भारतीय समाज और अंतर्राष्ट्रीय दिवस

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 सोनम लववंशी 
आए दिन हम सभी किसी न किसी दिवस विशेष का हिस्सा बनते, लेकिन क्या वह दिवस अपने सकल उद्देश्यों को प्राप्त कर पाता है? यह अपने-आपमें एक यक्ष प्रश्न है। जी हाँ 11 अक्टूबर को हर वर्ष अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का उद्देश्य बालिकाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना है साथ ही विश्व में बालिकाओं के प्रति होने वाली लैंगिक असमानताओं को खत्म करना। फ़िर आज के समय में यह सवाल बहुत ही प्रासंगिक हो जाता है कि वैश्विक स्तर पर बालिकाओं की स्थिति बदत्तर क्यों? बात चाहें भारत की हो या अफगानिस्तान या अन्य किसी मुल्क की, कमोबेश बालिकाओं की स्थिति हर जगह एक जैसी है। बस फ़र्क है तो सिर्फ़ उन्नीस-बीस का मामूली सा अंतर। वैसे हम बात अपने देश भारत की करते हैं, लेकिन उससे पहले एक विशेष बात। गौरतलब हो कि मेलिंडा गेट्स ने कहा था कि, “जब आप किसी लड़की को स्कूल भेजते हैं, तो इस भले काम का असर हमेशा के लिए रहता है।” इतना ही नहीं उनका यह भी कहना था कि यह पहल पीढ़ियों तक जनहित के तमाम कार्यों को आगे बढ़ाने का काम करती है, स्वास्थ्य से लेकर आर्थिक लाभ, लैंगिक समता और राष्ट्रीय समृद्धि तक। अब सोचिए अगर एक बालिका के स्कूल जाने मात्र से इतनी चीजें समृद्ध होती है, फ़िर आज के इक्कीसवीं सदी में भी हमारी सोच दकियानूसी क्यों? क्यों आज भी अधिकांश बच्चियां स्कूलों का मुंह देखने से वंचित रह जाती हैं? और जो स्कूल का मुंह देखती भी हैं वह आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाती हैं? ऐसे में एक बात तो स्पष्ट है कि इस एक दिन दिवस मना लेने से स्थिति में बदलाव नहीं आने वाला। उसके लिए समग्र स्तर पर और सामाजिक चेतना का विकास करना जरूरी है। 

वैसे बात बालिका दिवस की करें, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे मनाने की शुरुआत एक गैर-सरकारी संगठन ‘प्लान इंटरनेशनल’ ने प्रोजेक्ट के रूप में की थी। इस संगठन ने “क्योंकि मैं एक लड़की हूँ” नाम से एक अभियान भी शुरू किया था। मालूम हो कि पहला अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर, 2012 को मनाया गया था और उस समय इसकी थीम “बाल विवाह को समाप्त करना” था। अब बात सिर्फ़ बाल विवाह की करें, फ़िर सवाल यही क्या यह समस्या ख़त्म हो गई। वह भी ख़ासकर भारत में? स्थिति आज भी बाल-विवाह की बहुत भयानक है। फ़िर भी एक दिन की जागरूकता ही सही, उस दिन भी सही ढंग से लोग चेत जाएं। तो बालिकाओं के लिए बेहतर हो सकता है। वही बात अगर 2021 की करें तो इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस की थीम है, “डिजिटल पीढ़ी, हमारी पीढ़ी”। अब कोरोना काल में किस तरह से दुनियां डिजिटल क्षेत्र में आगे बढ़ी है यह किसी से छुपा नहीं है। लेकिन बात वर्तमान दौर में लड़कियों की करें तो इंटरनेट और डिजिटल उपकरणों के क्षेत्र में आज भी लड़कियां बहुत पिछड़ी हुई है और खासकर बात भारत के परिपेक्ष्य में देखें तो सचमुच में स्थिति बहुत विकट है। सोचिए जिस 2021 में हम फाइव जी की दिशा में बढ़ रहे हैं फ़िर भी उस कालखण्ड में भी लड़कियों के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आने की आजादी तक नहीं है।

वहीं बात कोविड-19 महामारी के दौर की करेगे तो इस दौरान कनेक्टिविटी और ऑनलाइन सुरक्षा के मामले में लिंग विभाजन को और भी गहरा कर दिया है। जी हां लड़कियों को इंटरनेट और डिवाइस के लिए आर्थिक और सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। ये सच है कि वक़्त बदल रहा है लेकिन आज भी समाज में महिलाओं और बालिकाओं की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हो रहा है। एक आंकड़े के माध्यम से भारत में बालिकाओं की स्थिति को समझें तो लड़कियों की साक्षरता दर, उनके साथ भेदभाव, कन्या भ्रूण हत्या देश में आज भी एक बड़ा मसला है। इतना ही नहीं साक्षरता दर भी एशिया में सबसे कम है। एक सर्वे के अनुसार, भारत में 42 फीसदी लड़कियों को दिन में एक घंटे से कम समय मोबाइल फोन इस्तेमाल की इजाजत दी जाती है। अब सोचिए जिस दौर में इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस की थीम “डिजिटल पीढ़ी, हमारी पीढ़ी” है। फ़िर यह कहाँ तक न्यायोचित? इतना ही नहीं भारत में अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के अलावा प्रति वर्ष  24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस भी मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत साल 2009 में महिला बाल विकास मंत्रालय ने की थी। फ़िर भी आज बालिकाओं की स्थिति क्या है, किसी से छिपी नही। 

बता दें कि राष्ट्रीय बालिका दिवस से पहले इस वर्ष एक सर्वें जारी किया गया था। जो 10 राज्यों असम, हरियाणा, कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के 4,100 उत्तरदाताओं के आधार पर तैयार किया गया था। वहीं इस सर्वें में चार प्रमुख हितधारक समूहों-किशोरियों, परिवार के सदस्यों, शिक्षकों और दस राज्यों में सामुदायिक संगठनों (जैसे गैर सरकारी संगठनों) के प्रतिनिधि शामिल थे और इन सर्वें से जो आंकड़े निकलकर आएं वह बेहद ही चौंकाने वाले थे। जी हां सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत में किशोरियों के लिए डिजिटल उपकरणों तक पहुंच का एक बड़ा संकट है। इतना ही नहीं इसमें कहा गया कि, “राज्य दर राज्य में पहुंच में अंतर है। कर्नाटक में जहां किशोरियों को अधिकतम 65 फीसदी डिजिटल या मोबाइल उपकरणों तक आसान पहुंच प्राप्त है।  वहीं हरियाणा में, इस मामले में लैंगिक अंतर सबसे अधिक है जबकि तेलंगाना में डिजिटल पहुंच वाले लड़कों और लड़कियों के बीच अंतर सबसे कम 12 फीसदी है।” इतना ही नहीं सर्वे में कहा गया कि परिवार का दृष्टिकोण और पूर्वाग्रह लड़कियों को डिजिटल उपकरण का इस्तेमाल करने के लिए दिए गए समय को भी प्रतिबंधित करता है। अब आप सोचिए अगर डिजिटल उपकरण तक से भी बालिकाओं को दूर रखा जाता है। फ़िर बाकी के मामले में किशोरियों की हालत कैसी होगी। लड़कियों की शिक्षा, उनके साथ सामाजिक कृत्य के किस्से से तो आप सभी रूबरू हैं ही। उनके आंकड़े पेश करने की ज़्यादा जरूरत महसूस होती नहीं। कुल-मिलाकर देखें तो बालिकाओं के प्रति सोच आज भी समाज की संकीर्ण है। अजीब संयोग है कि अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस इस बार नवरात्रि का पावन पर्व के बीच में पड़ रहा। नवरात्रि का हमारे समाज और देश में कितना महत्व यह भी कोई चर्चा का विषय नहीं, फ़िर भी जो बात हमें निराश करती है, वह बच्चियों के प्रति समाज का रवैया है और इसमें कब परिवर्तन आएगा, यह अपने आपमें एक बड़ा सवाल? 
वैसे हिन्दू आदर्श के अनुसार स्त्रियाँ अर्धांगिनी कही गई हैं और इसी स्त्री का एक रूप बालिकाएं होती है। मातृत्व का आदर भारतीय समाज की विशेषता है। संसार की ईश्वरीय शक्ति दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती आदि नारी शक्ति, धन, ज्ञान का प्रतीक मानी गयी हैं तभी तो अपने देश को हम भारत माता कहकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। फ़िर भी बात स्त्री के किसी भी रूप की हो वह अपेक्षित है, जो कहीं न कहीं मन को ठेस पहुँचाती है। आख़िर में एक आंकड़ा आप सभी के बीच और साझा करें तो आज भी दुनिया भर में लगभग 132 मिलियन लड़कियां प्रारम्भिक शिक्षा तक ग्रहण नहीं कर पाती है। फ़िर आप सोच सकते हैं कि बालिकाओं की दशा वैश्विक मंच पर कैसी है और इस सोच में परिवर्तन बहुत जरूरी है, क्योंकि दुनिया के रंगमंच में स्त्री और पुरुष की भागीदारी एक समान है यह हम और हमारा समाज जितना जल्दी समझ लें उतना ही बेहतर होगा। वैसे भारतीय परिवेश में मोदी सरकार के आने के बाद बालिकाओं की सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति कुछ हद तक बेहतर हुई है, लेकिन शत-प्रतिशत सफ़लता इस दिशा में अभी कोसों दूर है।

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