प्रेम ‘पाप’ नहीं मगर….ठीक नहीं ‘वासना में वास’

डॉ घनश्याम बादल

 एक पक्ष द्वारा बरसों से 14 फरवरी यानि वैलेंटाइन दिवस का भारतीय संस्कृति के अनुरूप न होने की वजह से अश्लीलता एवं भौतिक प्रेम तथा देह तक सीमित रहने के आरोपों के साथ जबरदस्त विरोध किया जाता है तो दूसरी ओर प्रेम के पंछी  हर बंधन को धता बताते हुए प्रेम प्रदर्शन करते दिखते हैं। ऐसे में सोचना पड़ता है कि प्रेम पाप है क्या?  यदि नहीं तो फिर इसे प्रदर्शित करने में किसी को क्या आपत्ति होनी चाहिए।

बेशक, समय के साथ नैतिक मूल्य एवं मानक बदल जाते हैं और उनके अनुसार चलने वाला व्यक्ति ही प्रगति करता है। शायद इसी तथ्य का प्रभाव प्रेम पर भी पड़ा है । आज की पीढ़ी मानती है कि यदि दिखाया ही नहीं, तो कैसे समझेगा कोई कि उससे कोई प्रेम करता है । वैलेंटाइन डे प्रेम की इसी प्रवृत्ति को रेखांकित करते हुए आता है जबकि भारतीय दर्शन की मान्यता है कि प्रेम एकांतिक है और यह सार्वजनिक प्रदर्शन का विषय नहीं है। भारतीय संस्कारों एवं मत के अनुसार  प्रेम प्रदर्शन से नही अपितु दर्शन से अधिक जुड़ा है  ।

लेकिन सच यह भी है कि देश और कल से परे वसंत के खुशगवार मौसम में कामदेव का फूलों का धनुष युवा  मन डांवा डोल कर देता है, स्वााभाविक है कि प्रियतम से मिलने की चाह प्रेम के पंछियों से सब कुछ  करवाती है  पर भारतीय संस्कृति की वर्जनाएं व भारतीयता के संस्कार बाधक बन जाते हैं. ऐसे में पश्चिम की उन्मुक्त संस्कृति से प्रेम का पैगाम लेकर आता है वेलेंटाईन डे । वेलंटाइन दिवस संत वैलेंटाइन द्वारा युवा प्रेमी जोड़ों को मिलाने के प्रसंग से जुड़ा है। अपने साथ गुलाब, चॉकलेट, टेडी, जैसे उपहार और प्रपोज तथा हग यानी आलिंगन के प्रेम प्रतीक लेकर चलता है । संत वैलेंटाइन की कहानी बताती है कि जहां समाज का नियंता वर्ग हमेशा प्रेम पर पहरे बैठाए रखना चाहता है वहीं प्रेम करने वालों  को भी कहीं न कहीं से एक सपोर्ट मिल ही जाता है ।  संत वैलेंटाइन ने ऐसे ही प्रेम के पंछियों को आपस में मिलाने का कार्य किया उन्हीं के नाम पर यह प्रेमोत्सव वैलेंटाइन के नाम से प्रचलन में आया।

      प्रेम के इतने पहलू हैं कि उनका वर्णन ही संभव नहीं है कहीं एक तरफा प्यार है तो कहीं दोनों तरफ लागी लगी होती है । ‘सच्चा प्यार’ कुछ पाने के लिए नहीं सब कुछ समर्पित देने के लिए होता है। प्यार में दैहिक प्रेम लालसा इसे अपवित्र करती है । यह प्रेम नहीं वासना है ।

 वेलेंटाईन डे के प्रति युवाओं में कितना क्रेज है यह बताने की जरुरत नहीं है । हर तरफ प्रेम के दीवाने अपने लिए एक वेलेंटाईन ढूंढते दिखते हैं, सब वर्जनाओं व प्रतिबंधों का धता बताते हुए, हर खतरा उठाते हुए उनका सार्वजनिक प्रेम प्रदर्शन देखा जा सकता है। हालांकि प्रेम के खुल्लमखुल्ला प्रदर्शन को सही नहीं माना जा सकता है

    ऐसा नहीं कि भारत में प्रेम पर केवल वर्जनाएं ही हैं यहां सात्विक प्रेम को सदैव सम्मान की दृष्टि से देखा गया है यहां तक की देवताओं में भी हमारे मिथक एक जोड़ा तो रति – कामदेव के रूप  में केवल प्रेम को ही समर्पित किए हुए है । भगवान शिव व पार्वती का विवाह भी हमारे यहां समर्पण व प्रेम की परम्परा का वाहक बना है । भारतीय संस्कृति में प्रेम के बारें में बहुत ही स्पष्ट कहा गया है ‘‘प्रेम न हाट बिकाय ’’यहां राधा व कृष्ण के प्रेम के साथ मीरा व श्याम के भक्ति व समपर्ण भरे प्रेम को भी सम्मान की दृष्टि से देखा गया है ।

उपहार व प्रेम 

मान्यता है कि उपहार लेने देने से प्रेम बढ़ता  है प्रेम में उपहार देने की परम्परा वैलेंटाइन डे से  शुरु नहीं हुई अपितु  भारतवर्ष में बहुत प्राचीन रही है । दुष्यंत शकुंतला को प्रेमोपहार में अपनी अंगूठी देते हैं, तो शाहजहां अपनी प्रेयसी मुमताज को खुश करने के लिए ताजमहल बनवा देते हैं । कृष्ण भी उद्धव के हाथों गोपियों को अपने सात्विक प्रेम के प्रमाण स्वरूप प्रेम पत्र भिजवाते हैं तो श्रीराम भी हनुमान को सीता के पास भेजने से पहले उन्ही के द्वारा दी गई अंगूठी देते हें अपनी पहचान के प्रमाण रूप में । यहां मेघदूतम जैसे काव्य प्रेम पत्रों के इतिहास को  दर्शाते हैं । माना जाता है कि पहला प्रेम पत्र मिट्टी की फर्द पर लिखा गया था जो मानव की प्रेम की अभिव्यक्ति का पहला लिखित प्रमाण माना जा सकता है । साहित्य में भी भ्रमरगीत परम्परा के माध्यम से प्रेम को मुखरित किया गया है ।

 भारत में प्रेमोत्सवों की समृद्ध परम्परा रही है और हम दुनिया को बहुत पहले ही वसंतोत्सवों के माध्यम से सात्विक प्रेम का संदेश देते रहें हैं । प्रेम करें प्रेम का प्रदर्शन करना चाहें तो भी कोई बात नहीं पर अश्लीलता से बचें, प्रेम में निष्ठा एवं समर्पण तथा ईमानदारी रखें यही है सच्चे प्रेम के लक्षण । अन्यथा प्रेम वासना एवं अश्लीलता में तब्दील हो जाता है उम्मीदें नहीं पीढ़ी वैलेंटाइन डे पर भी इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें मिली छूट को सात्विक प्रेम में तब्दील करने को तैयार दिखेगी।

डॉ घनश्याम बादल

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