धर्म-अध्यात्म

मात्र गोपाश्टमी के दिन दुलारने से नहीं बचेगी गौ माता!

गोपाश्टमी 14 नवम्बर पर विषेश

(कार्तिक शुक्ला अश्टमी को हिन्दु समाज परम्परा से गोपाश्टमी के रूप में मनाता रहा है किंतु वर्तमान समय में यह पर्व केवल रस्म अदायगी बनकर रह गया है। प्रस्तुत लेख में हम भारतीय गाय के सभी प्रकार के महत्व, लाभ, उसके संरक्षण आदि के बारें में चर्चा करेगें।)

हिन्दू गाय को परम्परा से माता मानते आये है। गौ केवल हिन्दूओं की माता नहीं है अपितु गावो विवस्य मातर्:। गौएं सारे विव की माता है। गाय समान रूप से सारें विव का पालन करने वाली माँ है। गौ के शरीर में 33 करोड़ देवीदेवता निवास करते है। एक गाय की पूजा करने से करोड़ों देवताओं की पूजा स्वयंमेव ही हो जाती है। गाय सब प्राणियों की माता है और प्राणियों को सब प्रकार के सुख प्रदान करती है।

गाय का धार्मिक/ सांस्कृतिक महत्व :

ऋग्वेद ने गाय को अघन्या कहा है। यजुर्वेद कहता है कि गौ अनुपमेय है। अथर्ववेद में गाय को संपतियों का घर कहा गया है। अमृतपान से ब्रह्माजी के मुख से फेन निकला, उससे गौएं उत्पन्न हुई। गोदुग्ध से क्षीर सागर बना। समुद्र मंथन से कामधेनु की उत्पत्ति हुई। पौराणिक मान्यताओं व श्रुतियों के अनुसार, गौएं साक्षात विष्णु रूप है, गौएं सर्व वेदमयी और वेद गौमय है। भगवान श्रीकृष्ण को सारा ज्ञानकोष गोचरण से ही प्राप्त हुआ। जिससे आगे चलकर सारें संसार का उद्घार करने वाली गीता का ज्ञान निकला। श्रीकृष्ण गौ सेवा से जितने प्रसन्न होते है उतने किसी अन्य प्रकार से नहीं। गणो भगवान का सिर कटने पर शिवजी कर मूल्य एक गाय रखा गया और वहीं पार्वती को देनी पड़ी। भगवान राम के पूर्वज महाराजा दिलीप नन्दिनी गाय की पूजा करते थे। भगवान भोलेनाथ का वाहन नन्दी दक्षिण भारत की आंगोल नस्ल का सांड था। जैन आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का चिह्न बैल था। गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में चारों फल गाय के चार थन है। महात्मा नामदेव ने दिल्ली के बादाह के आह्नवान पर मृत गाय को जीवनदान दिया। शिवाजी महाराज को समर्थ रामदास की कृपा से गौब्राहमण प्रतिपालक की उपाधि प्राप्त हुई। दाम गुरू गोविन्द सिंह ने चण्डी दी वार में दुर्गा भवानी से गौ रक्षा की मांग की है।

यही देहु आज्ञा तुर्क खपाऊँ। गऊघात का दोष जग सिउ मिटाऊँ॥

यही आस पूरन करों तु हमारी। मिटे कष्ट गौअन, छटै खेद भारी॥

भगवान बुद्ध को गाय के पास उस क्षेत्र के सरदार की बेटी सुजाता द्वारा गायों के दूध की खीर खानें पर तुरन्त ज्ञान और मुक्ति का मार्ग मिला। गायों को वे मनुष्य की परम मित्र कहते है। जैन आगमों में कामधेनु को स्वर्ग की गाय कहा गया है और प्राणिमात्र को अवध्या माना है। भगवान महावीर के अनुसार गौ रक्षा बिना मानव रक्षा संभव नहीं। साथ ही गाय दौलत की रानी है। ईसा मसीह ने कहा है कि एक बैल को मारना एक मनुष्य को मारने के समान है। स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते है कि एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है जबकि उसके मांस से 80 मांसाहारी लोग अपना पेट भर सकते है। गांधीजी ने कहा है कि गोवंश की रक्षा ईवर की सारी मूक सृष्टि की रक्षा करना है, भारत की सुख समृद्धि गाय के साथ जुड़ी हुई है। गाय प्रसन्नता और उन्नति की जननी है, गाय कई प्रकार से अपनी जननी से भी श्रेष्ठ है। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कहा था कि आजादी के बाद कलम की एक नोक से पूर्ण गोहत्या बंद कर दी जायेगी। प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद कहते थे कि भारत में गौ पालन सनातन धर्म है।

गाय का वैज्ञानिक महत्व

गाय के दूध में रेडियों विकिरण से रक्षा करने की सर्वाधिक क्षमता होती है।

गाय कैसा भी तृण पदार्थ चाहे वो विषैला ही हो, खाए तब भी उसका दूध शुद्ध गौर निरापद होता है।

गाय का दूध हृदय रोग से बचाता है, शरीर में स्फूर्ति, चुस्ती व आलस्यहीनता लाता है, स्मरण शक्ति को बाता है।

गाय के घी को आग पर डालकर धुंआ करने या हवन करने से वातावरण रेडियो विकिरण से बचता है।

गाय के रम्भानें की आवाज से मानसिक विकृतियां व रोग दूर होते है।

गाय के गोबर में हैजे के कीटाणुओ को खत्म करने की ताकत है, क्षय रोगियों को गाय के बाड़े में रखने से गोबरगौ मूत्र का गंध से क्षय रोग के कीटाणु मर जाते है।

एक तोला घी से यज्ञ करने पर एक टन आक्सीजन बनती है।

गय की री में सूर्यकेतु नाड़ी होती है जो सूर्य के प्रका में जाग्रत होती है और पीले रंग का पदार्थ छोड़ती है अतः गाय का दूध पीले रंग का होता है। यह केरोटिन तत्व सर्वरोग नाक, सर्व विष विनाक होता है।

रूस में प्रकाशित शोध के अनुसार कत्लखानों से भूकम्प की संभावनाएं बती है।

 

गाय का आर्थिक महत्व

राष्ट्रीय आय का प्रतिवर्ष बड़ा भाग पशुधन से प्राप्त होता है।

40,000 मेगावाट अवाक्ति पशुधन से प्राप्त होती है।

5 करोड़ टन दूध प्रतिवर्ष पशुधन से मिलता है।

लाखों गैलन गोमूत्र यानि कीट नियंत्रक गोवंश से प्राप्त होता है।

दो का कुल विद्युताकित का 70 फीसदी पशुाक्ति से प्राप्त हो सकता है।

एक गोवंशीय प्राणी के गोबर से बने केवल नाडेप खाद का मूल्य न्यूनतम 20 हजार रू. होता है।

गोवंश न केवल उत्तम दूध, दही, छाछ, मक्खन, घी देता है बल्कि औषधियों और कीट नियत्रंकों का आधार गोमूत्र भी देता है साथ ही उत्तम जैविक खाद का स्त्रोत गोबर भी देता है।

भारतीय गोवंश से बैल प्राप्त होते है। दो में आज भी 70 प्रतित खेती का काम बैलों द्वारा होता है, बैल भारतीय रेलों की अपेक्षा अधिक यातायात का काम करते है।

भारतीय गोवंश के मूत्र और गोबर से करीब 32 औषधियों का निर्माण किया जाता है जो कई राज्य सरकारों द्वारा मान्यता प्राप्त है।

भारत की खेती हमारे गोवंश पर और गोवंश भारतीय खेती पर निर्भर है।

गोमूत्र में तांबा होता है जो मानव शरीर में जाकर सोने में बदल जाता है। सोने में सर्वरोगनाक शक्ति होती है।

गाय के गोबर में 16 प्रकार के उपयोगी खनिज पाए जाते है।

मरें पशु के एक सींग में गोबर भरकर भूमि में दबाने से कुछ समय बाद एक एकड़ भूमि के लिए सींग या अणु खाद व मरें पशु के शरीर को भूमि में दबाने से समाधि खाद मिलता है तो कई एकड़ भूमि के लिए उपयोगी होता है।

गोमूत्र में आक, नाम या तुलसी आदि उबालकर कई गुणा पानी में मिलाकर बयि कीट नियत्रंक बनाते है।

गोबर का खाद धरती का कुदरती आहार है, उससे भूमि का उपजाऊपन बढता है।

गोरक्षा हमारा दृष्टिकोण एवं प्रयास गोवंश के महत्व को हमने विभिन्न पहलुओं से समझा है। इसकी रक्षा, परिपालन एवं संवर्धन इन तीन बातों पर विचार करने से हमारा दृष्टिकोण भी स्पष्ट होगा। किए गए प्रयास भी ध्यान में आयेगें, कुछ नया करने का संकल्प भी हम संजो पाए तो प्रयास सार्थक होगा। हमारा मत है कि केवल गोमाता ही नहीं संपूर्ण गोवंश की रक्षा होनी चाहिये, गोवंश को कटने से बचाना चाहीये, कत्लखाने, यान्ति्रक वधालाओं सहित बेद होने चाहिये। मांस निर्यात पर प्रतिबंध लगना चाहिये। हमारी गोवंश की कल्पना पिचम से भिन्न है। हम गाय को दूध, दही, छाछ, मक्खन, घी के लिये तथा बैल हल चलाने के लिए व बोझा ोने और दोनों को गोबरगौमूत्र के लिए पालते है। पिचम में गोवंश का खेती के लिए उपयोग नहीं होता। वहां दो प्रकार की गौएं पाली जाती है दूध के लिए व मांस के लिए। दूध के लिए जर्सी, होलस्टन आदि नस्ले है, मांस के लिए पाली जाने वाली गौऔ को मोटाताजा बनाया जाता है। हमारे गोवंश का मुख्य उत्पाद गोबर व गोमूत्र है जो हमारी खेती के लिए आवयक है, गोवंश मरने के बाद भी अनुपयोगी नहीं होता। ध्यान देने की बात है कि भारत में गोवध मुसलमानों के आने के बाद और अंग्रेजों की हुकूमत होने पर प्रारंभ हुआ। पहले गोवध का नाम भी किसी को पता नहीं था। मुस्लिम बादाहों ने गोवध को कानूनी अपराध करार दिया था किंतु अंग्रेजों के आने के बाद अपने साम्राज्य की नींव पक्की करने के लिए हिन्दू व मुसलमानों को लड़ाने व उनमें वैरभाव पैदा करने हेतु उन्होने हिन्दूओं की माता कही जाने वाली गौ का वध कराने के लिए मुसलमानों को उकसाया। इससे हिन्दूओं और मुसलमानों में विरोध बता गया। जस्टिस कुलदीपसिंह की बैंच के सामने जब बंगाल का केस आया तो मुसलमानों से प्रमाण मांगा कि उनके किस ग्रंथ में बकरीद पर भी गोवध करना अनिवार्य बताया गया है। किंतु वे कोई प्रमाण नहीं दे सके।

गोवंश रक्षण

गोरक्षा कार्य के तीन प्रमूख पहलु है गौऔ की रक्षा करना, उनको कत्लखानों में ताने से रोकना व मांस निर्यात बंद करना। 20 मार्च 1996 के बाद से विव हिन्दू परिषद के गो रक्षा विभाग ने सम्वत 2053 को गो रक्षा वर्ष के तौर पर मनाया। बजरंग दल व गौ रक्षा कार्यकर्ताओं ने चौकियां बनाकर अवैध गो निकास को रोका करीब डे लाख से अधिक गोवंश की रक्षा की गई। इसी वर्ष सौ से अधिक नए गौ सदनों की स्थापना की गई। गोरक्षा का कार्य आजादी प्राप्ति से पूर्व से ही इस दो में हो रहा है। स्वामी करपात्री जी महाराज, भाई हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रभुदत्तजी ब्रहमचारी, लाला हरदेव सहाय,स्वामी रामचन्द्र वीर और उनके पुत्र आचार्य धमेंर्न्द्र जी, आचार्य विनोबा भावे आदि ने इस क्षेत्र में अपना योगदान दिया। 1952 में मात्र चार सप्ताह के अंतराल में आर.एस.एस. द्वारा पौने 2 करोड़ से अधिक लोगों के हस्ताक्षर गोवध बंदी की मांग को लेकर कराए गए। 7-11-1996 को लाखों लोगो ने पूज्य संतो के नेतृत्व में संसद पर प्रदार्न किया, विल जनसभा की। इन्दिरा सरकार द्वारा इन गोभक्तों पर लाठीचार्ज, अश्रुगैस व गोलीवर्षण किया गया जिससे सैंकड़ों गौभक्त शहीद हुए। इस प्रकार से हिन्दू समाज के सभी मतपंथों के प्रमुख गोहत्या बंदी की मांग को लेकर प्रयासरत है।

गोवंश परिपालन

गोरक्षा का दूसरा पहलु है गौवां का ठीक से परिपालन। गोवंश को ठीक चारा, दाना, पानी मिलना चाहीये। रहने की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये। बीमार गौऔ के लिए डाक्टरों व दवाई का प्रबंध होना चाहिए। गोवंश के लिए गोचर भूमि हो, चरागाह साफसुथरें हो। गोवंश के गोबर के सही उपयोग के लिए गोबर गैस यंत्र लगने चाहिये। जिन चरागाहों पर अतिक्रमण हो चुके है उन्हे शीघ्र मुक्त कराया जाना चाहिए। देसी खादें तैयार करके रासायनिक खादों की हानियों से बचा जा सकता है। इन खादों से भूमि बंजर होती है, हर बार खाद की अधिक आवयकता होने से फसल की लागत ब जाती है, उत्पादों में विष का आं बता जाता है। गोमूत्र सर्वोत्तम कीटनाक है, खाद भी है। गोमूत्र से तैयार कीटनियत्रंक का प्रयोग करने से विषरहीत स्वस्थ उपज प्राप्त होती है। गोबरगोमूत्र से सभी पेट की बीमारियों का सफल उपचार होता है। कैंसर, गुर्दे रोग, टी. बी. जैसी भयंकर बीमारियों का इलाज गोमूत्र से होता है। भारत में गोवंश सदा से सम्पन्नता का द्योतक रहा है। गोदान सबसे श्रेष्ठ दान माना गया है। वैतरणी पार करने के लिए भी गोमाता एकमात्र सहारा मानी गई।

भारतीय गोवंश संवर्धन

गौरक्षा का तीसरा पहलू है कि भारतीय गौवां की नस्ल सुधारी जाए। बिना नस्ल सुधारे गोवंश की रक्षा का प्रयास विफल हो सकता है। विदशी नस्लो से संकरीकरण की बजाए अपनी ही नस्लों में क्रास ब्रीडिंग करवाया जाए। अधिक दूध प्राप्त करने हेतु भी यह आवयक है। इसी प्रकार भारतीय बैलों की नस्ल भी सुधारी जाए। चरागाहों की रक्षा की जानी चाहिए। भारतीय गोवंश के लिए चरागाह नितांत आवयक है।

गोवंश रक्षणसंविधान के मूलभूत सिद्धांतों में सम्मिलित हो गोवंश के रक्षण, पालन व संवर्धन का काम कुछ थोड़े समय में पूरा होने वाला नहीं है। इसके लिए लगातार प्रयास किए जाने की आवयकता है। गोवंश रक्षण को मात्र मार्गदार्क सिद्घांतों में शामिल किया जाना प्र्याप्त नहीं है। इसे भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्घांतों में सम्मिलित किया जाना चाहिए। यदि किसी कारण यह संभव न हो तो इसे सांझी/ संयुक्त/समवर्ती सूची में रखना चाहिए ताकि राज्य सरकारों के साथ साथ केन्द्र सरकार की भी गोवंश के रक्षण, पालन व संवर्धन की जिम्मेवारी हो जाये। सरकार को इस बाबत शीघ्र संविधान संसोधन भी करना चाहिए। ऐसा करने से ही कृषि प्रधान दो भारत का भविष्य उज्जवल होगा।