल और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म इसे अपनाते हैं ताकि अधिकतम लाभ सुनिश्चित हो। यह पूरी तरह जायज है क्योंकि यह बाजार अर्थव्यवस्था का हिस्सा है और कंपनियों को प्रतिस्पर्धी रहने में मदद करता है। हालांकि, अत्यधिक उतार-चढ़ाव से उपभोक्ता असंतोष हो सकता है, इसलिए कुछ देशों में नियामक दिशानिर्देश लागू हैं। भारत में भी CCI (कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया) इसकी निगरानी करता है ताकि शोषण न हो।
डायनेमिक प्राइसिंग के मुख्य फायदे व्यवसायों को बाजार की बदलती स्थितियों के अनुसार लाभ बढ़ाने में मदद करते हैं। लाभों की सूची निम्नलिखित है:- पहला, बढ़ा हुआ लाभ: मांग अधिक होने पर कीमतें बढ़ाकर अधिक राजस्व अर्जित किया जा सकता है, जबकि कम मांग पर छूट देकर बिक्री बनाए रखी जाती है। दूसरा, प्रतिस्पर्धी बढ़त: प्रतिद्वंद्वियों की कीमतों के आधार पर तुरंत समायोजन से बाजार में आगे रहना संभव होता है। तीसरा, इन्वेंटरी प्रबंधन: स्टॉक को तेजी से खाली करने या संतुलित रखने में सहायता मिलती है, खासकर खुदरा और ई-कॉमर्स में। चतुर्थ, ग्राहक संतुष्टि: कीमत संवेदनशील ग्राहकों को कम दरें देकर वफादारी बढ़ाई जा सकती है।
डायनेमिक प्राइसिंग के लिए कई प्रमुख डेटा स्रोत आवश्यक होते हैं जो वास्तविक समय में बाजार की गतिविधियों को ट्रैक करते हैं। जहां तक आंतरिक डेटा स्रोत की बात है तो ऐतिहासिक बिक्री डेटा, राजस्व ट्रेंड्स और इन्वेंटरी स्तर जो पिछले पैटर्न बताते हैं। वहीं, ERP/SAP सिस्टम से उत्पाद लागत और स्टॉक जानकारी मिलती है। जहां तक बाहरी डेटा स्रोत की बात है तो प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण और बाजार मांग-आपूर्ति के रुझान से आंकी जाती है। यह ग्राहक व्यवहार, जनसांख्यिकी, सर्वेक्षण और बुकिंग पैटर्न पर आधारित होता है। इसलिए इंडिगो संकट के दृष्टिगत डायनेमिक प्राइसिंग पर उठते सुलगते सवालों के शीघ्र जवाब चाहिए और पूंजीपतियों व नौकरशाहों के मिलीभगत से जारी इस धंधे पर अविलम्ब रोक लगनी चाहिए।
कमलेश पांडेय