पुनीत उपाध्याय
बड़ी अदा के साथ मुंह में खैनी तंबाकू ठूसकर और फिर ठसक के साथ सड़क पर पीक फैंकने वालों के लिए बुरी खबर सामने आई है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ग्लोबल हेल्थ में हाल में प्रकाशित एक अध्ययन से खुलासा हुआ है कि भारत में शराब के साथ तंबाकू और खैनी चबाने की लत लोगों को कैंसर के मुंह में धकेल रही है। भारत में मुंह के कैंसर के हर दस में से छह यानी 62 फीसदी मामलों के लिए ये ही जिम्मेदार है। यानी जब शराब और तंबाकू साथ-साथ शरीर में जाते हैं तो उनका असर मिलकर कई गुणा ज्यादा जानलेवा हो जाता है। भारत में मुंह का कैंसर दूसरा सबसे आम कैंसर है। इसके हर साल करीब 1.44 लाख नए मामले सामने आते हैं। यह बीमारी हर साल देश में 80 हजार जिंदगियों को निगल रही है। स्टडी से पता चला है कि यह बीमारी खासतौर पर गाल और होंठों की अंदरूनी नरम परत (बक्कल म्यूकोसा) को प्रभावित करती है। इससे पीड़ित लोगों में से आधे से भी कम (करीब 43 फीसदी) पांच साल तक जीवित रह पाते हैं। भारतीय पुरुषों में इसके मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और अब यह दर करीब 15 प्रति एक लाख तक पहुंच चुकी है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2010 से 2021 के बीच देश के पांच केंद्रों पर कैंसर से पीड़ित 1,803 मरीजों और 1,903 स्वस्थ लोगों की तुलना की है। इनमें से अधिकांश प्रतिभागी 35 से 54 वर्ष के थे जबकि करीब 46 फीसदी मरीज 25 से 45 साल की उम्र के थे यानी यह बीमारी युवाओं को भी तेजी से चपेट में ले रही है। शोधकर्ताओं के मुताबिक शराब और तंबाकू साथ लेने से मुंह के कैंसर का खतरा चार गुणा से भी ज्यादा बढ़ जाता है। अनुमान के अनुसार भारत में बक्कल म्यूकोसा कैंसर के ज्यादातर मामले इन्हीं दोनों आदतों के मिलेजुले असर की वजह से सामने आते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक शराब में मौजूद इथेनॉल मुंह की अंदरूनी परत को कमजोर बना देता है जिससे तंबाकू में मौजूद कैंसर पैदा करने वाले तत्व आसानी से शरीर में प्रवेश कर पाते हैं। वहीं देसी शराब जैसे महुआ, देसी दारू, चुल्ली, अपोंग में अक्सर मेथनॉल और एसीटैल्डिहाइड जैसे जहरीले तत्व मिल सकते हैं क्योंकि इनका ज्यादातर उत्पादन बिना किसी निगरानी के होता है। यही वजह है कि ऐसी शराब से कैंसर का खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है। भारत में देसी शराब का बाजार करीब पूरी तरह अनियंत्रित है। इसमें कभी.कभी इतनी ज्यादा शराब होती है कि वो 90 फीसदी तक पहुंच जाती है जो बेहद खतरनाक हो सकती है। हालांकि साथ ही वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि शराब के सेवन की कोई भी मात्रा सुरक्षित नहीं है। उन्हें उम्मीद है कि अगर शराब और तंबाकू से बचा जाएए तो भारत से मुंह के कैंसर को काफी हद तक खत्म किया जा सकता है।
पूर्वोत्तर उत्तरी और मध्य क्षेत्रों में इसकी दर सबसे अधिक
भारत में ओरल कैंसर के आंकड़े क्षेत्र के अनुसार भिन्न.भिन्न हैं। पूर्वोत्तर, उत्तरी और मध्य क्षेत्रों में इसकी दर सबसे अधिक है विशेष रूप से पुरुषों में जिसका मुख्य कारण तंबाकू या सुपारी का अधिक सेवन है। वहीं, केरल में आमतौर पर इसकी दर कम पाई जाती है। उत्तर प्रदेश, बिहार और पूर्वोत्तर राज्य इसके प्रमुख केंद्र हैं जहां सबसे अधिक मामले धूम्रपान रहित तंबाकू, धूम्रपान और शराब के सेवन से जुड़े हैं खासकर 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों में। स्थानीय आंकड़ों में कुछ कमी दिखने के बावजूद यह एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है। गत माह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस रिलीज के अनुसार तंबाकू चबाना ओरल कैंसर का एक बड़ा रिस्क फैक्टर है। तंबाकू न खाने वालों की तुलना में तंबाकू चबाने वालों में ओरल कैंसर होने का रिस्क 26 गुना ज़्यादा होता है। जेनेटिक ससेप्टिबिलिटी मार्कर ज़्यादा जेनेटिक रिस्क स्कोर वाले लोगों में रिस्क को और दोगुना कर देते हैं।
पुनीत उपाध्याय