कविता

नशा:राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’

सड़क किनारे पड़ी थी एक लाश

उसके पास कुछ लोग

बैठे थे बदहवाश |

उनमे चार छोटे बच्चे

और उनकी माँ थी ,

बूढ़े माँ – बाप थे

कुँवारी बहन थी |

सभी का रो – रो

कर बुराहाल था ,

खाल से लिपटे ढांचे

बता रहे थे ,

वो….. परिवार

 

कितना बेहाल था |

मैंने पूछा एक आदमी से

भाई ये कैसे मर गया ,

क्या किसी वाहन से

दुर्घटना हो गयी |

लेकिन इसके शरीर पर

चोट तो है नहीं ,

आखिर इसकी जान

कैसे चली गयी |

उसने कहा ये पीता था शराब ,

और स्मैक का भी आदी था |

घरवालों को मारना पीटना

इसकी दिनचर्या थी ,

गाँजे की चिलम का

पक्का साथी था |

ज़मीन जायदाद सब

कौडियों के भाव बेच डाली ,

सारे परिवार को बर्बाद कर गया |

बेचारे घर वाले कल भी रोते थे ,

अब भी रोयेंगे वो नशेड़ी

उसे मरना था मर गया ||