पतंग, पुण्य और स्नान, दान का पर्व – मकर संक्रांति

डॉ घनश्याम बादल

 सारा देश 14 जनवरी को शीत ऋतु के अंत और वसंत ऋतु के आगमन के प्रतीक मकर संक्रांति का पर्व मना रहा है । मकर संक्रांति का पर्व ऐसा अकेला पर्व है जो सौर चक्र पर आधारित आंग्ल वर्ष की निश्चित तिथि पर मनाया जाता है। मकर संक्रांति केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका ज्योतिषीय, वैज्ञानिक और भौगोलिक आधार भी है।

 सूर्य के कर्क राशि से मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाए जाने वाला मकर संक्रांति पर्व  देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है।

हिंदू धर्मग्रंथों में मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व विशेष रूप से उल्लेखित है।  माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने आते हैं, महाभारत के युद्ध में जब भीष्म अर्जुन के बाणों से बिंधे शरशैया पर लेटे हुए मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थेतब सूर्य दक्षिणायन था और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मोक्ष प्राप्ति हेतु सूर्य का उत्तरायण होना आवश्यक माना जाता है।  कहते हैं जैसे ही सूर्य उत्तरायण हुआ भीष्म ने प्राण त्याग दिए इस प्रकार से भीष्म के मोक्ष की प्राप्ति के प्रसंग को भी मकर पर्व संक्रांति रेखांकित करता है।

एक अन्य दंतकथा के अनुसार राजा बलि के अहंकार को नष्ट करने के लिए जब भगवान विष्णु ने वामन के रूप में उन्हें पाताल जाने को विवश कर दिया था । दक्षिण भारत में इस पर्व को पोंगल के नाम से मनाया जाता है और उत्तर भारत में यही मकर संक्रांति का पर्व है।  यह दिन सूर्य की उत्तरायण यात्रा के आरंभ का प्रतीक भी है, जिसे शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का समय माना जाता है।

ज्योतिषीय दृष्टि से, सूर्य का मकर राशि में प्रवेश धन, स्वास्थ्य और समृद्धि के नए अवसर लाता है। मकर संक्रांति के साथ ही सूर्य की उत्तरायण यात्रा शुरू होती है। इसे “देवताओं का दिन”‌भी कहा जाता है।संक्रांति काल सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, इस दिन किया गया दान, पूजा, और यज्ञ विशेष फलदायक होता है। ज्योतिष के अनुसारसूर्य का मकर राशि में प्रवेश जीवन में नई ऊर्जा, समृद्धि और प्रगति का द्वार खोलता है तथा कार्यों में सफलता और स्वास्थ्य में सुधार लाने का समय माना जाता है।

आज के समय में यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है।   यह पर्व प्रकृति, आध्यात्मिकता और मानवता के बीच संतुलन का संकेत देता है।

एक पर्व अनेक रंग

मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न नामों तथा तौर तरीकों से देश भर में मनाया जाता है कहीं इसे पोंगल कहा जाता है तो कहीं लोहड़ी और कहीं मकर संक्रांति इस पर्व के स्थान एवं संस्कृति के अनुसार अलग-अलग रंग हैं।  उत्तर भारत में मकर संक्रांति एवं लोहड़ी के पर्व एक साथ मनाएं जाते हैं। एक दिन पहले अग्नि प्रज्ज्वलित कर परिवार और मित्र मिलकर लोहेड़ी का उत्सव मनाते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे खिचड़ी पर्व कहा जाता है, जहां खिचड़ी, तिल के लड्डू, और दान का विशेष महत्व है।

पश्चिम भारत में महाराष्ट्र में मकर संक्रांति पर महिलाएं ‘हल्दी-कुमकुम’ का आयोजन करती हैं। लोग एक-दूसरे को तिल-गुड़ देकर कहते हैं, “तिल गुड़ घ्या, गोड गोड बोला,” जिसका अर्थ है मिठास और सौहार्द बढ़ाना।

जबकि गुजरात और राजस्थान में मकर संक्रांति उत्तरायण पर्व के रूप में जानी जाती है। पतंगबाजी इस पर्व का मुख्य आकर्षण है। आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। राजस्थान में तो आज के दिन सारा आसमान ‘वह मारा, वह काटा’ के उद्घोषों से गूंज उठता है चौखी ढाणी जैसे स्थानों पर पतंगबाजी की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं

दक्षिण भारत में इसे पोंगल के रूप में चार दिनों तक मनाया जाता है। विशेष रूप से तमिलनाडु में यह कृषि प्रधान त्योहार है, जिसमें नई फसल का धन्यवाद ज्ञापन किया जाता है तो पूर्वी भारत में बंगाल में इसे पौष संक्रांति कहा जाता है और गंगा सागर मेले का आयोजन होता है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा और समुद्र के संगम पर स्नान करते हैं।

   मकर संक्रांति खगोलीय दृष्टि से पृथ्वी और सूर्य के बीच के संबंध को दर्शाता है। यह पृथ्वी के अक्षीय झुकाव और सूर्य के साथ उसकी कक्षीय गति से जुड़ी कई घटनाओं को समझने का समय है।मकर संक्रांति पर सूर्य पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर यात्रा शुरू करता है जिससे दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।  यह  सर्दियों की समाप्ति और वसंत ऋतु की शुरुआत का भी संकेत है। यह समय खेती और नई फसल के लिए आदर्श माना जाता है।

भौगोलिक दृष्टि से मकर संक्रांति पृथ्वी के अक्षीय झुकाव और सूर्य के चारों ओर उसकी परिक्रमा से उत्पन्न होने वाली घटना है । इस दिन सूर्य मकर रेखा के ऊपर सीधा चमकता है। इसके बाद सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्ध की ओर झुकने लगती हैं। इस दिन के बाद से पृथ्वी पर गर्माहट बढ़ने लगती है, और कृषि, पर्यावरण, और जीव-जंतुओं की गतिविधियों में परिवर्तन आता है।

स्वास्थ्य पर भी मकर संक्रांति का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तिल, गुड़, और मूंगफली शरीर को गर्म रखने और ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होते हैं। सूर्य की किरणें इस समय विटामिन-डी का अच्छा स्रोत बनती हैं। इससे हड्डियां मजबूत होती हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

महाकुंभ का भी मकर संक्रांति से गहरा संबंध है, क्योंकि मकर संक्रांति को इस महापर्व के आयोजन में एक महत्वपूर्ण तिथि माना जाता है। महाकुंभ चार स्थानों—हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक—पर 12 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता है। इस वर्ष मकर संक्रांति का पर्व प्रयागराज के महाकुंभ के पास पड़ रहा है और कहा जा रहा है कि  ऐसा सुयोग 133 वर्ष के बाद आया है। मकर संक्रांति के दिन गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान को अत्यंत पवित्र और मोक्षदायक माना जाता है।  महाकुंभ में मकर संक्रांति के स्नान का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह स्नान आत्मा की शुद्धि और पापों के नाश करने वाला माना जाता है।

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