शिक्षण संस्थानों में बढ़ती हिंसा और उस पर काबू पाने के उपाय

डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी

शिक्षण संस्थान एक ज्ञानशाला की तरह होती है जहां गुरु ईश्वर के समान पूज्य  होता है। स्कूलों में देश का भविष्य निर्माण होता है। स्कूल की शिक्षा बच्चों में सांस्कृतिक धरोहर का बीजारोपण करती हैं ।

            बीते कुछ ही दिन पहले शिवसागर जिले के एक स्कूल में 11वीं कक्षा के एक छात्र को केमिस्ट्री शिक्षक ने सज़ा के तौर पर कक्षा से बाहर निकाल दिया था । बालक घर गया, अपनी पोशाक बदली ,चाकू लेकर वापस स्कूल आया और स्कूल में प्रविष्ट हुआ. केमिस्ट्री शिक्षक को न पाकर स्कूल के प्रिंसिपल को कक्षा के सभी साथियों के सामने अपने साथ लाए चाकू से गोद डाला। क्यों खेला गया हिंसा का ये खेल? यहीं नहीं प्राप्त जानकारी के अनुसार रक्त रंजित चाकू के साथ उस हिंसक किशोर ने अपनी सेल्फी भी ली और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट भी किया ,इस टैगलाइन के साथ कि मैंने उसे मार डाला ।

     यानी डंके की चोट पर हिंसा और उसकी सार्वजनिक स्वीकृति भी।

       ऐसा नहीं है कि इस तरह की यह पहली घटना हुई है। शिक्षण संस्थानों में हिंसा अक्सर ही सुर्खियों में रहती है। रैगिंग के नाम पर पहले कॉलेज में हिंसा की घटनाएं होती थीं. अब स्कूलों में भी ये घटनाएं आम हो गई हैं । इलेक्शन के दौरान भी इस तरह की हिंसक वारदातें होने की घटनाएं हम पढ़ते सुनते रहते हैं । सच बात तो यह है कि छात्र व शिक्षक और छात्र-छात्र के बीच के रिश्तों में अब राजनीति,आक्रामकता,असुरक्षा और हिंसा प्रविष्ट हो चुकी है ।

        गुरुओं द्वारा अपने गरिमा मय पद को तार-तार करने के किस्से भी हम अक्सर ही पढ़ते सुनते रहते हैं। दरअसल आज शिक्षा एक प्रोफेशन बन चुकी है और गुरु हो या शिष्य या समाज, सब की सोच इस बारे में प्रैक्टिकल बन गई है ।

        यूनिसेफ कहता है हर बच्चे को भयमुक्त होकर स्कूल जाने और सीखने का अधिकार है। जब स्कूल गुणवत्तापूर्ण, समावेशी और सुरक्षित शिक्षा प्रदान करते हैं तो बच्चे सीख सकते हैं । दोस्त बन सकते हैं, सामाजिक परिस्थितियों से निपटने के लिए ज़रूरी कौशल हासिल कर सकते हैं । अच्छी स्थिति में स्कूल बच्चों को आशाजनक भविष्य की राह पर ले जाता है लेकिन अब बदलते सामाजिक माहौल ने, सिमटती दुनियावी संस्कृति ने जब हमारे मन ,मस्तिष्क ,सोच, दृष्टिकोण सबको अपनी चपेट में ले लिया है तो शिक्षण संस्थाओं का माहौल अछूता कैसे रहेगा।

        कुछेक  कारण जिनके चलते स्कूलों में हिंसा होती या हो सकती है …

     पारिवारिक माहौल, यौन दुर्व्यवहार ,स्कूलों में पनपती गैंग संस्कृति ,शाब्दिक दुर्व्यवहार जिसने आत्म सम्मान आहत किया हो, बदमाशी ,मानसिक या भावनात्मक उत्पीड़न, बदसूरत रैगिंग, शारीरिक दंड, सार्वजनिक तौर पर अपमान, सामाजिक व्यावहारिक भावनात्मक कौशल का धीमा विकास या फिर किसी भी तरह की सुरक्षा के खिलाफ आत्मरक्षा की ज़रूरत ।

      बच्चा बड़ा हो या छोटा . हर बच्चे का स्वाभिमान होता है और उस स्वाभिमान की रक्षा, सम्मान होना ही चाहिए। दो वर्ष पूर्व  हमारे मुहल्ले के एक संपन्न व्यवसायी के इकलौता बेटा जो कक्षा 10 का विद्यार्थी था, सिर्फ इसीलिए घर छोड़कर चला गया कि उसकी मां ने उसे होमवर्क न करने के चलते घर के नौकरों के सामने डांट लगा दी थी । राजस्थान के कोटा में हर साल दो-चार नाकामयाब बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं क्योंकि माता-पिता या समाज/ रिश्तेदारों से  तिरस्कार मिलने का भय होता है । नतीजा… औरों के साथ नहीं बल्कि स्वयं के साथ ही हिंसक होकर अपनी जान ले लेते हैं। आज जो किशोर /युवाओं के मन में पनपती हिंसा है ना, इसका जवाब अगर हमने अभी नहीं तलाशा तो हमारे देश का भविष्य दिग्भ्रमित हो जाएगा ।

      बच्चे जो स्कूल या घर में किसी भी तरह की हिंसा का शिकार होते हैं ,उनका व्यवहार या तो पूरी तरह दब्बू वाला होगा या फिर जोखिम भरा, आक्रामक और असामाजिक होगा और वे अपने साथ हुई हिंसा का बदला औरों के साथ हिंसक होकर लेंगे ।

       अकारण कुछ नहीं होता  । हर हिंसा के पीछे कोई ना कोई ड्राइव या ट्रिगर प्वाइंट होता है क्योंकि हिंसा करने वाला बच्चा भी जानता है कि उसका एकेडमिक करियर, उसका भविष्य सब चौपट हो जाएगा । अगर हमारा देश सभी के लिए शिक्षा के लक्ष्य को पाना चाहता है तो स्कूलों का माहौल हिंसा मुक्त, स्वस्थ और सकारात्मक होना ही होगा । इसके लिए ज़रूरी है कि शिक्षक विद्यार्थियों के साथ मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और मानसिक हिंसा करने से बचें यथा अपमानजनक टिप्पणी, किसी छात्र की शारीरिक कमजोरी का उपहास, उन्हें किसी भी वजह से धमकाना ,कठोर दंड ,मारपीट करना, लाते  मारना.. शिक्षकों के इन व्यवहारों की खबरें आए दिन आती रहती है । किसी की पारिवारिक स्थिति या रिश्तों का मज़ाक़ उड़ाना, बच्चों बच्चों में फ़र्क करना, शिक्षकों के इन व्यवहारों से छात्रों के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं । उनमें आक्रोश और मन में शत्रुता के भाव पैदा होते हैं ।शिक्षक- छात्र के बीच के संबंधों की मधुरता ,गुणवत्ता ख़त्म हो जाती है और छात्र कभी-कभी अपने उपहास ,हताशा और अपमान का जवाब हिंसक रूप में दे सकते हैं।

     स्कूल व कालेजों में गोलीबारी या हिंसा का ऐसा उदाहरण है जिसे मीडिया की तरफ से सबसे ज्यादा कवरेज मिलता है। देश के स्कूलों में भी हिंसा प्रविष्ट हो गई है जिसमें इंटरनेट और ओटीटी सीरियल्स का भी काम योगदान नहीं है जिनमें जमकर प्रतिशोध, हिंसा , नफ़रत ,गोलीबारी और स्लैंग शब्दों की भरमार होती है क्योंकि इंटरनेट हर किसी की पहुंच में आ गया है तो हिंसा भी हर दिमाग़ में अपना घर कर रही है और उसका नतीजा हमें स्कूलों में भी देखने को मिल रहा है । भारत में आंकड़ों के अनुसार 2000 से 2017 तक स्कूलों में 37 सक्रिय शूटर घटनाएं हुईं । संयुक्त- राष्ट्र शिक्षा के अधिकार को एक बुनियादी मानव अधिकार मानता है और स्कूल में हिंसा होने से कई बच्चों को उनके  इस अधिकार से वंचित होना पड़ता है ।

        स्कूल का माहौल सकारात्मक ,सुरक्षित और खुशहाल बनने के लिए  हमें इस पर गौर करना चाहिए.

     स्कूलों कॉलेजों में एंटी वायलेंस सेल बनना ही काफ़ी नहीं है. इस सेल के कामों पर नज़र रखी जानी चाहिए और उनका समय-समय पर पुनरावलोकन किया जाना चाहिए ।

      स्कूल के पाठ्यक्रम में मानवाधिकार और शांति शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए।नैतिक शिक्षा हर स्तर पर अनिवार्य रहे और हमारे मार्गदर्शक गुरु स्वयं उनका अनुपालन अपने जीवन में भी करें ।

      कक्षा के नियम सकारात्मक और शिक्षाप्रद होने चाहिए । कक्षा में अनुशासन हो मगर दंडात्मक नहीं, शिक्षाप्रद और सुधारात्मक हो । छात्र के दुर्व्यवहार पर सजा केंद्रित हो  ।

     स्कूलों में ट्रेंड शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं क्योंकि उन्हें ट्रेनिंग के दौरान यह सिखाया जाता है कि हर बच्चा अलग इंडिविजुअल है जिसका अपना आत्मसम्मान है और कोई भी शिक्षक खराब संबोधन या गलत शब्दों से उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुंचा सकता ।

      स्कूलों में बच्चों की काउंसलिंग की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए. अगर किसी बच्चे में किसी तरह की सामाजिक पारिवारिक आर्थिक संवेगात्मक या मनोवैज्ञानिक समस्या है जिसके चलते उसका व्यवहार कक्षा में अलग दिखाई दे रहा है तो सार्वजनिक तौर पर उसकी बेइज्जती करने की बजाय काउंसलिंग रूम में काउंसलर्स के द्वारा उसकी समस्या का समाधान किया जा सके ।

     शारीरिक दंड और हिंसा पर रोक लगाने वाले कानून बनाए जाएं । स्कूलों में आचार संहिता और छात्रों की सुरक्षा के उपाय विकसित किए जाएं। स्कूलों में गोपनीय और सुरक्षित रिपोर्टिंग की व्यवस्था हो जहां बच्चे बेधड़क अपनी किसी भी समस्या का ज़िक्र ,उसकी चर्चा खुलकर कर सके ।

         शिक्षक और स्कूल कर्मचारियों को सकारात्मक अनुशासन, कक्षा प्रबंधन और स्कूलों में होने वाले संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रशिक्षित किया जाए ताकि स्कूल के माहौल को सकारात्मक खुशहाल और शिक्षा के लिए उपयुक्त बनाया जा सके।

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