राजनीति शख्सियत

मोदित्व की ओर बढता भारत

Narendra-Modiअमिताभ त्रिपाठी

इस माह के आरम्भ में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को सम्बोधित करने के बाद गुजरात के मुख्यमन्त्री और देश के सर्वाधिक चर्चित राजनेता नरेन्द्र मोदी ने दो अन्य सम्बोधन किये हैं। एक सम्बोधन उन्होंने अपनी पार्टी की अन्तरराष्ट्रीय शाखा के सौजन्य से अमेरिका में बसे प्रवासी भारतीयों के मध्य किया और दूसरा सम्बोधन उन्होंने एक टीवी समूह द्वारा आयोजित कार्यक्रम में देश की राजधानी में किया।

अमेरिका के एक बिजिनेस स्कूल व्हार्टन में मुख्य वक्ता के रूप में आमन्त्रित कर फिर कुछ प्रायोजित विरोध के चलते गुजरात के मुख्यमन्त्री को जब सम्बोधित करने से रोक दिया गया तो उसके कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अमेरिका के प्रवासी भारतीयों को सम्बोधित किया। गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेंद्र मोदी सदैव कहते हैं कि वे हर चुनौती को एक अवसर में परिवर्तित करने में विश्वास करते हैं और यही कुछ व्हार्टन स्कूल के मामले में हुआ । उन्हें सम्बोधित करने से रोकने का स्कूल का निर्णय मोदी के लिये कहीं अधिक लाभदायक रहा और उनके पक्ष में जो गोलबंदी हुई उससे उन लोगों के मकसद को गहरा धक्का लगा जो मोदी को देश में और देश से बाहर एक विवादित छवि का व्यक्ति सिद्ध करना चाहते थे। इस पूरे प्रकरण ने मोदी को देश का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बना दिया जिसका अपमान देश का अपमान माना जाता है। यह कहना अतिशियोक्ति न होगी कि यदि आज मोदी को इतनी लोकप्रियता मिली है तो उसका श्रेय तथाकथित सेक्युलर और वामपंथी उदारवादियों के गठबंधन को जाता है जिन्होंने कि तर्क और बहस से परे पूर्वाग्रह की नयी परिभाषा गढ दी और मोदी का विरोध करते हुए इतना आगे निकल गये कि अब पीछे आने का कोई रास्ता ही नहीं शेष है।

व्हार्टन स्कूल की घटना के बाद मोदी का अनिवासी भारतीयों के मध्य भाषण एक कौतूहल और उत्सुकता का कारण बन गया। इस अवसर का लाभ उठाकर मोदी ने एक दृष्टा के रूप में स्वयं को विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव परिवार के प्रतीक के सहारे भारत की आध्यात्मिक परम्परा और उसमें निहित सहअस्तित्व को रेखाँकित कर दिया और पश्चिम में बसे भारतीयों को सांस्कृतिक महत्ता का आभास करा दिया। साथ ही अमेरिका की शैली में देश को आगे रखते हुए पहले देश की भावना के आधार पर सेक्युलरिज्म की नयी बहस को जन्म दिया।

अनिवासी भारतीयों के मध्य दिया गया मोदी का भाषण पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिये नहीं था वरन उस नेता का था जो स्वयं को देश के सर्वोच्च पद के लिये मानसिक रूप से तैयार कर चुका है। हिंदुत्व को वास्तव में जीवन दर्शन के रूप में प्रस्तुत कर उसका सनातन आध्यात्मिक परम्परा के रूप में विस्तार किसी को भी प्रभावित करने के लिये पर्याप्त था। इसके साथ ही भारत को विश्व में स्थान दिलाने के लिये दृष्टि का दर्शन भी इस भाषण में हो रहा था।

अनिवासी भारतीयों को सम्बोधित करने के बाद गुजरात के मुख्यमन्त्री ने राष्ट्रीय राजधानी में एक टीवी समूह के कार्यक्रम में एक अलग प्रकार की श्रेणी की जनता को सम्बोधित किया । इस भाषण में कुछ बातें पूरी तरह स्पष्ट थीं। नरेंद्र मोदी को इस बात का आभास हो गया है कि देश की जनता उनके साथ है और वर्तमान नैराश्य की स्थिति में उनमें ही आशा की किरण देख रही है और यही कारण है कि मोदी अब अपनी लोकप्रियता

का आनंद उठा रहे हैं। अपने पूरे भाषण में उनमें जो सहजता दिखी वह इस बात का प्रतीक है कि पूरे एक दशक तक प्रशासन के अनुभव ने उनमें आत्मविश्वास का संचार किया है और उन्हें यह लगता है कि जो कुछ उन्होंने गुजरात में किया है वह सब कुछ वे बडे क्षितिज पर भी कर सकते हैं।

दूसरी सबसे बडी बात है कि अपने ऊपर थोपी गयी छवि को लेकर उनमें कतई हीनभावना नहीं है और भारत जैसी अत्यन्त प्राचीन संस्कृति के जननेता होने का जो अभिमान होना चाहिये वह उनमें झलकता है और यही वह विशेषता है जो उन्हें अन्य नेताओं से अलग करती है।

दिल्ली में मोदी ने अपने भाषण में जो संकेत दिये उससे स्पष्ट है कि शासन व्यस्था को लेकर उनकी दृष्टि पूरी तरह स्पष्ट है। जनसंघ की पुरानी आर्थिक लाइन जो कि सरकार के कम से कम हस्तक्षेप और अधिकाधिक निजीकरण पर जोर देती है उसे लेकर मोदी के मन में किसी प्रकार की दुविधा नहीं है। कहना न होगा कि मोदी और अटल बिहारी वाजपेयी में एक मूलभूत अंतर है कि अटल बिहारी वाजपेयी के पास प्रशासन का अनुभव न होने के कारण वे अनेक बार सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लाने में दबाव का शिकार हो जाते थे । जैसे अर्थव्यवस्था के स्तर पर देखें तो अनेक बार भाजपा ने मुक्त अर्थव्यवस्था और निजीकरण के रास्ते पर जाते हुए दबाव के चलते समाजवादी मार्ग का अनुसरण कर लिया। मोदी इस विषय में स्पष्ट दिखते है कि प्रजा का कल्याण और निजीकरण में कोई विरोधाभास नहीं है।

मोदी ने अपने भाषण से एक प्रमुख बात की ओर संकेत किया कि वे भ्रष्टाचार का मूल कारण ब्यूरोक्रेसी पर सत्ताधारी दल का नियंत्रण, कमीशनखोरी और उद्योग समूहों से राजनीतिक दल के लिये आर्थिक सहायता के बदले उन्हें उपकृत करने की प्रवृत्ति में देखते हैं।

मोदी ने रेल घाटे को कम करने के लिये तीर्थ स्थलों पर सभी धर्मावलम्बियों के लिये परिक्रमा रेल चलाकर धन कमाने का फार्मूला दिया तो रक्षा बजट कम करने के लिये आयात होने वाले रक्षा उपकरणों का भारत में ही निर्माण करने और उन्हें बाहर के देशों में भेजने की योजना पर कार्य करने की आवश्यकता जताई।

मोदी के भाषण में उनकी विदेश नीति की दृष्टि की झलक भी थी। मोदी पहले भी अनेक बार संकेत दे चुके हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि वे भारत को न केवल दक्षिण एशिया वरन समस्त एशिया के साथ एक नया गुट स्थापित करने का स्वप्न देखते हैं। चीन के प्रति उनकी वह धारणा नहीं दिखती जिसे अमेरिका प्रचारित करना चाहता है और वे एशिया के देशों सहित यूरोपियन संघ के साथ भी मधुर सम्बंध स्थापित कर अमेरिका को संतुलित रखना चाहते हैं।

गुजरात में पिछले वर्ष सम्पन्न हुए चुनावों के बाद उनके आलोचक और अनेक समीक्षक यह कहते थे कि मोदी अभी गुजरात से बाहर कभी आये नहीं हैं और अनेक ऐसे मुद्दे हैं जिनपर उनकी सोच देखना शेष है। अब सभी को यह मान लेना चाहिये कि मोदी ने एक दशक के अपने प्रशासनिक अनुभव से बहुत कुछ सीख लिया है और आर्थिक, प्रशासानिक , विदेश नीति से लेकर पर्यावरण सहित अनेक मुद्दों पर उनकी स्पष्ट राय है। मोदी एक नयी विचारधारा लेकर सामने आ रहे हैं जो कि परम्परागत दक्षिण , वाम और समाजवादी विचारधारा से परे वास्तविक रूप में भारत की सनातन परम्परा पर आधारित है ।