भूमि -अधिग्रहण बिल और नीतीश का विरोधाभासी चरित्र

0
171

नीतीश जी की कथनी व करनी में विरोधाभास का पुट ढूँढने के लिए कोई बहुत ज्यादा माथा-पच्ची व मशक्त नहीं करनी पड़ती नीतीश जी का पूरा राजनीतिक सफर व मुख्य-मंत्री के रूप उनका कार्यकाल विरोधाभासों से पटा पड़ा है l अब अगर केंद्र सरकार के प्रस्तावित भूमि – अधिग्रहण बिल के संदर्भ में उनके विरोध के रवैये और १४ मार्च को उनके प्रस्तावित अनशन की ही बात की जाए तो इस कानून का विरोध करने से पहले नीतीश जी क्या ये भूल गए हैं कि :-

कैसे उनके ही शासन-काल में राजधानी पटना से सटे नौबतपुर इलाके के कोपा-कलाँ ( बड़ी कोपा ) गाँव के समीप किसानों की जमीन कैसे एक शराब बनाने वाली कंपनी को बियर-फैक्ट्री लगाने के नाम पर आवंटित कर दी गई ?

कैसे बिहटा व उससे सटे अमहारा के ग्रामीण इलाकों में खेतिहर ज़मीनों का जबरन अधिग्रहण  उद्योग लगाने के नाम पर किया गया ?

कैसे उनके ही कार्य-काल में बियाडा ( बिहार इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी ) ने सारे नियम-क़ानूनों को ताके पर रख कर कृषि – योग्य ज़मीनों का अधिग्रहण किया और उन्हें कुछ खास‘ लोगों को आवंटित कर दिया  ? सच तो ये है कि बिहार में बंद पड़े फैक्ट्रियों को चालू नहीं किया जाता अपितु फैक्ट्री खोलने के नाम पर किसानों की उपजाऊ भूमि बियाडा के हाथों में सौंपकर किसानों को रोटी छीनी जा रही है। अगर ऐसा नहीं है तो क्या नीतीश ये बतलाने का कष्ट करेंगे कि उनके शासनकाल में कितनी बंद फैक्ट्रियाँ फिर से खोली गईं और वैसी कितनी बंद फैक्ट्रियों की ज़मीनें किसानों को वापस की गईं जिनके फिर से खुलने के कोई आसार नहीं हैं यहाँ ये बताना जरूरी है कि बिहार राज्य औद्योगिक विकास निगम एक सरकारी संस्था है । इस संस्था ने कैसे नियमों की धज्जियां उड़ाई है इसे स्पष्ट करने के लिए एक ही उदाहरण पर्याप्त है “१९७४ में स्कुटर इंडिया लिमिटेड के सहयोग से फ़तुहा में बियाडा की जमीन पर स्कुटर बनाने का एक कारखाना बिहार स्कुटर लिमिटेड  के नाम से लगाया गया तकरीबन , ८६ एकड जमीन का आवंटन हुआ । कुल १०६६ करोड का प्रोजेक्ट था। लेकिन यह कारखाना १९८४ में ही बंद हो गया , कारखाने को  पुनः शुरू करने के उद्देश्य से एक चार्टड – अकाउंटेंट फ़र्म   फर्गुसन एंड कंपनी से इसका आकलन करवाया गया , चार्टड –अकाउंटेंट फर्म ने इसकी कीमत ९.७३ करोड लगाई। लेकिन नीतीश जी के शासनकाल  में ही यह जमीन सोनालिका ट्रैक्टर के मालिक श्री एल .डी. मित्तल को मात्र एक करोड साठ लाख रुपये में दे दी गई , यानी लगभग दस करोड़ की जमीन मात्र डे्ढ करोड में । आज वहाँ सोनालिका का गोदाम है ।“ भूमि-अधिग्रहण का कौन सा मॉडेल था नीतीश जी की सरकार का ये फैसला ? स्कूटर – फैक्ट्री या औद्योगिक – परिक्षेत्र के विकास के नाम पर वर्षों पूर्व जब किसानों से ज़मीनें ली गई थीं तो उस समय मुआवजे की रकम का भुगतान उस समय के  निर्धारित-मूल्यों(राशि) के अनुरूप हुआ था और अगर नीतीश खुद को किसानों का हितैषी बताते हैं तो क्या ये न्याय-संगत नहीं होता कि पुनर्वांटन के केस में किसानों को मौजूदा समय की निर्धारित राशि के अनुरूप शेष राशि का भुगतान होता ?

नीतीश जी के कार्य-काल में भूमि- अधिग्रहण की अपनायी गई पूरी प्रक्रिया पर  सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में किन परिस्थितियों में सवाल खड़े किए ?

उद्धृत इलाकों के किसानों को अब तक उचित मुआवाज़े के भुगतान नहीं किए जाने में क्या अडचनें हैं ?यहाँ गौरतलब है कि इन इलाकों के किसान व जमीन मालिक अभी भी अधिग्रहण के गैर-कानूनी तौर -तरीके व मुआवजे के भुगतान को लेकर संघर्ष-रत हैं l

जबरन व नियमों की अनदेखी कर की गई जमीन – अधिग्रहण के विरोध में उनके ही शासन-काल में किसानों के प्रतिरोध को  फारबिसगंज में दमनात्मक पुलिसिया – कारवाई का सामना क्यूँ करना पड़ा ? क्या फारबिसगंज के किसानों पर बिहार – पुलिस की गोलीबारी न्याय-संगत व किसानों के हित में थी ? क्या फारबिसगंज की पुलिसिया – कारवाईजनतांत्रिक अधिकारों के हनन की श्रेणी में नहीं आती  ?

सता में आने के साथ ही नीतीश जी ने कहा था कि “हम बिहार में भूमि – सुधार कानून लागू करेंगे” , इसके लिए बड़े ताम – झाम के साथ भूमि सुधार – आयोग का गठन भी किया गयालेकिन उसकी रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डाल दी गयी।भूमि सुधार आयोग की सिफारिशों को ठंढ़े बस्ते में डाले जाने के पीछे नीतीश जी क्या विवशताएँ थीं अगर ऐसा नहीं है …! तो क्या नीतीश जी ये बता सकते हैं कि भूमि सुधार आयोग की किन-किन सिफ़ारिशों पर उनकी सरकार ने अमल किया ?

क्या नीतीश जी ये बता सकते हैं कि भूमिहीनों को ३ डिसमिल जमीन देने के उनके वायदे का क्या हुआ  क्या नीतीश जी के पास इस प्रश्न का जवाब है कि जिन लोगों को एन-केन-प्रकारेण पर्चा मिला भी तो  उन्हें आज तक जमीन पर दखल क्यूँ नहीं दिलाया जा सका ? क्या नीतीश जी  आधिकारिक – तौर पर इसके आंकड़ें प्रस्तुत करने की स्थिति में हैं ?

क्या नीतीश जी के ही शासनकाल में मुजफ्फरपुर के प्रस्तावित एस्बेस्टस कारखाने के लिए कृषि –योग्य भूमि का अधिग्रहण भूमि  अधिग्रहण व पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन नहीं था ?

क्या नीतीश जी के ही शासन काल में दरभंगा जिले के ओशो ग्राम (थाना : कुशेश्वर स्थान ) के समीप शिवनगर घाट से कुशेश्वर स्थान तक पथ – निर्माण के क्रम में पुल-निर्माण में कृषि-योग्य भूमि का अधिग्रहण किसानों के विरोध के बावजूद नहीं हुआ ?

क्या नीतीश जी ये बता पाने की स्थिति में हैं कि उनके ही मुख्यमंत्रित्व काल में सूबे के औरंगाबाद एवं मुजफ्फरपुर जिलों की १७४४ एकड़ कृषि-भूमि को गैर कृषि – भूमि मैं कैसे तब्दील कर दिया गया ?

क्या नीतीश जी के गृह-जिले नालंदा में नीतीश जी के ड्रीम-प्रोजेक्ट नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्व-विद्यालय के निर्माण में कृषि-योग्य भूमि का अधिग्रहण नियमों के अनुरूप हुआ है ? क्या ये सच नहीं है कि प्रस्तावित विश्वविद्यालय के लिए अधिगृहीत की गई नब्बे फीसदी भूमि कृषि-भूमि थी ? क्या अधिग्रहण के समय किसानों का विरोध नहीं हुआ जिसे दबाने का काम प्रशासन ने बखूबी निभाया क्या ये सच नहीं है कि अधिगृहीत भूमि के एवज में मुआवज़े की राशि पाने के लिए उस इलाके के अनेकों किसान सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने को आज भी विवश हैं क्या इस को सच भी नकारा जा सकता है कि प्राचीन नालंदा विश्व-विद्यालय के खंडहरों के समीप विश्व-विद्यालय के निर्माण के लिए भूमि-अधिग्रहण को लेकर भारतीय पुरातत्व विभाग (आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ) की आपत्तियों की अनदेखी की गई ?

 

वैसे तो नीतीश जी का कथित बहुप्रचारित सुशासनी – कार्यकाल कथनी व करनी में अंतर’ का नायाब नमूना है लेकिन देश की अर्थ-व्यवस्था से सीधे तौर पर जुड़े भूमि-अधिग्रहण के संवेदनशील मुद्दे पर भी नैतिकता की दुहाई’ की आड़ मेंदोहरा – चरित्र’ अपनाकर राजनीति की दुकान सजाने वाले नीतीश जी जैसे लोगों की मंशा पर प्रश्न उठना-उठाना लाजिमी है l     

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress