जब तक श्रद्धा न हो,श्राद्ध करना है बेकार किसी ने हाल न पुछा,जब था बाँप बीमार जब था बीमार,किसी ने दवाई को न पूछा मर गया बेचारा बाँप,पहने हुए एक कच्छा कह रस्तोगी कविराय,रिवाज ऐसे बनाओ श्राद्ध मत करो तुम,जीते जी खाना खिलाओ
जीते जी बाँप के साथ करते दंगम दंगा मरने पर सारे बेटे बाँप को ले जाते गंगा बाँप को ले जाते गंगा,बाजे भी बजवाये पंडितो को भोजन करा दक्षिणा दिलाये कह रस्तोगी कविराय फिर श्राद्ध करते पहले कुछ नहीं किया बाद में सब करते