बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा यह कहना कि देश में बढ़ती हिंसा, अराजकता और भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों के लिए मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार जिम्मेदार है, पूरी तरह तथ्यपरक और यथार्थ के निकट प्रतीत होता है। यह केवल एक राजनीतिक आरोप नहीं, बल्कि वर्तमान परिस्थितियों का गंभीर आकलन है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अंतरिम सरकार के गठन के बाद जिस प्रकार बांग्लादेश में सामाजिक ताना-बाना कमजोर हुआ है, उससे यह आशंका और भी प्रबल होती जा रही है कि देश को सुनियोजित रूप से अस्थिरता की ओर धकेला जा रहा है।
वर्तमान शासन के दौरान चरमपंथी और कट्टरपंथी ताकतों का हौसला बढ़ा है। लोकतांत्रिक मूल्यों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे बुनियादी प्रश्न हाशिये पर चले गए हैं। विशेष रूप से हिंदू समुदाय सहित अन्य अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले यह दर्शाते हैं कि शासन-प्रशासन या तो मूकदर्शक बना हुआ है या फिर परोक्ष रूप से ऐसे तत्वों को संरक्षण दे रहा है। यह स्थिति किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अत्यंत चिंताजनक है।
शेख हसीना का यह आरोप भी पूरी तरह उचित जान पड़ता है कि अंतरिम सरकार भारत-विरोधी भावनाओं को जानबूझकर हवा दे रही है। हाल के दिनों में बांग्लादेश में भारत के खिलाफ जिस प्रकार के बयान, प्रदर्शन और दुष्प्रचार देखने को मिले हैं, वे स्वतःस्फूर्त नहीं बल्कि एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा प्रतीत होते हैं। भारत को हर समस्या की जड़ बताकर जनता का ध्यान वास्तविक मुद्दों—जैसे आर्थिक संकट, बेरोजगारी और प्रशासनिक विफलताओं—से हटाने का प्रयास किया जा रहा है।
यह एक निर्विवाद सत्य है कि बांग्लादेश के निर्माण में भारत की भूमिका ऐतिहासिक और निर्णायक रही है। 1971 के मुक्ति संग्राम में भारत ने न केवल बांग्लादेशी शरणार्थियों को आश्रय दिया, बल्कि अपने सैनिकों के बलिदान से बांग्लादेश को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके बाद भी भारत ने हर आपदा, हर संकट और हर विकासात्मक प्रयास में बांग्लादेश का साथ दिया है। ऐसे में भारत के प्रति शत्रुता का वातावरण बनाना न केवल इतिहास से मुंह मोड़ना है, बल्कि भविष्य के लिए भी घातक है।
भारत और बांग्लादेश के संबंध केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, भाषाई और मानवीय स्तर पर भी गहरे जुड़े हुए हैं। व्यापार, जल संसाधन, सीमा सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे विषयों पर दोनों देशों का सहयोग अनिवार्य है। भारत विरोध की राजनीति बांग्लादेश को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग कर सकती है और उसे उन शक्तियों के हाथों की कठपुतली बना सकती है, जिनका उद्देश्य क्षेत्र में अशांति फैलाना है।
आज बांग्लादेश के प्रबुद्ध नागरिकों, बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों और राष्ट्रहितैषी वर्ग की जिम्मेदारी बनती है कि वे जनता को सच्चाई से अवगत कराएँ। उन्हें यह समझाना होगा कि भारत से बैर नहीं, बल्कि सहयोग ही बांग्लादेश के हित में है। लोकतंत्र, शांति और विकास तभी संभव है जब कट्टरपंथ और नफरत की राजनीति को नकारा जाए।
अंततः यह कहना गलत नहीं होगा कि बांग्लादेश की वर्तमान चुनौतियों का समाधान भारत विरोध में नहीं, बल्कि भारत के साथ विश्वास और मैत्रीपूर्ण संबंधों को मजबूत करने में निहित है। यदि बांग्लादेश को स्थिर, समृद्ध और सुरक्षित भविष्य चाहिए, तो उसे उन साजिशों को पहचानना होगा जो उसे अपने सबसे भरोसेमंद मित्र से दूर करने का प्रयास कर रही हैं।
सुरेश गोयल धूप वाला