विविधा समाज

भारतीय जनसंख्या और मुस्लिम समुदाय

population प्रेरणा चतुर्वेदी

भारतीय सभ्यता विश्व की उन दो महान सभ्यताओं में से एक है जो अति प्राचीन काल में उदित हुईं और अर्वाचीन काल तक प्रायः निर्बाध प्रवाहित होती रहीं हैं। भारत का भौगोलिक क्षेत्र चीन, यूरोप अथवा अमेरिका जैसा विस्तृत नहीं है। परन्तु सभ्यता के विकास के लिए आवश्यक प्राकृतिक साधनों की प्रचुरता अन्यों की अपेक्षा यहां अधिक है। आधुनिक काल में भारत की जनसंख्या विश्व के प्रायः समस्त अन्य भागों की जनसंख्या के अनुरूप ही तीव्रता से बढ़ी है, तथापि यहां प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि चीन अथवा यूरोप की अपेक्षा अधिक है। अपनी विलक्षण साधन सम्पन्नता के कारण ही भारतवर्ष अपने सीमित भौगोलिक विस्तार पर विश्व के विशालतम जनसमुदाय का भरण-पोषण करता रहा है।

भारतीय जनसांख्यिकी के संबंध में सूचना का प्रमुख स्त्रोत दसवर्षीय जनगणनाएं हैं। ये जनगणनाएं गत प्रायः 130 वर्षों से नियमित रूप से की जाती रही हैं। भारत में जनगणना का कार्य सन् 1871 में प्रारंभ हुआ। परन्तु भारतवर्ष के प्रायः सम्पूर्ण क्षेत्र पर एक ही समय पर समकालिक जनगणना करवाने का कार्य प्रथमतः 1881 में हुआ। सन् 1881 से अब तक भारत संघ वाले भाग में दसवर्षीय जनगणनाएं नियमित रूप से की जाती  रही हैं।

सन् 1911 से सन् 1921 में भारत में जनसंख्या में कमी आयी क्योंकि इस समय देश में फैले हैजा, महामारी, पलेग के कारण बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए। सन् 1921 से जनसंख्या में वृद्धि प्रारंभ हुई किन्तु सन् 1931 से सन् 1941 तक जनसंख्या लगभग स्थिर रही। सन् 1941  से सन् 1961  के बीच महत्वपूर्ण अन्तर है क्योंकि सन् 1947 भारत-पाक विभाजन के बाद एक बड़ी संख्या में लोग पाकिस्तान से भारत आये। सन् 1961 में भारत की जनसंख्या 43 करोड़ थी जो वर्ष 2001 में बढ़कर 102 करोड़ और अप्रैल 2010 तक 1.18 अरब हो गयी।

भारत में समय-समय पर जनसंख्या से संबंधित आंकड़ों को कई प्राकृतिक प्रकोपों एवं युद्धों ने प्रभावित किया जैसे सन् 1918 में महामारी फैली, प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध हुए। सन् 1943 में दुर्भिक्ष पड़ा, 1947, 1971 में भारत-पाक-चीन संघर्ष हुए फिर भी ऊंची जन्म दर एवं अन्य कारणों से जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती रही। भारत का कुल क्षेत्र 32,80,4 वर्ग किलोमीटर है। भारत एक विशाल भूखण्ड है, जिनमें प्रान्तीय आधार पर जनसंख्या संबंधी अनेक विषमताएं देखने को मिलती हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान सबसे बड़ा राज्य है, परन्तु जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश, वर्ष 2001 में केरल में जनघनत्व 819, बंगाल में 903, नागालैंण्डमें 103, राजस्थान में 165 और अरुणाचल प्रदेश में केवल 13 का। केन्द्रशसित प्रदेशों दिल्ली जनसंख्या में 9,340 और चण्डीगढ़ में 7, 900 जनघनत्व ।

भारतीय जनसंख्या के परिवर्तित हो रहे धार्मिक स्वरूप का भारत के संघ इतिहास पर गहन प्रभाव पड़ा। जनसंख्या की धर्मानुसार विविधता भारतीय उपमहाद्वीप पर व्याप्त विभिन्न संघर्षों एवं तनावों का प्रमुख कारण बनी। सन् 1881 ईसवीं की प्रथम जनगणना के समय कुल जनसंख्या का 79 प्रतिशत भारतीय धर्मावलंबी थे, इनमें से 95 प्रतिशत हिन्दू थे। जनसंख्या का शेष प्रायः 21 भाग अन्य धर्मावलंबियों का था, जिनमें से 96 प्रतिशत मुस्लिम थे। भारतीय जनसंख्या का इस प्रकार मुख्यतः हिन्दुओं और मुसलमानों में विभाजित होना, भारतीय इतिहास की अपेक्षाकृत अर्वाचीन घटनाओं की जनसंख्यिकी परिणति थी।

भारत वर्ष में भारतीय धर्मावलंबियों का अनुपात प्रायः एक सौ वर्षों में तीव्र ह्रास हुआ है। यद्यपि देश के उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में तमिलनाडू के मध्य फैले विस्तृत क्षेत्र के समस्त राज्यों में भारतीय धर्मावलंबियों का अनुपात 85 प्रतिशत, तथा उत्तर-पश्चिम के पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य भारत के मध्य प्रदेश, ओडिशा में 95 दिल्ली, पश्चिमी भारत के राजस्थान, गुजरात एवं महाराष्ट्र, दक्षिण भारत के आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू 90 प्रतिशत भारतीय धर्मावलंबी हैं।

ईसाई एवं मुस्लिम जनसंख्या बहुल वाले क्षेत्रों में महाराष्ट्र के औरंगाबाद और आन्ध्र प्रदेश के हैदराबाद नगर, जनपदों पर केन्द्रित लंबी पट्टी है। उत्तर-दक्षिण की ओर बढ़ती इसी पट्टी में मध्य प्रदेश का पूर्वी निमाड़, मध्य महाराष्ट्र के अनेक जनपद, कर्नाटक के उत्तरी, आन्ध्र के उत्तर-पश्चिमी जनपद आते हैं। इनमें मुस्लिम उपस्थिति 24 प्रतिशत से अधिक है। इसके अलावा महाराष्ट्र के औरंगाबाद, आन्ध्र प्रदेश के हैदराबाद एवं निजामाबाद, के साथ ही महाराष्ट्र के अकोला, नासिक ढोठा में गत् चार दशकों में मुस्लिम अनुपात शीघ्रता से बढ़ा है। दिल्ली, हिमाचल प्रदेश के चम्बा, पंजाब के संगरुर, हरियाणा के गुडगांव, राजस्थान के अलवर , कर्नाटक के उत्तर कन्नड़, दक्षिण कन्नड़, कोडगु जनपदों में मुसलमानों का अनुपात असामान्यतः बढ़ा है। गुजरात के डांग, ओडिशा के सुन्दरगढ़, फूलबनी एवं तमिलनाडू के कन्याकुमारी जनपदों में ईसाई अनुपात में असामान्य वृद्धि हुई है। इसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज्जफरनगर तथा इसके आस-पास सहारनपुर, हरिद्वार, मेरठ, बिजनौर, मुरादाबाद, रायपुर, बरेली आदि क्षेत्रों में मुस्लिम अनुपात 40 प्रतिशत से अधिक है। पश्चिमी बंगाल का हावड़ा क्षेत्र और असम के कछार क्षेत्र में मुस्लिम उपस्थिति और उसकी वृद्धि असामान्य है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल,असम के सीमावर्ती राज्यों में मुस्लिम जनसंख्या पिछले चार दशकों में 6.4 प्रतिशत अंकों से बढ़ी है।

वास्तव में सन् 1881 से वर्ष 2011 तक की अवधि में भारतीय धर्मावलंबियों के अनुपात में 15 प्रतिशत तक की कमी आयी है। इसके कारणों में बड़ी संख्या में पाकिस्तान, बांग्लादेश से एक वर्ग विशेष का पलायन कर भारत की सीमावर्ती राज्यों में बसना और निम्न दलित वर्गों का ईसाई धर्म में धर्मान्तरण करना प्रमुख है। किन्तु जिस अनुपात में भारत की जनसंख्या में मुस्लिम समुदाय की वृद्धि हुई है,उस अनुपात में उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की मूलभूत सुविधाओं में वृद्धि नहीं हुई। जिसके कारण आज 58 प्रतिशत मुस्लिम गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिता रहे हैं भ्रष्टाचार , बेरोजगारी, गरीबी, असमान वितरण आदि पर विचार करते समय मुस्लिम वर्ग को भी ध्यान में रखना अपेक्षित है।