मस्ती के स्कूल में बच्चे 

प्रभुदयाल श्रीवास्तव 

                 

   मस्ती के स्कूल में बच्चे 

   खेल रहे हैं धूल में बच्चे ,

   भँवरे बनकर फूल में बच्चे| 

   नंगे बदन उघाड़े हैं ये 

   खुशियों के हरकारे हैं ये 

   खाता कोई रोटी पुंगा 

   चूसे कोई अंगूठा चुंगा

   उछल -उछल  पींगें भरते हैं 

   कैसे झूलम झूल में बच्चे |

  एक दूजे को धकियाते हैं 

  फिर पीछे दौड़े जाते हैं 

  इस ने उसको पटक दिया है 

  उसने इसको झटक दिया है 

  हो -हल्ला है धूम धड़ाका 

  ठिल-ठिल  की जड़ मूल में बच्चे |

 मन के सब भोले भाले हैं 

 कुछ गोरे  से कुछ काले  हैं 

 कुछ हौले -हौले मुस्काते 

 कुछ हैं हंसकर दांत दिखाते

 नाम लिखाने  जाते जैसे  

 मस्ती के स्कूल में बच्चे | 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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