कविता

खोए हुए थे इस कद्र चुनावी ख्याल में

-जावेद उस्मानी- poem

खोए हुए थे इस कद्र चुनावी ख्याल में
पता चला ही नहीं क्या कह गये उबाल में
क्या मालूम न था अंजाम बहकने का इस तरह
फंस गये हैं सैय्याद अबके अपने ही जाल में
किस हद तक और जायेंगे अभी कुछ पता नहीं
अभी तो पूरब से निकले सूरज को डुबोते हैं शुमाल में
ऐसे वैसे जैसे भी आज हो जाये उनकी जीत
फिर तो सारे ‘कल ‘ कट ही जाना हैं जवाब सवाल में