राजनीति

भारतीय राजनीति में संक्रामक रोग ”सेक्यूलराइटिस”

nitishराज कुमार

उत्तर भारत के देवभूमि में प्राकृतिक आपदा ने जब लोगों के दिलों को हिलाकर रख दिया है। इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा के रूप में भी देखा जा रहा है। तब दूसरी तरफ भारतीय राजनीति में भी उठापटक तेज है, जब उत्तराखण्ड में तबाही मच रही थी उसी समय राजनैतिक पक्ष राजग में भी हलचल हुर्इ। राजग से टूटकर जदयू अलग हुआ। नितीश कुमार काँग्रेस के समर्थन से बिहार की सत्ता चलाने के लिए विश्वास मत प्राप्त किये। उनका आरोप रहा कि भाजपा ने अपने नेतृत्व की बागडोर नरेन्द्र मोदी के हाथों में दे कर सेक्यूलर ताकतों के साथ धोखा दिया है, धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करने के प्रयास हो रहे हैं। जबकि भाजपा अपने निर्णय पर अडिग दिख रही है।

जिस समय देश महँगार्इ, भ्रष्टाचार, सुरक्षा, प्राकृतिक त्रासदी, अराजकता, जैसे समस्याओं से जूझ रहा है। ऐसी विकट परिस्थिति में जनता के वोटों को साधनें के लिए राजनैतिक दल अपने-2 पाँसे फेक रहे हैं। देश में राजनैतिक हैसियत रखने वाले उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे बड़े प्रदेश भी साम्प्रदायिकता, जातिवादी, राजनिति की चौसर बिछा रहे है। आपदा राहत में भी साम्प्रदायिकता की बू आ रही है। भाजपा उत्तर प्रदेश अध्यक्ष डा0 लक्ष्मीकान्त बाजपेयी ने तो सरकार के राहत रवैये को देखते हुए एक दिन कहा कि उ.प्र. सरकार की भूमिका निराशाजनक है। उ.प्र.  के तीर्थयात्रियों से सपा की संवेदना नहीं, सरकार लैपटाप बांटने, ब्राह्राण सम्मेलन में व्यस्त हैं। उनका ध्यान राहत के तरफ इसलिए नहीं जा रहा है कि आपदा पीडि़त तीर्थयात्री हैं, हजयात्री नहीं हैं। दूसरी तरफ सपा नेता आजम खाँ राहत व्यवस्था पर भी व्यंग करते नजर आये।

खैर छोडि़ये! राजनीति की चर्चा की तरफ ही देखें देश के सर्वाधिक जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश में जहां लोक सभा की 80 सीटें हैं। वहां लोक सभा 2014 की सरगर्मी तेज हो गयी है विशेषकर 18% मुस्लिम, 11% ब्राह्राण मतों पर सपा, बसपा, काँग्रेस अपनी पूरी ताकत लगाये हैं जातीय राजनीति से उपजे सपा जो यादव वोटों के सहारे राजनीति करती है तो बसपा दलित वोटों की बाजार लगाती है। सतीश मिश्रा बसपा का भार्इचारा ब्राह्राण सम्मेलन कर दक्षिणा माँग रहे हैं। जबकि बसपा के नारे ”तिलक, तराजू, और तलवार को समाज भूल नहीं पाया है तभी बहन जी का आरक्षणराग, ब्राह्राण मतदाताओं को कितना भायेगा? सपा का परशुराम जयनित जैसे उत्सव दिखावा मात्र लगते हैं समाजवादी मुस्लिम राग से भी जनता त्रस्त है। वर्तमान में तुष्टिकरण की दुतरफा नीति चल रही है। सरकारी विकास योजनाओं में अधिकाधिक मुसलमानों को प्राथमिकता तो एक बात है दूसरी तरफ रोजमर्रा के जीवन में पुलिस थाने में भी प्रशासनिक दबाव के कारण कानून व्यवस्था की कमर तोड़ी जा रही है। जैसे मायाराज में हरिजन ऐक्ट के डर से आदमी सहमा रहता था, उसी प्रकार गलती के बाद भी मुसलमान से कोर्इ भिड़ना नहीं चाहता। अखिलेश सरकार की आतंकवादियों पर से मुकदमें वापसी, एक वर्ष के शासनावधि में 80 से अधिक साम्प्रदायिक दंगे इनके बढ़े हुए मनोबल के कारण बनते जा रहे हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को लेकर सपा समर्थन से चल रही काँग्रेसी भी सरकार पर गोले दागे जा रहे है।

जमीयत उलेमा हिन्द के महमूद गजनी कहते हैं कि सिर्फ कौम को प्रत्यासी बनाकर वोट नहीं लिये जा सकते, बसपा सांसद मुनकाद अली सपा को मुस्लिमों का दुश्मन बताते हैं, तथा धोखेबाज कहते हैं। उ.प्र.  में काँग्रेस भी अपने पुस्तैनी मुस्लिम वोटों के लिए कवायद कर रही है काँग्रेस के अल्पसंख्यक नेता मारूफ खान केनिद्रय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय द्वारा उ.प्र.  को 1100 करोड़ भेजे गये रूपये का ठीक से उपयोग न करने का सपा पर आरोप मढ़ते हुए कहते है कि सपा 70% धन राशि भी खर्च नहीं कर पायी। कुल मिलाकर उ.प्र.  में सपा, बसपा, काँग्रेस सभी नैतिक व्यवस्थाओं को ध्वस्त करते हुए मुस्लिम अवाम को पटाने में लगे हैं। 2014 के चुनाव में मुस्लिम कार्ड खेलने की पूरी योजना रची जा रही है। बिहार में नितीश कुमार जो प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न देखते हुए तीसरा मोर्चा काँग्रेस की शरण में जाकर बनाने में जुटे हैं उनकी भी नीति निराली है। भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद पूरा ध्यान मुस्लिम मतों पर लगाये हैं, जबकि लालू, रामविलास पासवान, काँग्रेस इसे कुटिल चाल बताते हुए कह रही है कि जब गुजरात दंगा हुआ था उस समय वे रेल मंत्री थे उसी समय सम्बन्ध क्यों नहीं तोड़े?

इन सभी झंझावतों के उलट तुष्टिकरण, अपराधिकरण क्षेत्रीय और जातिय राजनीति को चुनौति देते हुए भाजपा भी 2014 के चुनावी समर में विजय की बात कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह दो टूक कहते हैं कि संप्रग सरकार अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए सब नाटक कर रही है जिससे माया, मुलायम, नितीश जैसे सौदागर छदम धर्म निरपेक्षता की बात कर काँग्रेस का साथ दें रहे हैं ये लोग राजनीति में ”सेक्यूलराइटिस नामक महामारी फैलाने में लगे हैं। जो देश विभाजन के समय से चली आ रही है। 2002 के गुजरात दंगे के पहले भी देश में 20 से अधिक बड़े दंगे हुए जिसमें 16 काँग्रेस के शासन काल में हुए। जबकी गुजरात दंगे के दोषियों को सजा भी मिली। दूसरी तरफ काँग्रेस ने दिल्ली में सिक्खों के साथ क्या किया?

भाजपा ने चुनावी गणित को अपने पक्ष में करने के लिए ” दृषिटकोण पत्र अल्पसंख्यक समाज को केनिद्रत कर जारी करने जा रही है। अपने स्थापना काल से ही भाजपा में अल्पसंख्यक मोर्चा सक्रिय है। गुजरात, म0प्र0, छत्तीसगढ़, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखण्ड, हिमांचल प्रदेश, उ.प्र. , बिहार आदि राज्यों सहित केन्द्र में भी भाजपा की सरकारें रहीं हैं लेकिन उस समय शासन के दौरान या वर्तमान में जिन प्रदेशों में भाजपा का शासन चल रहा है वहाँ अल्पसंख्यकों की स्थिति कैसे बेहतर हुई इसके बारे में अल्पसंख्यक मोर्चा नेता अब्दुल रसीद, अल्पसंख्यकों के उत्थान, विकास की बात करते हैं। म.प्र., छत्तीसगढ़ जो भाजपा सुशासन के माडल बन रहे उन्हें देखने की बात हो रही है। पंथ निरपेक्षता की दुहार्इ दी जा रही है। उ.प्र.  में पिछड़े वर्ग के वोटों के लिए ”सामाजिक न्याय मोर्चा कमान संभालेगा।

कुल मिलाकर 2014 का बिगुल बज चुका है। सभी राजनीतिक दलों की तेजी से सक्रियता बढ़ा रही है। लेकिन पूरा देश नमोनिया से उद्ववेलित है या सेक्यूलराइटिस बिमारी से ग्रस्त है यह समय ही बतायेगा। परन्तु राष्ट्रीय एकता, विकास, समरसता के लिए मतदाताओं को विवेक से काम लेना पड़ेगा। कथनी, करनी को परखना सबके बस की बात भी नहीं है फिर भी लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि एवं समझदार होती है।