लेख

भारत देश का नाम ‘महाभारत ‘ से हुआ जिसमें 5 योद्धाओं ने युद्ध मेँ कभी हिस्सा नहीं लिया

चंद्र मोहन 

महाभारत में कई पात्रों ने युद्ध में भाग नहीं लिया लेकिन सबसे कमजोर पात्र जिसने युद्ध में भाग नहीं लिया, वह रुक्मी था। वह विदर्भ के राजा थे और अपनी ताकत के कारण कौरवों और पांडवों दोनों द्वारा अस्वीकार कर दिए गए थे। इसके अतिरिक्त, बलराम ने भी युद्ध से दूर रहने का विकल्प चुना क्योंकि वे दोनों पक्षों से जुड़ते थे और पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध को देखना नहीं चाहते थे।

रुक्मी:

रुक्मी एक कुशल योद्धा था लेकिन उसका अहंकार और अपने चचेरे भाई कृष्ण के प्रति द्वेष के कारण उसे युद्ध में शामिल नहीं किया गया।

बलराम:

 बलराम, कृष्ण के बड़े भाई होने के नाते, दोनों पक्षों के बीच युद्ध में तटस्थ रहना चाहते थे। जब युद्ध अपरिहार्य हो गया, तो उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का फैसला किया।

परशुराम:

परशुराम भी एक शक्तिशाली योद्धा थे जिन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया। उन्होंने त्याग और तटस्थता के अपने व्रत का पालन करने का निर्णय लिया।

महाभारत युद्ध में कई योद्धाओं ने भाग नहीं लिया जिनमें से प्रमुख बलराम और रुक्मी थे। बलराम ने इसलिए भाग नहीं लिया क्योंकि उनके मित्र (दुर्योधन और अर्जुन) दोनों पक्षों में थे, और वे किसी एक का पक्ष लेना नहीं चाहते थे। विदुर और धृतराष्ट्र ने भी भाग नहीं लिया क्योंकि उनके पास युद्ध कौशल नहीं था और वह युद्ध के समर्थक नहीं थे। इसके अतिरिक्त, कुछ अन्य ज्ञानी लोगों ने भी तटस्थता बनाए रखी जैसे परशुराम और उडुपी के राजा, जिन्होंने युद्ध के दौरान भजन का प्रबंध संभाला। 

मुख्य कारण

तटस्थता और शांतिप्रियता:

बलराम:

दोनों पक्षों के मित्रों के बीच फँस जाने के कारण, और शांति और अहिंसा के समर्थक होने के कारण उन्होंने तटस्थता बनाए रखी।

उडुपी के राजा:

उन्होंने युद्ध के दौरान दोनों पक्षों के लिए भोजन की व्यवस्था संभाली और तटस्थ रहे।

शारीरिक अक्षमता या अयोग्यता:

धृतराष्ट्र: जन्म से अंधे होने के कारण वह शारीरिक रूप से युद्ध में भाग लेने में असमर्थ थे।

विदुर: उन्हें युद्ध कला में कोई रुचि नहीं थी और वे बुद्धि और धर्म के मार्ग पर चलते थे।

नैतिक और धार्मिक कारण:

परशुराम: उन्होंने त्याग और तटस्थता के अपने व्रत का पालन किया, भले ही वह युद्ध को समाप्त करने में सक्षम थे।

अन्य कारण:

रुक्मी: वह अपनी बहन रुक्मिणी के विवाह की वजह से कृष्ण से द्वेष रखते थे और युद्ध में हिस्सा लेने में असमर्थता जताई।

महाभारत में अगर पाँच बहुत शक्तिशाली योद्धा (जैसे भीम, अर्जुन, कर्ण, द्रोणाचार्य और भीष्म) शामिल होते तो युद्ध का परिणाम अलग हो सकता था लेकिन यह तय करना मुश्किल है कि कौन जीतता। परिणाम इस बात पर निर्भर करता कि वे किस पक्ष से लड़ते और युद्ध के दौरान वे किस रणनीति का इस्तेमाल करते।

अगर वे पांडवों की ओर से लड़ते तो कौरवों के लिए जीतना बहुत मुश्किल होता लेकिन फिर भी संभव था।

अगर वे कौरवों की ओर से लड़ते तो पांडवों के लिए जीतना और भी मुश्किल हो जाता। यह संभव है कि युद्ध लंबा चलता और पांडवों को भारी नुकसान होता।

कुछ योद्धाओं के अलग-अलग पक्ष लेने के कारण युद्ध के नतीजे और भी अप्रत्याशित हो सकते थे। 

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि महाभारत के युद्ध का परिणाम पहले से ही तय था क्योंकि यह भगवान कृष्ण की योजना के तहत हुआ था। इसके अलावा, युद्ध में भाग लेने वाले सभी योद्धाओं को एक ही समय में जीवित रहना संभव नहीं था क्योंकि युद्ध में बहुत से लोग मारे गए थे।

महाभारत युद्ध जीतने के बाद इसका कोई नया नाम नहीं रखा गया था बल्कि इसके मूल नाम, जय संहिता (या जय), का ही उल्लेख मिलता है। युद्ध के बाद, पांडवों ने हस्तिनापुर का राज्य संभाला और युधिष्ठिर राजा बने जबकि यह ग्रंथ अपने मूल नाम “जय” के साथ ही लोकप्रिय रहा जो बाद में “भारत” और फिर “महाभारत” कहलाया। 

मूल नाम: महाभारत का मूल नाम ‘जय’ था जिसे महर्षि वेदव्यास ने रचा था। इसमें शुरुआत में लगभग 8,800 श्लोक थे।

विस्तार और नाम परिवर्तन:

बाद में इसका विस्तार किया गया और यह ‘भारत’ कहलाया, जिसमें 24,000 श्लोक थे। इसके बाद ही इसे ‘महाभारत’ कहा जाने लगा।

युद्ध के बाद की स्थिति:

युद्ध में जीत के बाद, युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने। राज्य का कार्यभार युयुत्सु जैसे लोगों को सौंपा गया।

ग्रंथ का नाम:

इन सब घटनाओं के बावजूद, ग्रंथ का नाम ‘महाभारत’ ही रहा, जो ‘जय’ का ही एक विस्तृत रूप था।

भारत का नाम महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में उल्लिखित राजा भरत के नाम पर पड़ा था। महाभारत के समय में, पूरे उपमहाद्वीप को एक ही राज्य के रूप में नहीं, बल्कि कई जनपदों या गणराज्यों में विभाजित किया गया था। पौराणिक ग्रंथों में विभिन्न संख्याओं का उल्लेख मिलता है, जैसे अंगुत्तरनिकाय में १६ जनपद और हरिवंश पुराण में १८ महाराज्य बताए गए हैं। 

भारतवर्ष और राजा भरत

नाम की उत्पत्ति:

 महाभारत और पुराणों के अनुसार, शकुंतला और राजा दुष्यंत के पुत्र भरत एक चक्रवर्ती सम्राट थे जिन्होंने पूरे भारतवर्ष को जीतकर अपने नाम पर इस भू-भाग का नाम “भारतवर्ष” रखा।

यह एक साम्राज्य था. राजा भरत ने एक राजनीतिक इकाई का गठन किया, जो भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में फैला था। 

महाभारत काल के राज्य/जनपद

कुल संख्या: महाभारत के समय में, भारत को एक एकल राज्य नहीं माना जाता था, बल्कि इसे कई छोटे गणराज्यों या जनपदों में विभाजित किया गया था।

संख्या का उल्लेख:

अंगुत्तरनिकाय: यह बौद्ध ग्रंथ भगवान बुद्ध से पहले के 16 महाजनपदों का उल्लेख करता है।

हरिवंश पुराण: यह ग्रंथ 18 महाराज्यों का उल्लेख करता है।

उदाहरण: इन जनपदों में से एक का नाम कंबोज था, जो कि बाद में भारत का एक हिस्सा बना। 

अन्य प्राचीन नाम

भारतवर्ष: यह सबसे प्राचीन और व्यापक रूप से स्वीकृत नाम था, जिसका अर्थ “भारत की भूमि” है।

जम्बूद्वीप: यह बौद्ध और जैन ग्रंथों में पाया जाता है और ब्रह्मांड विज्ञान के अनुसार सात महाद्वीपों में से एक है।

·         आर्यावर्त: “आर्यों की भूमि” के अर्थ वाला यह नाम मुख्य रूप से प्राचीन वैदिक काल में उत्तरी भारत के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

·         प्रांत: 17 प्रांत थे।

·         रियासतें: लगभग 565 रियासतें थीं।

·         कुल इन दोनों को मिलाकर अविभाजित भारत का निर्माण होता था। 

वर्तमान भारत

राज्य: वर्तमान में भारत में कुल 28 राज्य हैं और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं। 

चंद्र मोहन