40 की उम्र में कायम है पेस का जलवा

leander paesपंकज कुमार नैथानी

रविवार का दिन भारतीय खेल जगत के लिए दो खुशखबरी लेकर आया…एक यह कि 2020 के ओलंपिक खेलों में कुश्ती भी बरकरार रहेगी..जिससे कि भारत को पदक की काफी उम्मीदें हैं…औऱ दूसरी सुखद खबर आई टेनिस कोर्ट से… जहां लिएंडर पेस औऱ उनके चेक जोड़ीदार रादेक स्टेपनिक ने यूएस ओपेन के मेंस डबल्स के खिताब पर कब्जा किया…क्रिकेट को धर्म मानने वाले देश मे ये चर्चा है कि उम्र के 40 वें पड़ाव पर पहुंच चुके सचिन 200वां टेस्ट मैच खेलने के बाद क्रिकेट को पूरी तरह से अलविदा कह देंगे….वहीं दूसरी तरफ 40 साल के एक और नौजवान ने फिर से खुद को साबित किया है कि बूढ़ी हड्डियों में अभी बहुद दम बाकी है…

पिछले 22 साल से टेनिस कोर्ट पर अपना जलवा बिखेर रहे पेस के लिए इस साल का यूएस ओपन काफी खास रहा…इस टूर्नामेंट मे पेस ने चेक गणराज्य के रादेक स्टेपनिक के साथ जोड़ी बनाकर चुनौती पेश की… शुरुआत में इस जोड़ी से कुछ ज्यादा उम्मीदें नहीं लगाई जा रही थी…लेकिन सेमीफाइनल में इस जोड़ी ने टॉप सीड अमेरिका के ब्रायन बंधुओं को जिस अंदाज में 3-6,6-3 और 6-4 से हराया…उससे लग रहा था कि अब पेस खिताब जरूर जीतेंगे…ब्रायन बंधुओं को हराने में पेस ने अपने अनुभव का अच्छा इस्तेमाल किया… लंबी लंबी रैलियों के बावजूद नेट पर ज्यादा प्वाइंट बटोकर विरोधियों पर दबाव बनाया और पहला सेट गंवाने के बावजूद मैच अपने कब्जे मे किया… एक अनुभवी खिलाड़ी की निशानी होती है कि वह हालात के हिसाब से खुद को ढालकर खेलता है…सेमीफाइनल में पेस ने जहां धैर्य और चतुराई से प्वाइंट हासि किए वहीं फाइनल मुकाबले मे आक्रामक रुख अपनाते हुए 6-1, 6-3 से जीत दर्ज की…

17 जून 1973 को कोलकाता मे जन्में लिएंडर पेस ने टेनिस की दुनिया में अपेन हुनर के दम पर एक अलग मुकाम हासिल किया है… स्पोर्टिंग बैकग्राउंड से आए लिएंडर के पिता हॉकी के खिलाड़ी थे और मां बेसबॉल खेला करती थी…जिसका असर लिएंडर पेस के दिलोदिमाग पर भी पड़ा.लेकिन पेस ने पिता की हॉकी स्टिक की बजाए टेनिस रैकेट का दामन थामा… 1985 में पेस ने मद्रास की ब्रिटानिया अमृतराज टेनिस अकादमी में दाखिला लिया…लेकिन प्रोफेशनल खिलाड़ी के तौर पर पेस 1991 में उभर कर सामने आए…हालांकि पेस को सिगल्स मुकाबलों में खास सफलता नहीं मिली तो उन्होंने डबल्स का रुख कर लिया…बावजूद इसके 1996 के अटलांटा ओलंपिक में पेस ने फर्नांडो मेलिगेनि को हराकर कांस्य पदक जीता…पेस का यह पदक भारत का दूसरा व्यक्तिगत ओलंपिक पदक था… ओलंपिक की सफलता को भुनाते हुए पेस ने महेश भूति को अपना जोड़ीदार बनाया और एक के बाद एक सफलता की सीढ़िया चढ़ीं…इस जोड़ी ने अपने करियर में 303 मैच जीते जबकि केवल 103 में हार मिली…इसमें 6 ग्रैंड स्लैम भी शामिल हैं…. हालांकि कई बार इन दोनो की जोड़ी मे मतभेद होने से दरार पैदा भी हुई…लेकिन तब तक पेस-भूपति की जोड़ी टेनिस जगत में भारत को खास मुकाम दिला चुकी थी… पेस ने अपने करियर में कुल 14 ग्रैंड स्लैम जीते हैं…जिनमें से आठ ग्रैंड स्लैम मेंस डबल्स में और 6 ग्रैंड स्लैम मिक्स डबल्स में जीते हैं…चारों प्रतिष्ठित ग्रैंड स्लैम में कोई ऐसा खिताब नहीं जिसे पेस ने अपने जोड़ीदारों के साथ न जीता हो… पेस को उकी उपलब्धि के लिए 1996 में राजीव गांधी खेल रत्न और 2001 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया…

पिछले एक साल मे भारतीय टेनिस ने काफी उतार चढ़ाव देखे…लंदन ओलंपिक से ऐन पहले पेस-भूपति की जोड़ी टूटी…भूपति बोपन्ना ने पेस के साथ जोड़ी बनाने से इनकार कर दिया…फिर भी पेस ने देश के सम्मान की खातिर विष्णु वर्धन के साथ जोड़ी बनाई… साल 2013 में भारतीय टेनिस खिलाड़ियों का ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन यानि आइटा के साथ विवाद हो गया.. जिसके बाद कई खिलाड़ियों ने डेविस कप से नाम वापस ले लिया…भारत को लाज बचानी मुश्कुल पड़ गई…ऐसे समय भी पेस ने अपना गुरूर दूर रखते हुए देश के सम्मान की खातिर डेविस कप में हिस्सा लिया और टूर्नामेंट में भारत को एकमात्र जीत दिलाई… और अब जब भारतीय टेनिस हाशिए पर जाता दिख रहा था…तब पेस ने अपने अनुभव से यूएस ओपन का खिताब जीतकर न सिर्फ अपने शानदार करियर में एक और रत्न जोड़ा है… बल्कि भारतीय टेनिस की उम्मीदों को कायम रखा है

 

पंकज कुमार नैथानी

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