कविता

आ कर लें हम तुम प्यार

-श्यामल सुमन-
poem

है प्रेम सृजन संसार, आ कर लें हम तुम प्यार।
ना इन्सानी बाजार, आ कर लें हम तुम प्यार।।

रिश्ते जीवन की मजबूरी, फिर आपस में कैसी दूरी।
कुछ नोंक-झोंक और खटपट संग, मिलती रिश्तों को मंजूरी।
ये रिश्ते हैं आधार, आकर लें हम तुम प्यार।।

हंसकर जीने की आदत हो, चाहे जैसी भी आफत हो।
इक दूजे से मिलकर रहना, जो आगे की भी ताकत हो।
ना खड़ी करो दीवार, आकर लें हम तुम प्यार।।

नित जीने के दिन कम होते, जीते, जिसके दमखम होते।
कुछ मानवता के रिश्ते हैं, लेकिन सब के हमदम होते।
दिन करते क्यों बेकार, आकर लें हम तुम प्यार।।

हम यहां रहें या वहां रहें, बिन इन्सानों के कहां रहें।
आपस में प्रेम परस्पर हो, कोमल यादों की निशां रहे।
कर सुमन को अंगीकार, आकर लें हम तुम प्यार।।

जीने का सहारा देखा
तेरी आंखों में समन्दर का नज़ारा देखा
झुकी पलकों में छुपा उसका किनारा देखा
जहां पे प्यार की लहरें मचाये शोर सुमन
उस किनारे पर मैंने जीने का सहारा देखा

दूरियां तुमसे नहीं रास कभी आएगी
मिलन की चाह की वो प्यास कभी आएगी
तुम्हारे प्यार के बन्धन में यूं घिरा है सुमन
लौटकर मौत भी ना पास कभी आएगी

हंसी को ओढ़ के आंखों में भला क्यूं गम है
लरजते देखा नहीं पर वहां पे शबनम है
तेरे कदमों के नीचे रोज बिछा दूं मैं सुमन
गीत जो भी हैं मेरे पर तुम्हारा सरगम है

तुम्हारी आंखों में देखा तो मेरी सूरत है
ऐसा महसूस किया प्यार का महूरत है
बिखर ना जाए सुमन को जरा बचा लेना
तू मेरी जिन्दगी है और तू जरूरत है