राजेश कुमार पासी
इंडिया गठबंधन के नेताओं ने 11 अगस्त को संसद से लेकर चुनाव आयोग मुख्यालय तक विरोध मार्च निकालकर हंगामा किया जबकि चुनाव आयोग ने 30 नेताओं को अपनी बात रखने के लिए बुलाया था । वास्तव में विपक्ष यह दिखाना चाहता था कि उसके विरोध को दबाया जा रहा है, इसलिए ऐसा हंगामा किया गया कि पुलिस को उनकी गिरफ्तारियां करनी पड़ी । विदेशी समाचार पत्रों में यह खबर प्रमुखता के साथ प्रकाशित की गई कि भारत में विपक्ष को चुनावी धांधलियों के खिलाफ आवाज उठाने से रोका जा रहा है । इस पर कई विदेशी समाचार पत्रों द्वारा लेख प्रकाशित करके बताया जा रहा है कि भारत में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है । बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के कार्यक्रम पर विपक्ष द्वारा खड़े किये जा रहे विवाद के कारण विदेशी समाचार पत्रों द्वारा इस पारदर्शी प्रक्रिया को विवादास्पद बताया जा रहा है ।
राहुल गांधी ने 7 अगस्त को दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस करके चुनाव आयोग पर भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगाया है । उनका कहना है कि कर्नाटक में कांग्रेस को 16 सीटें मिलने की उम्मीद थी लेकिन वो केवल 9 सीटें ही जीत पाई । उनका आरोप है कि ऐसा केवल वोट चोरी से हो सकता है इसलिए वो इसे चुनाव चोरी कहते हैं । राहुल गांधी चुनाव आयोग के कर्मचारियों को धमकी देते हुए कहते हैं कि जब उनकी सरकार आएगी तो उनको इसका परिणाम भुगतना होगा । चुनाव आयोग ने राहुल गांधी को अपने आरोपों पर शपथ पत्र देने का कहा है ताकि वो मामले की जांच कर सके । राहुल गांधी कहते हैं कि वो शपथपत्र नहीं देंगे, उनका बयान ही शपथ पत्र माना जाए । सबसे अजीब बात यह है कि एक तरफ राहुल गांधी मतदाता सूची में फर्जी लोगों का नाम जोड़ने का आरोप लगाते हैं तो दूसरी तरफ बिहार में मतदाता सूची में फर्जी, अयोग्य और मृत लोगों के नाम हटाये जाने का विरोध कर रहे हैं ।
राहुल गांधी एक ऐसे व्यक्ति हैं जो बीमारी का ढिंढोरा पीट रहे हैं लेकिन बीमारी के इलाज का विरोध कर रहे हैं । उन्होंने 7 अगस्त को अपनी प्रेस कांफ्रेंस में जो खुलासा किया है, वो वास्तव में कोई खुलासा है ही नहीं बल्कि एक ऐसा सच है जो इस देश का हर व्यक्ति जानता है । सबको पता है कि मतदाता सूची में मृतकों और अयोग्य लोगों के नाम दर्ज हैं । इसके अलावा ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपने नाम कई जगहों पर दर्ज करवाए हुए हैं । राहुल गांधी ने कहा है कि बैंगलुरू सैंट्रल निर्वाचन क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा मतदाता चुपके से जोड़ दिए गए हैं । सवाल यह है कि नये वोटर जोड़ना कैसे गलत है लेकिन राहुल गांधी इन विसंगतियों को लेकर खुद ही नतीजे पर पहुंच गए हैं कि यह सब भाजपा ने अपने फायदे के लिए किया है । कांग्रेस की कर्नाटक सरकार के मंत्री राजन्ना ने इस मामले पर अपनी ही पार्टी और सरकार को घेर लिया है । उन्होंने कहा कि मतदाता सूची में संशोधन हमारी सरकार के दौरान ही हुआ है और यह काम कर्नाटक सरकार में काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा किया गया है । एक आदिवासी मंत्री राजन्ना को इसलिए बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि उन्होंने राहुल गांधी के झूठ की पोल खोल दी ।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि कांग्रेस सरकार के शासन में, उसके ही कर्मचारियों और अधिकारियों ने मतदाता सूची में भाजपा के लिए हेराफेरी कैसे कर दी । राहुल गांधी चुनाव आयोग के कर्मचारियों को धमकी दे रहे हैं कि उनकी सरकार आएगी तो वो कार्यवाही करेंगे । अब सवाल उठता है कि कर्नाटक में तो उनकी सरकार है तो कार्यवाही क्यों नहीं की गई है । क्या वो यह कहना चाहते हैं कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार आएगी तो वो कर्नाटक के कर्मचारियों को दंड देंगे । कानूनन किसी भी दल को मतदान प्रक्रिया या मतदाता सूची में गड़बड़ी पाए जाने पर नतीजों के 45 दिनों के अंदर अपनी शिकायत दर्ज करवानी होती है लेकिन राहुल गांधी और उनकी पार्टी ऐसा नहीं कर सकी ।
राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि कई ऐसे पते हैं जिन पर वहां रहने वाले लोगों की संख्या के मुकाबले कहीं ज्यादा मतदाता दर्ज हैं । यह भी एक आम समस्या है क्योंकि भारत में लगभग 40 करोड़ प्रवासी हैं जो अपना निवास स्थान जल्दी-जल्दी बदलते रहते हैं । वो उस घर के पते का इस्तेमाल करते हैं जो उन्हें ऐसा करने की इजाजत देता है । इसके कारण कई घरों में रहने वाले लोगों से कहीं ज्यादा मतदाता दर्ज हो जाते हैं । दूसरी बात यह है कि ऐसे लोग कई बार कई जगहों पर मतदाता बन जाते हैं और उनके कई वोटर कार्ड भी बन जाते हैं । इन विसंगतियों को तो बिहार में चुनाव आयोग ठीक कर रहा है और अब पूरे देश में इसे ठीक करने की मुहिम शुरु होने वाली है । अजीब बात यह है कि पूरा विपक्ष इसका विरोध कर रहा है ।
वास्तव में राहुल गांधी और दूसरे विपक्षी नेता चुनाव आयोग के खिलाफ अभियान नहीं चला रहे हैं बल्कि वो भाजपा के खिलाफ राजनीति कर रहे हैं । चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसे सारी शक्तियां संविधान से मिलती हैं । चुनाव आयोग सरकार के अधीन नहीं है बल्कि स्वतंत्र तरीके से अपना काम करता है । चुनाव आयोग का काम केन्द्र और राज्य सरकार के अधिकारी और कर्मचारी करते हैं । यह आरोप लगा देना सही नहीं है कि चुनाव आयोग किसी विशेष दल के लिए हेराफेरी कर रहा है । आरोप लगाना तब सही है जब आपके पास उसको साबित करने के लिए पक्के सबूत हों लेकिन सबूत के नाम पर विपक्ष के पास कुछ नहीं है । मतदाता सूची में विसंगतियां हैं इसलिए तो चुनाव आयोग गहन पुनरीक्षण कर रहा है । मतदाता सूची में विसंगतियां दिखा कर यह साबित नहीं किया जा सकता कि इससे किसी पार्टी को फायदा पहुंचाया गया है । अगर फर्जी वोटिंग हुई है तो किसके पक्ष में हुई है, उसे भी साबित करने की जरूरत है । सिर्फ विसंगतियों के आधार पर यह कह देना कि इससे भाजपा को फायदा हुआ है, पूरी तरह से गलत है । अगर भाजपा कहती है कि इससे कांग्रेस को फायदा हुआ है तो राहुल गांधी क्या जवाब देंगे । मतदाता सूची में जिन विसंगतियों का खुलासा राहुल गांधी ने किया था, वैसी ही विसंगतियों को भाजपा ने कांग्रेस नेताओं द्वारा जीती हुई सीटों पर ढूंढ निकाला है। क्या अब राहुल गांधी यह कहेंगे कि यह विसंगतियां कांग्रेस के नेताओं ने चुनाव जीतने के लिए करवाई थी । इस तरह देखा जाए तो कांग्रेस ने भी चुनाव की चोरी की है।
वास्तव में राहुल गांधी का निशाना चुनाव आयोग नहीं बल्कि मोदी सरकार है । राहुल गांधी को अब अहसास हो गया है कि वो मोदी से जीत नहीं सकते, इसलिए उनकी जीत को संदिग्ध बना रहे हैं। वो यह साबित करना चाहते हैं कि मोदी सरकार को जनता वोट नहीं दे रही है बल्कि भाजपा वोट चोरी करके सरकार बना रही है। इस तरह राहुल गांधी मोदी सरकार को मिले जनादेश का अपमान कर रहे हैं । उन्होंने कहा भी है कि हर सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर होती है लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर नहीं होती है। उन्हें मोदी सरकार का बार-बार चुनाव जीतना संदिग्ध लग रहा है इसलिए वो कह रहे हैं कि भाजपा चुनाव चोरी करके सरकार बना रही है। वो भूल गए हैं कि आजादी के बाद 55 साल तक कांग्रेस ने राज किया है। क्या वो कहना चाहते हैं कि नेहरू जी और इंदिरा जी बार-बार चुनाव इसलिए जीत रहे थे क्योंकि वो चुनाव चोरी कर रहे थे। क्या मनमोहन सिंह सरकार दोबारा चुनाव चोरी करके बनी थी ।
राहुल गांधी इस देश की जनता का अपमान कर रहे हैं, संविधान और लोकतंत्र का मजाक बना रहे हैं। इस देश का मतदाता बहुत समझदार है, वो सरकार को तब तक नहीं बदलता जब तक कि उसका अच्छा विकल्प उसके सामने न हो । 1977 तक देश की जनता ने सिर्फ कांग्रेस को चुना लेकिन आपातकाल के कारण पहली बार विपक्ष को सरकार बनाने का मौका दिया। जब विपक्ष ने अच्छा काम नहीं किया तो जनता ने कांग्रेस को दोबारा मौका दिया । ऐसे ही 2009 में मनमोहन सिंह सरकार को दोबारा इसलिए मौका मिला क्योंकि जनता के सामने अच्छा विकल्प नहीं था । 2014 में जनता को मोदी के रूप में एक विश्वसनीय चेहरा मिला तो सरकार बदल दी । 2019 और 2024 में जनता को विपक्ष में मोदी का विकल्प नहीं दिखा तो उसने मोदी को दोबारा मौका दिया। जिस तरह हमारा विपक्ष चल रहा है उससे लगता है कि 2029 में भी उसे मौका मिलने वाला नहीं है।
विडम्बना है कि पूरा विपक्ष राहुल गांधी के पीछे चल रहा है और राहुल गांधी को पता नहीं है कि वो कहाँ जा रहे हैं। जनादेश का अपमान करना विपक्ष को बहुत भारी पड़ने वाला है क्योंकि ये जनता का अपमान है । विपक्ष को अपनी हार का बहाना ढूंढने की जगह आत्मविश्लेषण करने की जरूरत है। उसे गंभीरता से यह विचार करने की जरूरत है कि जनता बार-बार मोदी सरकार को मौका क्यों दे रही है। जनता की समझ पर सवाल खड़े करना विपक्ष के लिए सही नहीं है।
राजेश कुमार पासी