प्रभुदयाल श्रीवास्तव
मस्ती के स्कूल में बच्चे
खेल रहे हैं धूल में बच्चे ,
भँवरे बनकर फूल में बच्चे|
नंगे बदन उघाड़े हैं ये
खुशियों के हरकारे हैं ये
खाता कोई रोटी पुंगा
चूसे कोई अंगूठा चुंगा
उछल -उछल पींगें भरते हैं
कैसे झूलम झूल में बच्चे |
एक दूजे को धकियाते हैं
फिर पीछे दौड़े जाते हैं
इस ने उसको पटक दिया है
उसने इसको झटक दिया है
हो -हल्ला है धूम धड़ाका
ठिल-ठिल की जड़ मूल में बच्चे |
मन के सब भोले भाले हैं
कुछ गोरे से कुछ काले हैं
कुछ हौले -हौले मुस्काते
कुछ हैं हंसकर दांत दिखाते
नाम लिखाने जाते जैसे
मस्ती के स्कूल में बच्चे |