लेख

इण्डिगो को सबक सिखाना जरूरी है

राजेश कुमार पासी

हमारे देश में हवाई यात्रा करने वाले लोगों की संख्या अभी भी काफी कम है, इसलिए एक विमानन कंपनी की मनमानी के कारण यात्रियों को हुई परेशानी  मुद्दा नहीं बन सकती है, इसके बावजूद  एक एयरलाइन्स कंपनी ने भारत सरकार को हिलाकर रख दिया है, इसलिए इस कंपनी के खिलाफ सरकार को सख्त कार्यवाही करने की जरूरत है। इस कंपनी ने एक सप्ताह में यात्रियों की ऐसी हालत कर दी कि मामले में प्रधानमंत्री तक को दखल देना पड़ गया। जब मामले में प्रधानमंत्री को दखल देना पड़ा है तो हमें यह मानकर चलना चाहिए कि कंपनी के खिलाफ सख्त कार्यवाही होने वाली है। जब प्रधानमंत्री मोदी भारत के विश्वसनीय मित्र देश रूस के राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा के दौरान उनके साथ व्यस्त थे, तब इस कंपनी की लापरवाही के कारण भटक रहे हज़ारो यात्री मीडिया में छाए हुए थे। जिस समय मीडिया पर भारत-रूस मैत्री चर्चा का विषय होनी चाहिए थी, उस समय मीडिया यात्रियों की परेशानी पर चर्चा कर रहा था।   देश के कई हवाई अड्डों पर यात्री कई घंटों और दिनों तक अटके रहे ।  हज़ारो लोग अपनी उड़ाने रद्द होने के कारण अपने गंतव्य स्थान पर नहीं पहुँच सके । यह सब इसलिए हुआ क्योंकि इण्डिगो एयरलाइन्स ने सुरक्षित विमान यात्रा के लिए यात्री विमानों के संचालन की रेगुलेटरी संस्था डीजीसीए के नए नियमों के पालन करने की कोई तैयारी नहीं की थी।

देखा जाए तो गलती पूरी तरह से इण्डिगो की थी लेकिन इसकी सजा लाखों यात्रियों को भुगतनी पड़ी । इस पर तुर्रा यह कि कंपनी समय पर टिकट बुकिंग के पैसे भी  वापिस नहीं कर रही थी और लोगो का सामान भी वापिस नहीं मिल रहा था । इसके बाद सरकार को सख्त निर्देश जारी करने पड़े । कंपनी को निर्देश दिया गया कि वो कैंसिल और रुकी हुई फ्लाइट्स के लिए पूरा रिफंड 7 दिसंबर रात 8 बजे तक कर दे। इसके अलावा यात्रियों का पूरा सामान ढूंढकर 48 घंटो में उनके घर पहुंचा दे । कंपनी के सीईओ से स्पष्टीकरण मांगा गया है कि वो 24 घंटे में बताए कि पिछले 5 दिनों से जारी संकट के लिए उनके खिलाफ कार्यवाही क्यों न की जाए । अगर कंपनी जवाब नहीं देती है तो उसके खिलाफ डीजीसीए एकतरफा कार्यवाही कर सकता है। इण्डिगो के द्वारा सैकड़ों फ्लाइट्स कैंसिल करने के कारण हवाई किराये में जबरदस्त बढ़ोतरी हो गई थी, सरकार ने उसकी अधिकतम सीमा तय कर दी है। इकोनॉमी क्लास के लिए अधिकतम किराया 18000 रुपये तय कर दिया गया है जो कि 80000 रुपये तक पहुँच गया था। 

               इस समस्या की शुरुआत पायलट एसोसिएशन द्वारा अदालत जाने से हुई है। एसोसिएशन का कहना था कि उनकी वर्किंग कंडीशन्स सही नहीं हैं जिसके कारण विमानों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। इसे अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार बनाया जाना चाहिए। डीजीसीए ने इसके बाद विमानन कंपनियो के लिए नए दिशानिर्देश जारी कर दिए. इन निर्देशों का पालन करने के लिए कंपनियों को 18 महीने का वक्त दिया गया। इसकी वजह यह थी कि इन निर्देशों का पालन करने के लिए कई कंपनियों को पायलट भर्ती करने पड़ सकते थे। दिशानिर्देशों के अनुपालन के लिए पहले 1 जुलाई, 2025 की तारीख तय की गई थी, फिर इसे बढ़ाकर 1 नवंबर कर दिया गया। सभी कंपनियों ने इन दिशानिर्देशों का पालन कर दिया लेकिन देश की सबसे बड़ी विमानन कंपनी इण्डिगो इसमें असफल हो गई है। अभी तक कंपनी अपनी फ्लाइट्स के संचालन के लिए समुचित पायलट्स की भर्ती नहीं कर पाई है लेकिन उसने फ्लाइट्स की बुकिंग कर ली है । जब दिशानिर्देशों के कारण पायलट्स कम पड़ गए तो कंपनी ने फ्लाइट्स कैंसिल करना शुरू कर दिया। नवंबर के महीने में लगभग एक हज़ार फ्लाइट्स कैंसिल की गई लेकिन 4-5 दिसंबर को एक ही दिन में हज़ार फ्लाइट्स कैंसिल होना शुरू हो गई।

 इससे ऐसा लग रहा है कि कंपनी ने जानबूझकर ऐसी स्थिति पैदा की है ताकि सरकार पर दबाव बनाकर दिशानिर्देशों के पालन पर रोक लगाई जा सके । देखा जाए तो कंपनी इसमें सफल भी हो गई है क्योंकि डीजीसीए को अपना आदेश कुछ समय के लिए वापस लेना पड़ा है। सरकार को कंपनी की चाल समझ आ गई है, इसलिए इस मामले पर जांच बिठा दी गई है। कंपनी पर शक इसलिए भी गया है क्योंकि कंपनी ने सिर्फ घरेलू उड़ानों को रद्द किया है लेकिन अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर कोई असर नहीं हुआ है। इसके अलावा कंपनी ने इस संकट के लिए एक के बाद एक कई बहाने बनाये हैं । कंपनी ने इसके लिए सॉफ्टवेयर गलीच को वजह बताया तो फिर कहा कि सर्दियों के कारण हम अपनी उड़ानों की समयसारिणी में बदलाव नहीं कर पाए । सवाल यह है कि ये समस्या अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में क्यों नहीं आयी । इसकी वजह यह तो नहीं है कि उसमें ज्यादा कमाई होती है। सॉफ्टवेयर गलीच और सर्दियां सिर्फ घरेलू उड़ानों के लिए ही क्यों समस्या बन गए । 

                 इस संकट पर राजनीति भी शुरू हो गई है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस समस्या के लिए सरकार को दोषी ठहराया है।राहुल गांधी ने एक्स पर कहा, “इण्डिगो की नाकामी इस सरकार के मोनोपॉली मॉडल की कीमत है । एक बार फिर, एक आम भारतीय इसकी कीमत चुका रहे हैं- देरी, कैंसलेशन और लाचारी के रूप में। भारत हर सेक्टर में सही कंपीटिशन का हकदार है, मैच फिक्सिंग मोनोपॉली का नहीं।” देखा जाए तो राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं, इसलिए ऐसी अव्यवस्था के लिए सरकार को दोषी ठहराना उनका काम है । सवाल यह है कि क्या सरकार इसके लिए जिम्मेदार नहीं है। पिछले 18 महीनों में यह जानने की कोशिश क्यों नहीं की गई कि कंपनी ने दिशानिर्देशों के पालन के लिए क्या तैयारी की है। जब कंपनी ने समुचित रूप से पायलट्स की भर्ती नहीं की थी तो सरकार ने उससे क्यों नहीं पूछा कि वो अपनी उड़ानों का संचालन कैसे करेगी । नागरिक उड्डयन मंत्री नायडू ने राहुल गांधी पर पलटवार किया है। उन्होंने कहा है कि ये कोई राजनीतिक मामला नहीं है, ये पब्लिक का मुद्दा है। उन्होंने कहा है कि सरकार ने हमेशा ज्यादा कंपीटिशन लाने की कोशिश की है। हमने लीजिंग कॉस्ट कम करने के लिए कानून भी बनाया है जिससे ज्यादा एयरक्राफ्ट फ्लीट में शामिल हो सकें। उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा कहा है कि कंपीटिशन बढ़ना चाहिए, देश में एविएशन सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है। इसलिए इस सेक्टर में लोगों के आने का मौका है, सरकार भी यही चाहती है । उन्होंने कहा कि अगर राहुल गांधी पूरी जानकारी के साथ बात कहते तो बेहतर होता।

राजनीति अपनी जगह है लेकिन इण्डिगो ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि उसके कारण पायलट्स को थकान से बचाने और यात्रियों की सुरक्षा के लिए लागू किये गए नियम वापस लेने पड़े । जब सारी एयरलाइन्स इन नियमों के पालन के लिए तैयार थी, तो इण्डिगो क्यों तैयार नहीं हुई। इसका दूसरा मतलब यह है कि डीजीसीए इण्डिगो की निगरानी करने में असफल रही है। सबसे बड़ी कंपनी, जो कि एयरलाइन्स सेक्टर में 65% हिस्सेदारी रखती है, उसकी तरफ डीजीसीए ने ध्यान क्यों नहीं दिया । देखा जाए तो इण्डिगो में दिशानिर्देशों का पालन होगा, इसके लिए डीजीसीए ने उससे पूछा नहीं और उसने उसे बताया नहीं। डीजीसीए और इण्डिगो की लापरवाही के कारण लाखों लोगों के समय और धन की बर्बादी हुई है। इसके लिए उनको हर्जाना दिया जाना चाहिए। इण्डिगो सिर्फ माफी मांगकर अपने गुनाह से छुटकारा नहीं पा सकती। 

                अगर जांच में यह पाया जाता है कि कंपनी ने जानबूझकर लापरवाही की है तो कंपनी पर भारी जुर्माना लगाकर यात्रियों को भुगतान किया जाना चाहिए। एक कंपनी की लापरवाही की उन्होंने बड़ी कीमत चुकाई है । कंपनी की इस करतूत के कारण यात्रियों की सुरक्षा को देखते हुए लाये गए नियमों को वापस लेना पड़ा है. इसके लिए भी डीजीसीए और इण्डिगो जिम्मेदार हैं। कंपनी तो मुनाफे के लालच में यात्रियों की सुरक्षा से खेल रही थी लेकिन डीजीसीए क्यों सोई हुई थी । 65% हिस्सेदारी वाली कंपनी की हरकत ने पूरी दुनिया में भारत के एविएशन सेक्टर की बदनामी की है। कंपनी ने डीजीसीए पर दबाव बनाने के लिए रणनीतिक रूप से जरूरत से ज्यादा उड़ाने रद्द कर दी । इसका दूसरा मतलब यह है कि कंपनी भारत के एविएशन सेक्टर में अपनी मोनोपॉली का फायदा उठाना चाहती थी। अपने मुनाफे के लिए कंपनी उन नियमों को लागू करने से बचना चाहती थी जिन्हें यात्रियों की सुरक्षा के लिए लागू किया गया है। यह दिखाता है कि कंपनी चाहती तो जरूरत के अनुसार स्टाफ की भर्ती कर सकती थी लेकिन अपने एकाधिकार के अहंकार में उसने डीजीसीए को दबाव में लाने की रणनीति पर काम किया।

 डीजीसीए ने उसे दो महीने का वक्त दिया है। सवाल यह है कि जो काम कंपनी 18 महीनों में नहीं कर पाई, उस काम को दो महीने में कैसे करेगी। सरकार को कंपनी के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की जरूरत है क्योंकि कंपनी ने सरकार को अपना काम करने से रोक दिया है। भविष्य में कोई और कंपनी इस तरह से ब्लैकमेल करके मनमानी न कर सके, इसके लिए भी ऐसा करना जरूरी है । कंपनी को सबक सिखाना जरूरी है कि भारत कोई बनाना रिपब्लिक नहीं है. यहां एक मजबूत सरकार काम कर रही है। ये संदेश देना जरूरी है कि ये सरकार जनता के हितों से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं कर सकती । 

राजेश कुमार पासी