वीरेन्द्र सिंह परिहार
अमेरिका ने भारतीय सामानों पर 50 प्रतिशत का भारी-भरकम टैरिफ लगाकर सोचा था कि मोदी सरकार को घुटनों पर ला देंगे। रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीदने के चलते भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार देंगे। बहुत से भारतीयों को भी यह आशंका थी कि अमेरिकी टैरिफ के चलते भारत पर घोर संकट उत्पन्न हो गया है और इससे निकलने का शायद ही कोई रास्ता हो। एक तरह से यह भारतीय राष्ट्र के समक्ष एक बहुत बड़ी आपदा जैसे टूट पड़ी हो लेकिन मोदी सरकार ने इस आपदा को कुछ ऐसे झेला कि राष्ट्र जीवन पर इसका कोई खास दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिला। मुख्य रूप से इस संकट से निपटने में भारत की एक्सपोर्ट डायवर्सिफिकेशन की रणनीति काम आई। निश्चित रूप से मोदी सरकार यदि इस संकट के समाधान के लिये तेजी से काम न करती तो बर्बादी मुहाने पर ही खड़ी थी। सितम्बर 2025 में अमेरिका को सूती रेडीमेड गारमेंट निर्यात में जहाँ 25 प्रतिशत की कमी आई, वहीं समुद्री अत्पादों का निर्यात अमेरिका को 21.9 प्रतिशत कम हुआ। कुछ रत्न, आभूषण, बासमती चावल, चाय, कालीन और चमड़े के सामानों का निर्यात भी अमेरिका में घटा है। लेकिन भारत ने संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस और जापान जैसे देशों में अपना निर्यात बढ़ा दिया। इसी तरह से चीन, जापान और थाइलैण्ड जैसे देशों में 60 प्रतिशत से ज्यादा निर्यात बढ़ गया। इस तरह से अमेरिका से जो निर्यात घटा, उसकी भरपाई दूसरे देशो के माध्यम से पूरी हो गई।
भारत पूरी दुनिया को जो निर्यात करता है उसमें अमेरिका का हिस्सा करीब 18:20 प्रतिशत है। लेकिन कुछ क्षेत्रों में यह निर्भरता बहुत ज्यादा है। उदाहरण के लिये कालीन निर्यात में 60 प्रतिशत, कपड़े से बने सामानों का 50 प्रतिशत, आभूषण का 30 प्रतिशत और परिधान निर्यात का 60 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका को जाता है। लेकिन टैरिफ के चलते भारत के सबसे बड़े बाजार अमेरिका को निर्यात 11.93 प्रतिशत घटकर 5.46 अरब डालर का रह गया। बावजूद 25 प्रतिशत का झटका लगने के बावजूद सितम्बर 2025 में ही भारत के कुल निर्यात में 6.7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई जबकि अमेरिका को 11.93 प्रतिशत निर्यात घट चुका था। यह स्थिति तब आई जब 7 अगस्त से अमेरिका ने भारतीय सामानों के निर्यात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया और 25 अगस्त को इसे दुगुना कर दिया। जिसके चलते बासमती चावल और चाय का अमेरिका को निर्यात कम हुआ है लेकिन यू.ए.ई., ईराक और जर्मनी को चाय का निर्यात बढ़ा। अकेले बासमती चावल का निर्यात ईरान को छः गुना बढ़कर 4.10 करोड़ डालर हो गया। हाथ से बने कालीन का अमेरिका को निर्यात 26.14 प्रतिशत कम हुआ, लेकिन स्वीडन और कनाडा में बढ़ गया। अपने बाजार विविधीकरण अभियान के तहत सरकार द्वारा उत्तरी अमेरिका, यूरोप, एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमेरिका के 40 प्रमुख देशों को निर्यात बढ़ाया जा रहा है। यह स्थिति तब जब चीन से सस्ती प्रतिस्पर्धा और भारी छूट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
स्वतः अमेरिकी रेटिंग एजेंसी मूडीज ने ही इस सम्बन्ध में सच्चाई स्पष्ट करते हुये उपरोक्त तथ्यों की पुष्टि की है। मूडीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि मजबूत पूँजी प्रवाह और सकारात्मक निवेश के चलते भारत को बाहरी झटको से निपटने के लिये वित्तीय सुरक्षा प्रदान की है। वहीं घरेलू माँग अभी भी बढ़ोत्तरी का मुख्य इंजन बनी हुई है। भारतीय इकोनामी में मजबूती के पीछे मंहगाई पर काबू और ब्याज दरों में कटौती की अहम भूमिका रही है। मूडीज ने भारतीय अर्थव्यवस्था में जहाँ 6.5 प्रतिशत बढ़ोत्तरी का अनुमान लगाया है, वहीं वैश्विक जीडीपी 2.5 से 2.6 तक रहने का ही अनुमान है। जबकि उभरती अर्थव्यवस्था करीब 4 प्रतिशत की दर तक ही बढ़ सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की ताजा स्थिति यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था जुलाई-सितम्बर तिमाही में 8.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी है जो पिछली 6 तिमाही में सर्वाधिक है जबकि जीएसटी में कटोती का पूरा असर आना अभी बाकी है, लेकिन ये नतीजे उम्मीद से ज्यादा बेहतर हैं। एक अक्टूबर को आरबीआई ने पालिसी मीटिंग में वित्त वर्ष 2026 के लिये इकोनामी ग्रोथ का अनुमान 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया था। इसका मतलब यह कि दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ आरबीआई के अनुमान से ज्यादा है। यह पिछले साल की इसी तिमाही के 5.6 प्रतिशत के मुकाबले एक बड़ी छलांग है। नामिनल जीडीपी में भी 8.7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
कुल मिलाकर राहुल गाँधी जैसे राजनीतिज्ञ जो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के सुर में सुर मिलाकर भारतीय इकोनामी को डेड बता रहे थे। राहुल गाँधी किसी भी तरह से सत्ता में आने का प्रज्यासा इस आधार पर लगाये बैठे थे कि अमेरिकी टैरिफ के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था सिर्फ कमजोर ही नहीं, वरन गहरे दुष्चक्र में फंस जायेगी, जिससे लम्बे समय से सत्ता में वापिसी का सपना साकार हो सकता है, वह भारतीय अर्थव्यवस्था के इस उछाल के चलते एक बार फिर गहरे अवसाद और निराशा में डूब गये होंगे। कोरोना से लेकर और तमाम संकटो से जिस तरह से मोदी सरकार ने देश को उबारा है, और किसी भी विपरीत परिस्थिति में उसकी रफ्तार धीमी नहीं पड़ने दी है। जिसके चलते जहाँ एक तरफ गरीबों के कल्याण और विकास के लिये व्यापक स्तर पर योजनाएं चलाई जा रही हैं, वहीं रक्षा जैसे क्षेत्र में जहाँ पहले देश मात्र आयातक था, वहीं अब बड़े पैमाने पर निर्यातक बन चुका है। ऐसा लगता है कि मानो देश को जैसे विकास के पंख लग गये हों। निश्चित रूप से यह मोदी सारकार की ‘नेशन फ्रस्ट’ ईमानदारी, प्रमाणिकता और गहरी देशभक्ति का परिणाम है। इसके आधार पर दुष्यन्त कुमार की यह लाईने समीचीन हैं- ‘‘कौन कहता है, आसमान में सुराख हो नहीं सकता, जरा एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।’’