कुक्कू मुर्गा

कुक्कू मुर्गा बड़ी जोर से,
कुकड़ूँ कूँ चिल्लाया।
सूरज बोला ,अब मत चिल्ला,
में जल्दी ही आया।

लेकिन प्यारे कुक्कू भाई,
नहीं समझ में आया।
तू अपने मालिक को अब तक,
नहीं जगा क्यों पाया?

रोज -रोज चिल्ला चिल्लाकर,
मुझे बुला तू लेता।
पर तेरी कुकड़ूँ कूँ को अब,
कौन तब्बजो देता।

मैं तो हर दिन सुबह सबेरे,
धरती पर आ जाता।
अपने किसी पड़ौसी तक को,
नहीं उठा तू पाता।

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