आईओसी के चुनाव से सीख लें भारत के खेल संघ

ioaपंकज कुमार नैथानी

अर्जेंन्टिना के ब्यूनस आयर्स में इस साल 7 से 10 सितंबर के बीच आयोजित इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी यानी आईओसी की 125वीं आम बैठक कई मायनों में ऐतिहासिक रही… बैठक में लिए गए बड़े फैसले के तहत टोक्यो शहर को 2020 के ओलंपिक खेलों की मेजबानी सौंपी गई… ओलंपिक में अपने वजूद के लिए जूझ रही कुश्ती के लिए भी आईओसी की बैठक में अहम फैसला लिया गया… लंबी बहस और वोटिंग के बाद कुश्ती को 2020 के ओलंपिक खेलों में जगह दी गई… मंगलवार को भी आईओसी की बैठक में इस संस्था के अगले अध्यक्ष का चुनाव हुआ…जिसमें जर्मनी के थॉमस बाक ने बाजी मारी…बाक जैक्स रोगे का स्तान लेंगे और अगले 12 साल तक इस पद पर रहेंगे…लेकिन बाक का चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक रहा….आओसी क 119 साल के इतिहास में बाक ऐसे पहले ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट हैं…जिन्हें खेलों की सर्वोच्च संस्था आईओसी के अध्यक्ष पद पर चुना गया है…इस पद पर पहुंचने के लिए बाक ने पांच अन्य उम्मीदवारों को पछाड़ा… खास बात ये है कि बाक को 49 औऱ दूसरे स्थान पर रहे रिचर्ड कैरियन को 29 वोट मिले…जबकि अन्य चार उम्मीदवार दहाई का आंकडा भी न छू सके…

चुनाव के नतीजों से यह तो साफ है कि आईओसी के सदस्यो के बीच बाक कितने लोकप्रिय हैं…लेकिन उससे बड़ बात यह है कि एक ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट इस मुकाम तक पहुंचा है… एक खिलाड़ी से एक प्रशासनिक अधिकारी का जिम्मा संभालने वाले बाक के लिए हालांकि चुनौतियां कम नहीं हैं… फिर भी खेल विशेषज्ञों को को उनसे काफी उम्मीदें हैं… 59 साल के बाक ने 1976 के मॉन्ट्रियल ओलंपिक में जर्मन टीम के लिए तलवारबाजी फोइल टीम इंवेंट का गोल्ड मेडल जीता था… बाक 1996 में आईओसी कार्यकारिणी बोर्ड के सदस्य चुने गए थे…2006 से अब तक क्लिक करें आईओसी कार्यकारिणी बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे हैं. इससे पहले वो 2000 से 2004 तक भी बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे थे… यानि कि बाक को स्पोर्ट्स एडमिनिस्ट्रेशन का भी अच्छा खासा अनुभव है…

बाक के चयन को भारत के परिदृष्य में देखें तो भारतीय खेलों के मठाधीश बने राजनेताओं को आईओसी से सबक लेने की जरूरत है… भारत में ऐसा शायद ही कोई एक खेल हो जिसकी प्रशासनिक संस्था की कतमान किसी ओलंपियन या दूसरे स्तर के खिलाड़ी के हाथ में हो… यहां कमोबेश हर खेल संघ या संस्था पर नेताओं का कब्जा है…वे मनमाने ढंग से इन खेल संघों को चला रहे हैं…जिससे भ्रष्टाचार और आपारदर्शिता पनप रही है… और तो और भारतीय खेलों की एप्क्स बॉडी इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के पदाधिकारियों पर कई बार दाग लग चुके हैं…जिसके चलते भारत की ओलंपिक मे भागीदारी भी खटाई मे पड़ती दिख रही है…क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, तीरंदाजी, बैडमिंटन, बॉक्सिंग, टेबल टेनिस जैसे खेलों में कई प्रतिष्ठित पूर्व खिलाड़ी मौजूद हैं जो इन खेलों की प्रशासनिक कमान संभालने में भी सक्षम हैं… लेकिन खेलों को राजनीति का अखाड़ा बनाकर नेताओं ने न सिर्फ अफनी मनमानी की है बल्कि कई उदीयमान खिलाड़ियों के भविष्य भी खिलवाड़ हुआ है…विजय कुमार मल्होत्रा 33 साल से तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष हैं..सुखदेव सिंह संह ढींढसा 17 साल से साइकर्लिंग फेडरेशन के अध्यक्ष हैं… बॉक्सिंग फेडरेशन अभय चौटाला के चंगुल से छूटा और राजस्थान के एमएलए अभिषेक मनेरिया के हाथ मे आ गया…फुटबॉल संघ का कामकाज 20 साल तक प्रिरंजन दास मुंशी के पास रहा, फिलहाल प्रफ्फुल पटेल के पास है… क्रिकेट में किस हद तक श्रीनिवासन की दादागिरी चलती है यह जगजाहिर है…

हालांकि कर्नाटक क्रिकेट एसोसिएशन के अहम पदों पर अनिल कुंबले औऱ जवागल श्रीनाथ की नियुक्ति से कुछ हद तक शुभ संकेत मिले थे…लग रहा था कि खेलों को चलाने मे खिलाड़ियों की भी अहम भूमिका होगी…लेकिन मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव में जिस तरह से वेंगसरकर की करारी हार हुई…उससे सारी तस्वीर साफ हो गई… सवाल यही है कि आखिर भारत मे क्यों खेल संघों नेताओं या बिजनेसमैन का कब्जा रहता है… आखिर क्यों बडे खिलाड़ियों को खेल संघों के संचालन के योग्य नहीं समझा जाता… थॉमस बाक के चुनाव की तरह इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के अहम पदों पर भी अगर धनराज पिल्लै, प्रकाश अमृतराज, जैसे लोगों को चुना जाता तो शायद आज हमें ओलंपिक में भागीदारी के लिए भी तरसना न पड़ता… खैर अब भी उम्मीद की जाती है कि भारत के खेल संघ भी आईओसी अध्यक्ष पद के चुनाव से कुछ प्रेरण लेंगे…जिससे खेल की साफ सुथरी छवि बनी रहे

 

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