हिंदुस्तान की विदेश नीति : बदलते वैश्विक परिदृश्य में नई दिशा और चुनौतियाँ

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अशोक कुमार झा

21वीं सदी की अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में हिंदुस्तान का स्थान तेजी से बदल रहा है। एक ओर यह पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, दूसरी ओर दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक ताक़त। इसकी 1.4 अरब से अधिक जनसंख्या, विशाल युवा शक्ति, मजबूत आईटी और अंतरिक्ष तकनीक, परमाणु क्षमता, रक्षा ताक़त और सांस्कृतिक धरोहर इसे वैश्विक मंच पर एक निर्णायक खिलाड़ी बनाते हैं।

लेकिन इस ऊँचाई के साथ-साथ चुनौतियाँ भी उतनी ही बड़ी हैं। बदलती वैश्विक राजनीति, चीन का उभार, अमेरिका-रूस का टकराव, आतंकवाद, जलवायु संकट और तकनीकी प्रतिस्पर्धा – इन सबके बीच हिंदुस्तान की विदेश नीति को संतुलन साधते हुए आगे बढ़ना पड़ रहा है।

1. विदेश नीति की ऐतिहासिक जड़ें

हिंदुस्तान की विदेश नीति की नींव पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रखी। उन्होंने इसे असंपृक्त आंदोलन (Non-Aligned Movement) से जोड़ा। उनका मानना था कि शीत युद्ध के समय किसी एक गुट (अमेरिका या सोवियत संघ) के साथ पूरी तरह खड़े होने से हिंदुस्तान की स्वतंत्रता और स्वायत्तता सीमित हो जाएगी।

  • नेहरू युग : पंचशील सिद्धांत (1954) – आपसी सम्मान, संप्रभुता और हस्तक्षेप न करने के उसूल।
  • इंदिरा गांधी युग : बांग्लादेश मुक्ति संग्राम (1971), परमाणु परीक्षण (1974), और सोवियत संघ के साथ संधि।
  • राजीव गांधी युग : तकनीकी सहयोग और आधुनिक कूटनीति की शुरुआत।
  • अटल बिहारी वाजपेयी युग : 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण और अमेरिका से नए रिश्तों की नींव।
  • मनमोहन सिंह युग : 2005 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, आर्थिक वैश्वीकरण को गति।
  • नरेंद्र मोदी युग : आक्रामक, सक्रिय और व्यक्तित्व-प्रधान कूटनीति।

2. विदेश नीति के मूल तत्व

आज हिंदुस्तान की विदेश नीति केवल “सुरक्षा” तक सीमित नहीं बल्कि बहुआयामी है। इसके मुख्य तत्व हैं –

  1. रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) : किसी एक ध्रुव पर निर्भर न रहकर संतुलन बनाना।
  2. नेबरहुड फर्स्ट : पड़ोसी देशों के साथ प्राथमिकता से संबंध।
  3. एक्ट ईस्ट : दक्षिण-पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सक्रियता।
  4. ग्लोबल साउथ का नेतृत्व : विकासशील देशों की आवाज़ उठाना।
  5. डायस्पोरा डिप्लोमेसी : प्रवासी भारतीयों को विदेश नीति का हिस्सा बनाना।
  6. सांस्कृतिक कूटनीति : योग, आयुर्वेद, बॉलीवुड और भारतीय सभ्यता के जरिए वैश्विक छवि गढ़ना।

3. पड़ोसी देशों के साथ संबंध

(क) पाकिस्तान :

  • सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद।
  • पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक ने नई नीति स्पष्ट की – “आतंकवाद का जवाब कूटनीति नहीं, सख्त कार्रवाई से।”
  • पाकिस्तान की अस्थिरता हिंदुस्तान के लिए सुरक्षा जोखिम है।

(ख) चीन :

  • सीमा विवाद (डोकलाम, गलवान संघर्ष)।
  • व्यापारिक निर्भरता – चीन से सबसे अधिक आयात।
  • हिंद महासागर और एशिया में शक्ति संतुलन की प्रतिस्पर्धा।

(ग) नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार :

  • “नेबरहुड फर्स्ट” नीति इन्हीं पर केंद्रित है।
  • नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता, श्रीलंका का आर्थिक संकट, म्यांमार में सेना का शासन – इन सबका असर सीधे हिंदुस्तान पर पड़ता है।
  • बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौता और नदी जल बंटवारे का प्रश्न महत्वपूर्ण है।

4. वैश्विक महाशक्तियों के साथ संबंध

(क) अमेरिका :

  • हिंदुस्तान-अमेरिका संबंध आज “नेचुरल पार्टनरशिप” कहे जाते हैं।
  • QUAD (हिंदुस्तान, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) – चीन को संतुलित करने की रणनीति।
  • प्रौद्योगिकी, रक्षा, 5G, अंतरिक्ष और व्यापार में साझेदारी।

(ख) रूस :

  • दशकों से रक्षा सहयोग का आधार।
  • यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी दबाव के बावजूद हिंदुस्तान ने रूस से सस्ता तेल खरीदा।
  • यह “राष्ट्रहित पहले” की नीति का उदाहरण है।

(ग) यूरोप :

  • फ्रांस हिंदुस्तान का प्रमुख रक्षा साझेदार (राफेल विमान)।
  • जर्मनी और ब्रिटेन के साथ भी आर्थिक और शैक्षणिक सहयोग बढ़ रहा है।

5. पश्चिम एशिया और मध्य एशिया

  • खाड़ी देशों से ऊर्जा सुरक्षा (तेल और गैस आयात)।
  • 80 लाख से अधिक प्रवासी भारतीयों का योगदान।
  • इजरायल और अरब देशों के बीच हिंदुस्तान की “संतुलनकारी भूमिका”।
  • ईरान के चाबहार बंदरगाह से हिंदुस्तान को मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक पहुँच।

6. हिंद महासागर और समुद्री रणनीति

  • हिंद महासागर को “21वीं सदी का खेल का मैदान” कहा जा रहा है।
  • चीन की बढ़ती उपस्थिति (String of Pearls रणनीति) को संतुलित करने के लिए हिंदुस्तान “SAGAR – Security and Growth for All in the Region” नीति पर काम कर रहा है।
  • अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप और मालदीव जैसे क्षेत्रों में समुद्री ताक़त को मजबूत किया जा रहा है।

7. ग्लोबल साउथ और G20

  • हिंदुस्तान ने G20 अध्यक्षता के दौरान “ग्लोबल साउथ” को मंच दिया।
  • जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, ऋण संकट और डिजिटल अंतराल जैसे मुद्दों पर विकासशील देशों की आवाज़ बुलंद की।
  • यह विदेश नीति का नया आयाम है, जिससे हिंदुस्तान “नेतृत्वकारी शक्ति” के रूप में उभरा है।

8. प्रवासी भारतीय और सांस्कृतिक कूटनीति

  • अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, खाड़ी देशों और अफ्रीका में करोड़ों प्रवासी भारतीय रहते हैं।
  • वे न केवल धन भेजते हैं, बल्कि हिंदुस्तान की सकारात्मक छवि भी बनाते हैं।
  • योग दिवस (21 जून) को संयुक्त राष्ट्र में मान्यता मिलना, आयुर्वेद और बॉलीवुड की लोकप्रियता – ये सब सांस्कृतिक कूटनीति के उदाहरण हैं।

9. भविष्य की चुनौतियाँ

  1. चीन-अमेरिका टकराव में संतुलन।
  2. आतंकवाद और साइबर हमले
  3. जलवायु संकट और ऊर्जा सुरक्षा
  4. कृत्रिम बुद्धिमत्ता और तकनीकी प्रतिस्पर्धा
  5. संयुक्त राष्ट्र सुधार और सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की लड़ाई।

10. निष्कर्ष

हिंदुस्तान की विदेश नीति अब रक्षात्मक से आक्रामक और प्रतिक्रियात्मक से सक्रिय हो चुकी है। यह नीति स्पष्ट रूप से “राष्ट्रहित सर्वोपरि” के सिद्धांत पर टिकी है।

आज हिंदुस्तान केवल दक्षिण एशिया की शक्ति नहीं बल्कि वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है। अगर यह नीति संतुलन, दूरदर्शिता और व्यावहारिकता के साथ आगे बढ़ी तो आने वाले दशकों में हिंदुस्तान न केवल “विकासशील दुनिया की आवाज़” रहेगा बल्कि वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित होगा।

 अशोक कुमार झा

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