राजस्थानी के भीष्म पितामह कहलाते हैं कन्हैयालाल सेठिया

‘ आ तो सुरगां नै सरमावै, ईं पर देव रमण नै आवै,

ईं रो जस नर नारी गावै, धरती धोरां री !

रज कण कण नै चमकावै, चन्दो इमरत रस बरसावै,

तारा निछरावळ कर ज्यावै, धरती धोरां री !

काळा बादळिया घहरावै, बिरखा घूघरिया घमकावै,

बिजळी डरती ओला खावै, धरती धोरां री !

लुळ लुळ बाजरियो लैरावै, मकी झालो दे’र बुलावै,

कुदरत दोन्यूं हाथ लुटावै, धरती धोरां री !’ जब जब यह अमर गीत कहीं पर भी गूंजता है तो हर किसी के पैर इस गीत पर थिरकने लगते हैं और बरबस ही हमें याद आ जाती है राजस्थानी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया जी की। सच ही कहा है किसी ने कि अमर होने के लिए अधिक लिखने की जरूरत नहीं है। बहुत कम ही लोगों को यह जानकारी होगी कि सेठिया जी की प्रसिद्ध कविता धरती धोरा पर अन्‍तरराष्‍ट्रीय ख्‍याती प्राप्‍त फिल्‍म निर्माता गौतम घोष द्वारा “लैंड आफ द सैंड ड्यून्स” शीर्षक से वृतचित्र का निर्माण किया गया जिसको भारत सरकार द्वारा स्‍वर्णकमल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था। कहना ग़लत नहीं होगा कि अधिक लिखने की बजाय कम लिखकर भी अमरता को प्राप्त किया जा सकता है और सेठिया जी ने साहित्य के क्षेत्र में यह अमरता प्राप्त की है। जानकारी देना चाहूंगा कि श्री कन्हैयालाल सेठिया, जिन्हें राजस्थानी का भीष्म पितामह भी कहा जाता है, राजस्थान के इतिहास में एक बहुत ही जाना-माना नाम है। आप राजस्थानी भाषा के बहुत ही प्रसिद्ध कवि रहे हैं। अपने अनूठे, जोरदार व दमदार साहित्य सर्जन से आपने अन्य साहित्यकारों के समक्ष यह साबित कर दिखाया कि आप केवल और केवल  राजस्थानी कवि नहीं थे, बल्कि पूरे देश के कवि हैं। आपका जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के चूरू जिले के सुजानगढ़ कस्बे में हुआ था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आपने राष्ट्रवादी काव्य की रचना कर राजस्थानी साहित्य के क्षेत्र में एक अनूठी छाप छोड़ी। आपकी कृति ‘लीलटांस’ ने आपको साहित्य की दुनिया में स्थापित किया। 1976 ई. में आपको राजस्थानी काव्यकृति ‘लीलटांस’ के लिए साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा राजस्थानी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कृति के नाते पुरस्कृत किया गया था।’लीलटांस’ के अलावा उनकी कुछ प्रमुख कृतियों में क्रमशः रमणियां रा सोरठा, गळगचिया, मींझर, कूंकंऊ, धर कूंचा धर मंजळां, मायड़ रो हेलो, सबद, सतवाणी, अघरीकाळ, दीठ, कक्को कोड रो, लीकलकोळिया एवं हेमाणी शामिल हैं। राजस्थानी के अलावा उन्होंने हिंदी, उर्दू में भी काम किया। उर्दू में ताजमहल एवं गुलचीं,  हिंदी में वनफूल, अग्णिवीणा, मेरा युग, दीप किरण, प्रतिबिम्ब, आज हिमालय बोला, खुली खिड़कियां चौड़े रास्ते, प्रणाम, मर्म, अनाम, निर्ग्रन्थ, स्वागत, देह-विदेह, आकाशा गंगा, वामन विराट, श्रेयस, निष्पति एवं त्रयी तथा राजस्थानी भाषा में रमणियां रा सोरठा, गळगचिया, मींझर, कूंकंऊ, धर कूंचा धर मंजळां, मायड़ रो हेलो, सबद, सतवाणी, अघरीकाळ, दीठ, क क्को कोड रो, लीकलकोळिया , हेमाणी ,पिथल और पाथल,जमीन रो धनी कुन, धरती धोरा री प्रमुख हैं।आपकी शिक्षा कोलकाता विश्वविद्यालय, स्काटिश चर्च कालेज में हुई थी। 2005 ई में आपको राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी की मानद उपाधि प्रदत्त की गई। इसी ईस्वी में आपको राजस्थान फाउन्डेशन, कोलकाता चेप्टर द्वारा ‘प्रवासी प्रतिभा पुरस्कार’ से सम्मानित भी किया गया। 2004 ई में आपको राजस्थानी भाषा संस्कृति एवं साहित्य अकादमी बीकानेर द्वारा राजस्थानी भाषा की उन्नति में योगदान हेतु सर्वोच्च सम्मान ‘पृथ्वीराज राठौड़ पुरस्कार` से सम्मानित किया गया था। 1992 में आपको राजस्थान सरकार द्वारा ‘स्वतन्त्रता सेनानी` का ताम्रपत्र, 1988 में हिन्दी काव्यकृति ‘निर्ग्रन्थ’ पर भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा ‘मूर्तिदेवी साहित्य पुरस्कार`, 1987 ई में राजस्थानी काव्यकृति ‘सबद` पर राजस्थानी अकादमी का सर्वोच्च ‘सूर्यमल मिश्रण शिखर पुरस्कार, 1984 में राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर द्वारा अपनी सर्वोच्च उपाधि ‘साहित्य मनीषी`, 1983 में राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर द्वारा सर्वोच्च सम्मान ‘साहित्य मनीषी` की उपाधि से अलंकृत करने के अलावा साहित्य के क्षेत्र में अनेक पुरस्कारों व उपाधियों से नवाजा गया। इतना ही नहीं,

राजस्थानी कविता के सम्राट सेठिया को मृत्युप्रांत 31 मार्च 2012 को राजस्थान रत्न सम्मान देने की घोषणा की। आपके पिता का नाम स्वर्गीय छगनमलजी सेठिया एवं माता का नाम मनोहरी देवी था। आपका विवाह 1937 ईस्वी में श्रीमती धापू देवी के साथ हुआ था। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004 में आपको पद्मश्री, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा 1988 में ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी साहित्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। आप एक रचनाकार ही नहीं बल्कि एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, सुधारक, परोपकारी और पर्यावरणविद भी थे। ‘पाथल और पीथल’ भी इनकी ही महाराणा प्रताप पर वीर रस की एक लोकप्रिय व अत्यंत प्रसिद्ध रचना है। कुछ पंक्तियां देखिए -अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो। नान्हो सो अमरयो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो। हूं लड्यो घणो हूं सह्यो घणो मेवाड़ी मान बचावण नै,

हूं पाछ नहीं राखी रण में बैर्यां री खात खिडावण में,जद याद करूँ हळदीघाटी नैणां में रगत उतर आवै,सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,पण आज बिलखतो देखूं हूँ जद राज कंवर नै रोटी नै,तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूँ ,भूलूं हिंदवाणी चोटी नै…!’ पाठकों को बताता चलूं कि सेठिया जी राष्ट्र पिता गांधीजी से बड़े प्रभावित थे। जानकारी मिलती है कि उन्हीं के प्रभाव से वे खादी के वस्त्र धारण करते थे, दलित उद्धार के कार्य करते थे तथा राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत रचनाएं लिखा करते थे। इनकी रचना ‘अग्निवीणा’ तो अंग्रेजी हुकूमत को ललकार थी, जिसके कारण उन पर राजद्रोह का केस भी लग गया था तथा इसके कारण इन्हें जेल भी जाना पड़ा था। इतना ही नहीं आप बीकानेर प्रजामंडल के सदस्य भी रहे तथा भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान कराची में इन्होंने जनसभाएं कर लोगों को जागृत करने की दिशा में कार्य किया। आपने मायड़ भाषा राजस्थानी की मान्यता और उसे जीवन्त रखने के लिए भी काफी संघर्ष किया था। अंत में यही कहूंगा कि सेठिया जी ने राजस्‍थानी भाषा में रचे बसे मिठास से न केवल राजस्‍थान अपितु पूरे भारतवर्ष को परिचित करवाया। ऐसे सच्चे समाज सुधारक, स्‍वतंत्रता सेनानी व राजस्‍थानी भाषा के इस सपूत का 11 नवम्‍बर, 2008 को निधन हो गया लेकिन उनकी रचनाएं आज भी हम सभी के जेहन में हैं और युगों युगों तक हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत रहेंगी।

सुनील कुमार महला

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