वजूद खोती राजनीति

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अब्दुल रशीद 

सियासत में जीत सबसे अहम होता है। और लोक तन्त्र के लिए लोक और तन्त्र अहम होता है। दुर्भाग्य  से दुनिया  के सबसे बड़े लोक तन्त्र में आज लोक कि स्थिति इतनी प्रभावशाली नही दिखती कि वह तन्त्र को चलाने वाले सियासतदां पर अंकुश लगा सके, नतीजा तन्त्र भ्रष्ट होता जा रहा है, और तन्त्र को चलाने वाले सियासतदां वो सब कुछ कर रहे हैं जो उनके हित में है सिवाय लोक हित के। मुद्दों के नाम पर महज़ बयानबाजी और झुठे घोषणापत्र ,झुठा इसलिए कि किसी भी पार्टी के घोषणापत्र में किया वादा यदि पूरी तरह से पूरा हो जाए तो आमजनता के लिए यह देश स्वर्ग हो जाए । आप यकीन कर सकते हैं आप कि मर्जी है लेकिन ऐसा होगा नही इसकी 100% गारंटी है।

राजनीति अब जनसेवा के लिए नही किया जाता है यह अब कारोबार की शक्ल लेता जा रहा है इस देश में ऐसा कोई कारोबार नही जैसा राजनीति जिसमे महज़ चन्द रोज़ कि मेहनत और झुठे वादे के बाद 5 साल के लिए आपको रुतबा और अलीबाबा का ऐसा सीरिन्ज मिल जाता है जिससे आप गरीबो का हक चूस चूस कर अपना खजाना भर सकते हैं । चलो मान लो मेरी बात गलत है तो कोई ऐसे नेता का नाम बताओ जो चुनाव जीता हो और उसका विकास न हुआ हो, क्षेत्र का विकास कार्य तो बीरबल की खिचडी है जो छ: दशक से पक रही है और आने वाले छ: दशक तक पकती ही रहेगी। आज के दौर में राजनीतिज्ञ लोग न तो शासक ही बन पाए और न ही जनसेवक, शासक बन जाते तो कम से कम जनता को यह उम्मीद तो न होती कि यह जनतन्त्र है और यह सब जनता के लिए जनता के द्वारा ही है, हाँ जनसेवक क रूप धारण कर यह जरूर नटवर लाल बन बैठे हैं जो आम जनता को बरगला कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं ।

ज़रा सोचिए,कांग्रेस ने नारा दिया है तो क्या काँग्रेस सोचती है? बीजेपी ने सुथरी कहा है क्या वह सुथरी है? महज़ नारो से न तो विकास होगा न ही बदलाव आएगा । स्वार्थ और कृत्रिम उर्वरक जहाँ एक ओर हरे भरे लोकतन्त्र को नुकसान कर रहा है वहीँ राजनीति को भी दीमक की तरह चाट रहा है । ऐसा न हो कि राजनीतिज्ञों का कारोबारी नज़रिया राजनीति के वजूद के लिए भस्मासुर साबित हो। विकास और बदलाव के लिए जरूरी है जिम्मेदार होना जो अब राजनीति में दिखती ही नही ।

2 COMMENTS

  1. ज़ात और धर्म पर मतदान होगा तो यही होगा साथ ही धन और माफिया भी जनता कबूल क्र रही है तो नेताओं को क्या परेशानी होगी?

  2. विकास के नारे का अर्थ ही यही है की अब तक आपने इन नेताओं का व्ज्कास किया और अब मेरा विकास करिए.अगर जनता के विकास की बात होती तो यह मुल्क संसार के देशो में सबसे आगे होता.नेताओं का इतना विकास होता है ,की पञ्च साल में उनकी सम्पति की कई कई गुना बढ़ जाती है.आप ने बिलकुल ठीक लिखा है जनता को ही सोचना चाहिए की वह इन्हे चुने या नहीं..

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