भारत डेड नहीं, एक जीवंत और सनातन अर्थव्यवस्था


पंकज जायसवाल

भारत केवल एक भूगोल नहीं बल्कि एक निरंतर सभ्यता है। इस सभ्यता का मूल चरित्र सनातन है जिसका अर्थ है सस्टेनेबल, शाश्वत, स्थायी, निरंतर और अनश्वर। यही विशेषता भारत की अर्थव्यवस्था में भी परिलक्षित होती है। भारत की अर्थव्यवस्था हमेशा से जीवंत (Vibrant) और रेजिलिएंट रही है क्योंकि इसकी जड़ें प्रकृति, सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक मूल्यों में गहराई से पैठी हुई हैं। इसका आधार सनातन अर्थशास्त्र रहा है. भारत का चरित्र हमेशा से प्रकृति संरक्षण और पारिस्थितिकीय संतुलन को महत्व देता रहा है। धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवहार में यह स्पष्ट दिखता है पेड़ों की पूजा, नदियों का सम्मान, कृषि और लोकल उत्पादन का प्रोत्साहन, ये सब भारत के आर्थिक डीएनए का हिस्सा हैं।

भारतीय समाज में उत्सवधर्मिता एक अद्वितीय तत्व है। हर मौसम में त्योहार, हर महीने कोई न कोई आयोजन, यह न केवल सांस्कृतिक पहचान है बल्कि यह अर्थव्यवस्था के निरंतर गतिशील रहने का रहस्य भी है। शादियों और त्योहारों का मौसम भारत की अर्थव्यवस्था में नियमित अंतराल पर नई जान फूंकता है। यही कारण है कि यहां मंदी का असर भी सीमित रहता है। यदि कोई कहता है कि भारत की इकॉनमी डेड इकॉनमी है तो वह भारत के सनातन अर्थचरित्र को नहीं समझता। भारत सदियों तक आत्मनिर्भर रहा है और आज भी सर्व-सक्षम है। वर्तमान भारत आज भी एक वाइब्रेंट इकॉनमी है. आजादी के बाद के बीते
75 वर्षों में भारत ने लंबा सफर तय किया है, गरीबी, लाइसेंस राज और आयात निर्भरता से निकलकर अब भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। 2027 तक भारत के तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है। यह बदलाव इस बात का प्रमाण है कि भारत एक वाइब्रेंट, ग्रोथ-ड्रिवन और इनोवेटिव इकॉनमी है।

अगर भारत की अर्थव्यवस्था जीवंत नहीं होती तो इतनी विदेशी कंपनियां भारत में निवेश नहीं करतीं। ग्लोबल ब्रांड भारत में आकर अपना माल नहीं बेचते । डेड होती इकॉनमी में कोई अपनी दुकान नहीं खोलता . भारत आज भी फास्टेस्ट ग्रोइंग इकॉनमी है. आज भारत दुनिया के सबसे बड़े और सबसे आकर्षक बाजारों में से एक है। विदेशी निवेशकों को मालूम है कि भारत को नजरअंदाज करना असंभव है। यह अब केवल बाजार नहीं, अवसरों का केंद्र भी है. जीसीसी का खुलना इस बात का प्रमाण है. मेक इन इंडिया और पीएलआई योजनाओं से भारत ने मैन्युफैक्चरिंग में बड़ी छलांग लगाई है। डिजिटल पेमेंट में भारत दुनिया का नेतृत्व कर रहा है। UPI एक वैश्विक मॉडल बन गया है और कई देश इसे अपना रहे हैं। रुपे कार्ड, आधार, डिजिटल इंडिया पहल ने भारत को टेक्नोलॉजी-संचालित अर्थव्यवस्था बना दिया है।

भारत की जीवंत अर्थव्यवस्था के सात स्तंभ हैं. पहला सनातन अर्थचरित्र, प्रकृति, संस्कृति और सस्टेनेबिलिटी पर आधारित मॉडल। दूसरा उत्सवधर्मिता, त्योहार और शादियों से निरंतर आर्थिक प्रवाह। तीसरा डेमोग्राफिक डिविडेंड दुनिया का सबसे बड़ा युवा कार्यबल। चौथा नवाचार और स्टार्टअप बूम, हर महीने नए यूनिकॉर्न, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम। पांचवां डिजिटल इंडिया, 1 बिलियन से अधिक इंटरनेट यूजर्स, UPI, आईटी सेक्टर का वैश्विक नेतृत्व। छठा सस्टेनेबल और सबसे तेज ग्रोथ । सातवां  वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भूमिका “चीन प्लस वन” स्ट्रेटेजी में भारत सबसे बड़ी पसंद।

अभी हमें इस ताकत और अवसर को कॅश करने के लिए स्वदेशी उपभोग को बढ़ाना है और भारतीय कंपनियों और ब्रांड्स को वैश्विक पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभानी है। हमें रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर निवेश बढ़ा ज्यादा से ज्यादा पेटेंट हासिल करना है। अपने हर खोज, विधि और प्रोसेस का पेटेंट हासिल करना है. वैल्यू-एडेड मैन्युफैक्चरिंग में दुनिया में नेतृत्व हासिल करना है। शिक्षा, स्किल और टेक्नोलॉजी में निवेश को प्राथमिकता देनी है।  भारत का भविष्य सुरक्षित है क्यूंकि दुनिया की ग्रोथ स्टोरी का केंद्र आज भारत केवल 1.4 अरब उपभोक्ताओं का देश नहीं बल्कि 1.4 अरब क्रिएटर्स और इनोवेटर्स का देश है. बस हमें इसे दृष्टि दिशा और नेतृत्व देना है।

भारत एक वाइब्रेंट, रेजिलिएंट और इनोवेटिव इकॉनमी है जो आने वाले दशक में ग्लोबल ग्रोथ इंजन बनने की राह पर है। भारत का चरित्र सनातन है. यह कभी डेड हो ही नहीं सकता और यही उसे सस्टेनेबल बनाता है। भारत न केवल जिंदा है बल्कि आने वाले समय में दुनिया की सबसे शक्तिशाली आर्थिक कहानी लिखने के लिए भी तैयार है। हमें इस इबारत को लिखने के लिए ताली बजाना है. हौसला नहीं गिराना है.

अंत में मेरी तरफ से सिर्फ एक सलाह है कि भारत के बैंकों और नियामकों को यह ध्यान रखना है कि अगर कोई कंपनी या ब्रांड अच्छा कर रही है, गोइंग कंसर्न है तो उसे मरने नहीं देना है, उसे प्रोत्साहित करना है. पूर्व में देखा गया है कि भारत के बहुत से ब्रांड प्रमोटरों की गलती से बंद हो गए क्यूंकि बैंकों ने प्रमोटरों की गलती की सजा कंपनी को दे दी. यहां सरकार की तरफ से एक सहायता भारत के उभरते ब्रांड और कॉर्पोरेट को चाहिए कि अगर उनका ब्रांड और बिज़नेस सस्टेनेबल है तो कार्रवाई ऐसी हो कि दोषियों को सजा तो मिले लेकिन ब्रांड और कंपनी जीवित रहे. एक कंपनी और ब्रांड में निवेश सिर्फ पूंजी का नहीं होता, उसके हजारों कर्मचारियों और सप्लाई चेन इकोसिस्टम में लगे प्लेयर का होता है. दोषी को सजा देने के चक्कर में हम इन्हें न मारें. बस इतना हो जाए तो भारत और भारत के ब्रांड दुनिया में तहलका मचा देंगे.  

पंकज जायसवाल

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