कविता

 मस्ती के स्कूल में बच्चे 

प्रभुदयाल श्रीवास्तव 

                 

   मस्ती के स्कूल में बच्चे 

   खेल रहे हैं धूल में बच्चे ,

   भँवरे बनकर फूल में बच्चे| 

   नंगे बदन उघाड़े हैं ये 

   खुशियों के हरकारे हैं ये 

   खाता कोई रोटी पुंगा 

   चूसे कोई अंगूठा चुंगा

   उछल -उछल  पींगें भरते हैं 

   कैसे झूलम झूल में बच्चे |

  एक दूजे को धकियाते हैं 

  फिर पीछे दौड़े जाते हैं 

  इस ने उसको पटक दिया है 

  उसने इसको झटक दिया है 

  हो -हल्ला है धूम धड़ाका 

  ठिल-ठिल  की जड़ मूल में बच्चे |

 मन के सब भोले भाले हैं 

 कुछ गोरे  से कुछ काले  हैं 

 कुछ हौले -हौले मुस्काते 

 कुछ हैं हंसकर दांत दिखाते

 नाम लिखाने  जाते जैसे  

 मस्ती के स्कूल में बच्चे |