जून, 1975 और जून, 2011

लालकृष्ण आडवाणी

हस्तरेखा विशेषज्ञ, ज्योतिषियों इत्यादि के प्रति मेरा सदैव अविश्वास रहा है। राजनीति में ऐसे अनेक हैं जो अपने विश्वस्त ज्योतिषी की सलाह के बिना किसी नए प्रोजेक्ट को शुरु करने से हिचकते हैं।

मैं अक्सर एक ऐसे अवसर का स्मरण करता हूं जब मेरा यह अविश्वास बुरी तरह से हिल गया।

1970 के दशक में हमारी पार्टी (तब जनसंघ) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एक प्रतिष्ठित पेशेवर ज्योतिषी डा. वसंत कुमार पंडित थे। वे मुंबई से थे (तब बम्बई)। वह पार्टी के प्रतिबध्द कार्यकर्ताओं में से थे जो कश्मीर के पूर्ण विलय के आंदोलन और आपातकाल के विरुध्द आन्दोलन सहित चौदह बार जेल गए थे। पार्टी में काम करते-करते पहले वह बंबई शहर जनसंघ और बाद में महाराष्ट्र प्रदेश जनसंघ के अध्यक्ष बने।

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गत् सप्ताह लखनऊ में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक हई। पार्टी अध्यक्ष श्री गडकरी ने 4 जून की शाम को मुझे समापन भाषण करने को कहा। मैंने अपने भाषण की शुरुआत इस टिप्पणी से की कि जून 1975 भारतीय राजनीति में कभी भी न भुलाये जा सकने वाले महीने के रुप में याद रहेगा। और मैंने आश्चर्य व्यक्त किया कि क्या जून 2011 भी हम सबके लिए ऐसा ही न भुलाये जा सकने वाला महीना बनने जा रहा है।

जून, 1975 में एक के बाद एक दो बड़ी घटनाएं घटीं।

11 जून को गुजरात विधानसभा चुनावों के परिणाम घोषित हुए। तब तक गुजरात कांग्रेस का अभेद्य दुर्ग था। लेकिन श्री मोरारजी देसाई के मार्गदर्शन में संयुक्त विपक्ष ने इस दुर्ग को धराशायी किया और राज्य विधानसभा में सफलता पाई।

उसके अगले दिन की घटना कांग्रेस पर बिजली गिरने समान थी। श्रीमती इंदिरा गांधी के विरुध्द दायर चुनाव याचिका के आधार पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने रायबरेली से उनका चुनाव रद्द कर दिया और भ्रष्ट चुनावी आचरण के आधार पर 6 वर्षों तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी।

इन दो घटनाओं ने स्वभाविक रुप से सभी गैर-कांग्रेसी क्षेत्रों में एक किस्म का आशावाद भर दिया। वस्तुत: इसी माहौल में हमारी पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक गुजरात विधानसभाई चुनावों की गणना के तत्काल बाद 15,16 तथा 17 जून को माऊण्ट आबू में हुई।

दूसरे दिन दोपहर के भोजन के पश्चात मैंने यूं ही वसंत कुमार से पूछा ”पण्डितजी, आपके नक्षत्र आगे के लिए क्या बोल रहे हैं? ”1976 की शुरुआत में लोकसभाई चुनाव होने थे। गुजरात के आधार पर मेरा राजनैतिक अनुमान मुझे 1976 के प्रति आशावादी बना रहा था। उनके उत्तर ने मुझे झकझोर दिया और साथ ही मेरे आशावाद को भी।

उन्होंने कहा ”आडवाणीजी, सच में मैं भी नहीं समझ पा रहा हूं, अपने स्वयं के अनुमान से जो मैं देख रहा हूं वे बताते हैं कि हम दो साल के वनवास की ओर बढ़ रहे हैं।”

दस दिन बाद 26 जून को प्रधानमंत्री ने आपातकाल की घोषणा कर दी।

वसंत कुमार की भविष्यवाणी के अनुरुप आपातकाल 21 महीने रहा !

वास्तव में यह दो वर्षीय वनवास ही सिध्द हुआ!

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सन् 2002 में अपने वर्तमान निवास स्थान 30, पृथ्वीराज रोड पर आने से पहले 32 वर्षों तक मैं C1/6, पण्डारा पार्क में रहा (1970 में जब से मैं पहली बार संसद के लिए चुना गया)। मेरे एकदम पडोस में टण्डन बंधु रहते थे: (जिनमें से एक गोपाल टण्डन, सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रुप में मेरे विशेष सहायक थे तो दूसरे बिशन टण्डन आपातकाल के दौरान श्रीमती गांधी के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव थे)।

बिशन टण्डन की पुस्तक ”पीएमओ डायरी” एक ऐसा दस्तावेज है जो बताता है कि तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों – न्यायाधीश हेगड़े, न्यायाधीश शेलट और न्यायाधीश ग्रोवर-की वरिष्ठता को नजरअंदाज करना एक सुनियोजित प्रपंच था जिसका उद्देश्य मुख्य रुप से न्यायाधीश हेगड़े को मुख्य न्यायाधीश बनने से रोकना तथा उनके स्थान पर ए.एन.रे को बैठाना था। प्रधानमंत्री इसकी इच्छुक थीं कि यह सुनिश्चित हो जाए कि यदि उच्च न्यायालय उनके विरुध्द चुनाव याचिका स्वीकार कर भी ले तो सर्वोच्च न्यायालय उसे ठुकरा सके। यह संभव तो हुआ मगर आपातकाल के बाद, क्योंकि संविधान में किये गये संशोधनों और कानूनों ने वरिष्ठता के उल्लंघन को निरर्थक बना दिया।

11-12 जून की दोनों घटनाओं के बाद विपक्ष कुछ गिरफ्तारियां इत्यादि की उम्मीद तो कर रहा था। लेकिन हम में से किसी ने अप्रत्याशित आपातकाल जैसे की उम्मीद नहीं की थी -जिसमें मीडिया पर पूर्ण सेंसरशिप, युध्द की तुलना में भी ज्यादा कठोर, यहां तक कि संसदीय बहसों की रिपोर्ट पर भी सेंसरशिप लोकनायक जयप्रकाश, मोरारजी भाई देसाई, वाजपेयीजी, और चन्द्रशेखरजी जैसे नेताओं को कारावास, सभी प्रमुख विपक्षी सांसदों तथा एक लाख से ऊपर विपक्षी कार्यकर्ताओं को बन्दी बनाना शामिल था।

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5 जून की सुबह चेन्नई में वेणु श्रीनिवासन (टीवीएस) की सुपुत्री का एन.आर नारायणमूर्ति (इंफोसिस) के सुपुत्र से विवाह का निमत्रंण मुझे मिला था। 4 जून को मैं दिल्ली पहुंचा और अपनी सुपुत्री प्रतिभा के साथ लगभग अर्ध्दरात्रि को चेन्नई।

इसके कुछ घंटे बाद प्रतिभा ने मुझे जगाया और टीवी खोलने को कहा और रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के भक्तों – पुरुषों, महिलाओं और बच्चों – पर हो रहे हमले को देखने को कहा। मैंने टीवी खोला और वास्तव में दिख रहे दृश्य रोंगटे खड़े कर देने वाले थे।

अगली सुबह हमारी स्थानीय ईकाई द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन में मैंने कहा: वहां जनरल डायर की बंदूकें और गोलियां नहीं थीं लेकिन महिलाओं और बच्चों पर होने वाले अत्याचारों ने जालियांवाला बाग कांड की याद ताजा करा दी।

अपने संवाददाता सम्मेलन में मैंने एक बार ताजा घटनाओं और 1975 में होने वाली घटनाओं के बीच साम्य की ओर ध्यान दिलाया।

एक बदनाम सरकार ही अपने कुकृत्यों का बचाव क्रुध्द जनमत के सामने करने में असमर्थ सिध्द होती है और एक हताश नेतृत्व ही इसी ढंग से व्यवहार करता हैं। मैंने राष्ट्रपति से आग्रह किया कि वे सरकार को संसद का आपात सत्र बुलाने हेतु कहें जिसमें तीन मुद्दों पर विचार किया जा सके: एक के बाद एक आए सामने आए घोटाले, विदेशों में ले जाए गये काले धन को वापस लाना और शांतिपूर्ण लोगों पर बरपा कहर। मैंने पुलिस को इस व्यवहार को ‘नंगा फासिज्म‘ करार दिया ।

पहले जब अन्ना हजारे ने लोकपाल मुद्दा उठाया तो उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ जोड़ दिया गया। इन दिनों बाबा रामदेव के आंदोलन को भी आरएसएस के साथ प्रायोजित बताया जा रहा है। किसी को भी नहीं भूलना चाहिए कि जब जयप्रकाश नारायण आपातकाल विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे तब उन्हें भी इस तरह के स्वर सुनने को मिले थे।

इस सन्दर्भ में मुझे ‘हिन्दू‘ के ‘बिजनेस लाइन‘ का यह सम्पादकीय बहुत महत्वपूर्ण लगा। ”डू पीपुल मैटर” शीर्षक से प्रकाशित इसका शुरुआती पैराग्राफ इस प्रकार है:

”पिछले आठ सप्ताहों से हजारे – रामदेव के अभियानों के अनवरत दबाव में फंसी सरकार हताशा में भ्रष्टाचार से लोगों का ध्यान हटाने के उद्देश्य से एक के बाद एक गलती कर रही है। लोगों के मन में यह मुख्य धारणा बन गई है कि भ्रष्ट को बचाने के लिए यह सरकार किसी भी हद तक जा सकती है। गलतियां तो अच्छे ढंग से लिपिबध्द हैं लेकिन सीधे-सादे तर्क अब सामने हैं। पहला कि सिविल सोसाइटी के नागरिकों को विधायी एजेण्डा हथियाने की अनुमति नहीं दी जी सकती; दूसरा कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के पीछे आरएसएस है। दूसरे तर्क को यदि पहले लें तो अवश्य पूछा जा सकता है: मान लीजिए यदि यह सत्य भी है कि आंदोलन के पीछे आरएसएस है, तो क्या इससे यह गैरकानूनी हो जाता है? क्यों सरकार भ्रष्टाचार से ध्यान हटाकर आरएसएस की ओर ले जा रही है? यदि आरएसएस के स्वयंसेवक भूकम्प या बाढ़ में सहायता करते हैं तो उनकी सहायता को सरकार अस्वीकार कर देगी? अत: बिन्दू यह नहीं है कि कौन क्या कर रहा है अपितु यह है कि क्या करना चाहिए। और यह स्पष्ट रुप से सरकार को अस्थिर करने के प्रयास” जैसी आपातकाल की शब्दावली का प्रयोग कर रहा है।”

2 COMMENTS

  1. मुझे वो वक्त याद आ रहा है. जनवरी ७५ में मेरी प्रथम तैनाती सेल्स टेक्स ऑफिसर के रूप में गाजिअबाद में हुई थी अतः दिल्ली संघ कार्यालय पर जाना बढ़ गया था. मार्च ७५ में दिल्ली में जनसंघ के अधिवेशन में जय प्रकाश नारायण विशेष वक्ता के रूप में पधारे थे.उसमे भी में गया था.जून ७५ में जिस दिन ईलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया था मै गाज़ियाबाद के तत्कालीन एस डी एम् टी जोर्ज जोजेफ, पुलिस उपाधीक्षक श्रीकांत त्रिपाठी तथा मेरठ के आर ऍफ़ सी के साथ कोतवाली में बैठा था. तभी दिल्ली परिवहन निगम की एक बस बहार से गुजरी जिसमे भरी भीड़ इंदिरा गाँधी जिंदाबाद तथा जस्टिस सिन्हा मुर्दाबाद के नारे लगा रही थी.त्रिपाठीजी ने कहा की बेकार लोकतंत्र का ढोंग कर रही हैं पूरे देश में मार्शल ला लगा दें.२२ जून को रामलीला मैदान में विशाल रैली थी मैदान के अन्दर और बाहर चारों तरफ तिल रखने की जगह भी नहीं थी. देसी विदेशी मीडिया भरा हुआ था. विजय कुमार मल्होत्रा जी सञ्चालन कर रहे थे. पीलू मोदी ने इंदिरा गाँधी के विरुद्ध कुछ कहा जिस पर मोरारजी ने माइक पकड़ कर कहा की हम इंदिरा बेन का मुर्दाबाद नहीं चाहते हैं हम चाहते हैं इंदिरा बेन लम्बी उम्र पायें ताकि वो लोकतंत्र की अवहेलना का परिणाम भोग सकें.रेली में मूसलाधार बारिश होने लगी लेकिन भीड़ हटने का नाम नहीं ले रही थी. मै अपने जीजाजी के साथ नारायणा में एक रिश्तेदार के घर गया जो उस समय रा में तैनात थे. उन्होंने पूछा की इस बारिश में भीग कर कहाँ से आ रहे हो. जब हमने बताया की रामलीला ग्राउंड में रेली से आ रहे हैं और जे पी नहीं आ पाए क्योंकि उनकी फलईट केंसल हो गयी थी. इस पर उन्होंने तपाक से कहा की गिरफ्तार तो नहीं हो गए? अगले दिन मै गाजिअबाद में उस समय उत्तर प्रदेश जनसंघ के संगठन मंत्री तथा वरिष्ट आर एस एस प्रचारक स्वर्गीय श्री कौशलजी के पास गया और उन्हें बताया की रा के एक अधिकारी की ये टिपण्णी की गिरफ्तार तो नहीं हो गए से ये पता चलता हाई की इंदिरा गाँधी ने जे पी को गिरफ्तार करने और उससे पैदा होने वाली परिस्थिति से निबटने का निर्णय ले लिया है. तथा कुछ अस्वाभाविक होने की आशंका लग रही है. कौशलजी ने कहा जो होगा देखा जायेगा. संघ के लोगों को विपरीत परिस्थितियों को झेलने की आदत है. २६ जून की सुबह जैसे ही समाचार सुनने के लिए ट्रांजिस्टर खोला तो सारी स्थिति साफ़ हो गयी. रास्ते में गाजिअबाद के संघचालक विष्णु प्रकाश मित्तल जी मिले और उन्होंने चिंता व्यक्त की. मैंने कहा की इस देश में तानाशाही पहली बार नहीं आयी है. पुराणों में हिरन्यकश्यप ने अपनी तानाशाही लगारखी थी लेकिन उसके बेटे ने ही उसके विरुद्ध बगावत करदी थी.और परिणाम स्वरुप इस देश की खम्बे की तरह जड़ जनता सिंह बन कर झपट पड़ी और खम्बे तरह जड़ नर नरसिंह बन गए तथा तानाशाह का खात्मा कर दिया. आपातकाल में संघ के आन्दोलन ने परिस्थितियों को बदला और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना हुई. आज जो अघोषित आपात स्थिति चल रही है उसमे भी राष्ट्रवादी व लोकतंत्रवादी पूरी ताकत से कामयाब होकर निकलेंगे. तथा भ्रष्ट व तानाशाही अहंकारियों का सर धूल में मिलेगा. अब अधिक वक्त नहीं है. लगता है पाप का घड़ा भरने वाला है.

  2. jo bhi rashtravaad ka parcham uthayega usko hi RSS ka vyakti bataya jayega. Kyonki RSS ke atirikt sabhi Rashtra Droh me Lipt Rajneetik Dal hain

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