भारत की चिप क्रांति : सपनों से साकार होती हकीकत

उम्मीदों की चिप ने दिए आत्मगौरव और नवाचार को पंख

भारत आज उस ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है जहाँ तकनीकी आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक प्रगति का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व और वैश्विक नेतृत्व की दिशा भी बन गई है। दशकों तक चिप और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में केवल उपभोक्ता के रूप में पहचाने जाने वाला भारत अब निर्माता और आपूर्तिकर्ता बनने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। यह परिवर्तन केवल तकनीकी नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और आत्मगौरव का भी प्रतीक है। सेमीकंडक्टर मिशन, वैश्विक सहयोग, और शिक्षा व अनुसंधान में निवेश ने भारत की चिप क्रांति को साकार रूप दिया है।

— डॉ सत्यवान सौरभ

भारत ने सेमीकंडक्टर निर्माण के क्षेत्र में ऐतिहासिक कदम उठाते हुए विश्व स्तर पर अपनी तकनीकी पहचान बनाई है। गुजरात और कर्नाटक में चिप पार्क, विदेशी निवेश और शिक्षा संस्थानों की सक्रिय भागीदारी ने इस अभियान को गति दी है। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन 2025 में भारत ने सुरक्षा, संपर्क और अवसर के तीन स्तंभों पर बल देकर तकनीक को साझा भविष्य का आधार बताया। यह चिप क्रांति न केवल आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त कर रही है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, नवाचार और आत्मगौरव की नई उड़ान भी भर रही है।

भारत आज उस ऐतिहासिक दौर से गुजर रहा है जहाँ सपने केवल सपने नहीं रह गए हैं, बल्कि नये यथार्थ का रूप ले चुके हैं। दशकों तक जिस देश को तकनीक के क्षेत्र में उपभोक्ता भर समझा जाता था, वही देश आज निर्माता, आपूर्तिकर्ता और नवप्रवर्तक बनने की राह पर तेज़ी से बढ़ रहा है। सेमीकंडक्टर और चिप निर्माण की दिशा में भारत के प्रयास इसी परिवर्तन की सबसे सशक्त गवाही देते हैं। यह केवल तकनीकी विकास का संकेत नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय आत्मगौरव, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की उड़ान भी है।

चिप अथवा सेमीकंडक्टर आज के युग की सबसे अनिवार्य धुरी है। बीसवीं शताब्दी में तेल ने जैसे विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था को संचालित किया था, उसी प्रकार इक्कीसवीं शताब्दी में चिप वैश्विक शक्ति संतुलन का आधार बन चुकी है। आधुनिक जीवन का कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। मोबाइल फ़ोन, कंप्यूटर, स्मार्ट यंत्र, वाहन, रेल, हवाई जहाज़, रक्षा उपकरण, उपग्रह, स्वास्थ्य सेवाओं के उन्नत यंत्र, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोट तक—हर क्षेत्र में चिप की अनिवार्यता स्पष्ट दिखाई देती है। इसीलिए जो राष्ट्र इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर और सशक्त है, वही आने वाले समय में विश्व की राजनीति और अर्थव्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभाएगा।

भारत की स्थिति लंबे समय तक इस क्षेत्र में कमजोर रही। भारी पूंजी निवेश, लगातार ऊर्जा और जल संसाधनों की आवश्यकता, प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी और अनुसंधान की उपेक्षा जैसे कारणों से भारत पिछड़ता रहा। चीन, ताइवान, अमेरिका और कोरिया जैसे देशों ने इस स्थिति का लाभ उठाकर वैश्विक बाज़ार पर प्रभुत्व कायम किया और भारत को केवल एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार के रूप में देखा जाने लगा। किन्तु राष्ट्रों के जीवन में भी ऐसे क्षण आते हैं जब परिस्थितियाँ बदली हुई राह पर चलने को बाध्य करती हैं। भारत के लिए भी यही अवसर बीते कुछ वर्षों में आया और उसने चुनौती को अवसर में बदलने का संकल्प लिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रारम्भ हुए ‘डिजिटल इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसे अभियानों ने तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में नया उत्साह जगाया। इन अभियानों ने यह संदेश दिया कि भारत अब केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता भी बनेगा। वर्ष 2021 में घोषित भारत सेमीकंडक्टर मिशन ने इस संकल्प को ठोस आधार प्रदान किया। इसके अंतर्गत गुजरात और कर्नाटक में चिप निर्माण पार्क स्थापित करने की दिशा में कार्य प्रारम्भ हुआ। ताइवान, जापान और अमेरिका की कंपनियों ने भारत में निवेश और सहयोग की इच्छा प्रकट की। अरबों डॉलर के निवेश प्रस्ताव आए और अनुसंधान संस्थानों को सीधे इस अभियान से जोड़ा गया।

कोविड महामारी ने वैश्विक आपूर्ति शृंखला की कमजोरियों को उजागर कर दिया। जब चीन और ताइवान के कारखाने ठप पड़े तो पूरी दुनिया में मोबाइल, वाहन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का संकट खड़ा हो गया। कीमतें बढ़ीं, उत्पादन ठप हुआ और उपभोक्ताओं को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उस कठिन दौर में भारत ने महसूस किया कि तकनीकी आत्मनिर्भरता केवल सुविधा का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता का भी प्रश्न है। तभी भारत ने यह अवसर पहचाना और अपने को आपूर्ति शृंखला का विश्वसनीय केंद्र बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए।

वर्ष 2025 में चीन के तियानजिन नगर में सम्पन्न शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। भारत ने यहाँ अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए सुरक्षा, संपर्क और अवसर के तीन स्तंभ प्रस्तुत किए। भारत ने कहा कि तकनीक केवल व्यापार और उद्योग का विषय नहीं, बल्कि साझा सुरक्षा, स्थायी संपर्क और सामूहिक अवसर का आधार है। सेमीकंडक्टर विकास और डिजिटल नवाचार को सामूहिक प्राथमिकता बनाने का भारत का आह्वान इस सम्मेलन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि रहा। तियानजिन घोषणा पत्र में भारत की यह दृष्टि परिलक्षित हुई, जिससे यह प्रमाणित हो गया कि विश्व समुदाय भारत के बढ़ते तकनीकी महत्व को स्वीकार कर रहा है।

भारत ने इस प्रयास को केवल उद्योग तक सीमित नहीं रखा है। शिक्षा संस्थानों, अनुसंधान केन्द्रों और स्टार्टअप्स को भी इस अभियान से जोड़ा जा रहा है। आईआईटी, एनआईटी और अन्य विश्वविद्यालयों में चिप डिजाइनिंग, नैनोटेक्नोलॉजी और एंबेडेड सिस्टम से जुड़े पाठ्यक्रम आरम्भ किए गए हैं। युवाओं को अनुसंधान और नवाचार की दिशा में प्रेरित किया जा रहा है। इस प्रकार आने वाली पीढ़ी को तकनीकी नेतृत्व सौंपने की ठोस तैयारी की जा रही है।

सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भारत का यह अभियान रोज़गार सृजन और औद्योगिक विकास का भी आधार बनेगा। अनुमान है कि आने वाले दस वर्षों में इस क्षेत्र से दस लाख से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर पैदा होंगे। निर्माण, डिजाइनिंग, परीक्षण और वितरण के स्तर पर नये उद्योग और स्टार्टअप्स उभरेंगे। यह केवल तकनीकी विकास नहीं, बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में भी ऐतिहासिक कदम होगा।

इस अभियान का एक महत्वपूर्ण पहलू राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा है। रक्षा उपकरणों और उपग्रह तकनीक में आत्मनिर्भरता बढ़ने से भारत की रणनीतिक स्थिति सुदृढ़ होगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर सुरक्षा में भी भारत का प्रभाव बढ़ेगा। स्पष्ट है कि चिप निर्माण केवल उद्योग की आवश्यकता नहीं, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा और संप्रभुता से भी गहरे रूप से जुड़ा है।

हालाँकि, चुनौतियाँ अभी भी शेष हैं। बिजली और जल की सतत आपूर्ति, अनुसंधान में निरंतर निवेश, वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा और पर्यावरणीय संतुलन जैसी बाधाएँ इस यात्रा को कठिन बना सकती हैं। किंतु सरकार, उद्योग और समाज के संयुक्त प्रयास से इन चुनौतियों का समाधान अवश्य होगा। भारत ने जिस आत्मविश्वास और संकल्प के साथ इस यात्रा का आरम्भ किया है, उससे यह स्पष्ट है कि वह पीछे मुड़कर देखने वाला नहीं।

आज भारत की चिप क्रांति केवल तकनीकी आत्मनिर्भरता की कहानी नहीं, बल्कि यह आत्मगौरव, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की महागाथा भी है। उम्मीदों की चिप सचमुच हौसलों को पंख दे चुकी है। बीसवीं शताब्दी में तेल ने जैसे विश्व व्यवस्था को बदला, उसी प्रकार इक्कीसवीं शताब्दी में चिप और तकनीक वैश्विक नेतृत्व का निर्धारण करेगी। भारत ने इस क्षेत्र में अपने कदम दृढ़तापूर्वक बढ़ा दिए हैं और अब उसका सपना धीरे-धीरे साकार होता दिख रहा है।

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