समाज

मदनी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों की सबसे बड़ी समस्या बता दी

राजेश कुमार पासी

मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी समस्या कट्टरवाद है, क्योंकि कट्टरवाद से ही आतंकवाद पैदा होता है। मुस्लिम बुद्धिजीवी आतंकवाद के लिए मुस्लिमों के उत्पीड़न को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि उत्पीड़न किस समुदाय का नहीं हो रहा है। हर समुदाय कहीं न कहीं उत्पीड़न का शिकार हो रहा है, लेकिन आतंकवादी बनने का एकाधिकार सिर्फ मुस्लिम समाज को कैसे हासिल हो गया है। हर मुस्लिम आतंकवादी नहीं होता लेकिन हर आतंकवादी मुस्लिम होता है, इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता। अगर दूसरे समुदाय का कोई व्यक्ति आतंकवादी बनता है तो उसके पीछे भी इस्लामिक कट्टरवाद की सोच होती है।

मुस्लिम कट्टरवाद और आतंकवाद के कारण मुस्लिम समाज में सामाजिक सुधार नहीं हो पाया है। मुस्लिम बुद्धिजीवी सामाजिक सुधार के पक्ष में नहीं हैं बल्कि उन्होंने सामाजिक बुराइओं  को धार्मिक छतरी प्रदान कर दी है । हर सामाजिक बुराई को धर्म के साथ जोड़ दिया गया है । देश के बड़े मुस्लिम संगठन जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने शनिवार को एक बड़ा भड़काऊ भाषण दिया है जो देश का माहौल बिगाड़ने वाला है । वो जानते हैं कि उन्होंने क्या बोला है, इसलिए सरकार को गिरफ्तार करने की चुनौती दे रहे हैं । वो चाहते हैं कि सरकार उन्हें जेल भेजे ताकि मुस्लिम उत्पीड़न का उनका विमर्श सही साबित हो जाए । उन्होंने इस्लाम को बदनाम करने की साजिश का आरोप लगाया है और कहा है कि सरकारें धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही हैं । सुप्रीम कोर्ट पर भी उन्होंने गंभीर सवाल उठा दिए हैं । जिहाद को पवित्र इस्लामी  अवधारणा बताया और कहा कि जिहाद का अर्थ जुल्म के खिलाफ लड़ना है । उनका कहना है कि जब-जब जुल्म होगा, जिहाद होगा ।

 मदनी का कहना है कि इस्लाम और मुस्लिमों के खिलाफ घृणा फैलाने की कोशिशें बढ़ गई हैं । जिहाद को आतंक और हिंसा से जोड़ने की कोशिश की जा रही है ।  लव जिहाद, थूक जिहाद और लैंड जिहाद जैसे शब्दों से मुसलमानों को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है । बाबरी मस्जिद और तीन तलाक जैसे फैसलों को लेकर उन्होंने कहा है कि न्यायपालिका सरकार  के दबाव में काम कर रही है । उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट तभी सुप्रीम कहला सकता है जब वो संविधान का पालन करे और कानून बनाये रखे । सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुसार फैसले दे रहा है या नहीं, इसका फैसला मदनी कैसे कर सकते हैं।  

                मदनी कहते हैं कि भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं को मजबूर करके बहुसंख्यक समुदाय में शामिल किया जा रहा है। इससे बड़ा झूठ क्या हो सकता है,  ये कहां हो रहा है और कब हुआ है, ये भी उन्हें बताना चाहिए था । वास्तव में देखा जाए तो भारत में इसके विपरीत काम हो रहा है । बहुसंख्यक समुदाय के लोगों को लालच और धोखे से मुस्लिम समाज में धर्मांरित किया जा रहा है । अगर मदनी को अपनी बात सही लगती है तो उन्हें धर्मपरिवर्तन के खिलाफ कानून बनाने के लिए मोदी सरकार से मांग करनी चाहिए । उन्हें बताना चाहिए कि मुस्लिम संगठन कई राज्यों में बनाए गए धर्मपरिवर्तन विरोधी कानून का विरोध क्यों कर रहे हैं ।  वो कहते हैं कि हलाल को बदनाम किया जा रहा है. हलाल का मतलब ईमानदारी की कमाई है, किसी को धोखा नहीं देना है । इस पर किसने एतराज किया है जबकि समस्या हर उत्पाद को हलाल बनाने से है ।

मदनी को बताना चाहिए कि  लिपस्टिक, माचिस, साबुन, तेल, जैसी घरेलु उपयोग की वस्तुओं में हलाल का क्या मतलब है ।  किस आधार पर इनका प्रमाणीकरण किया जाता है । वास्तव में मुस्लिम समाज हलाल के नाम पर एक समांतर अर्थव्यवस्था खड़ी कर रहा है । हलाल प्रमाणीकरण के लिए कोई सरकारी संस्था नहीं है, एक गैर-सरकारी संगठन हलाल के नाम पर उगाही करके पैसों का कैसे इस्तेमाल कर रहा है, कोई नहीं जानता । उनका कहना है कि वक्फ हमारे बुजुर्गों की विरासत है । उनकी बात सही हो सकती है लेकिन विरासत के दस्तावेज दिखाने से डर क्यों लगता है । सम्पत्ति को वक्फ किया गया है या नहीं, ये नहीं बता सकते तो संपत्ति के कागजात तो दिखाए जा सकते हैं।  अगर कागजात नहीं है तो कैसे माना जाए कि  सम्पत्ति  वक्फ की गई है ।  वो कहते हैं कि सरकारें वक्फ की बर्बादी का तमाशा देख रही थी। उन्हें बताना चाहिए कि वक्फ को किसने बर्बाद किया.  इसका नियंत्रण तो मुस्लिमों के हाथ में है, तो हिन्दू तो इसकी बर्बादी के पीछे नहीं हो सकते । उन्होंने आरोप तो लगा दिया लेकिन ये नहीं बताया कि आरोपी कौन है।    पूजा स्थल कानून के बारे में कहते हैं कि उस कानून के होते हुए मथुरा और ज्ञानवापी मस्जिद के मुकदमे कैसे चल रहे हैं। वो यह नहीं कहते कि ये विवादित स्थल क्यों है, उन्हें मस्जिद क्यों कहा जा रहा है जबकि देखने भर से पता चलता है कि ये मंदिरों पर खड़े किए गए ढांचे हैं । अगर मदनी और मुस्लिम समाज मानता है कि विवादित स्थल मस्जिद हैं तो उसकी जांच से क्यों भागते हैं।

               ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के प्रमुख अहमद इलियासी ने महमूद मदनी के बयान की निंदा की है।उनका कहना है कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट पर मुसलमानों को भरोसा नहीं है, यह कहना गलत है। इससे देश का माहौल खराब होता है। वो कहते हैं कि मुझे नहीं पता कि उन्होंने ऐसा बयान क्यों दिया है। ये देश के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा है कि भारत का मुसलमान उनकी बातों से सहमत नहीं है।  वो कहते हैं कि पहले उनके चाचा ने भी अभी ऐसा ही विवादास्पद बयान दिया था जिससे देश का माहौल खराब होता है। उनका कहना है कि देश विरोधी ताकतें देश का माहौल खराब करना चाहती हैं. ऐसे समय में ऐसा बयान देने से बचना चाहिए। जब देश के खिलाफ साजिशें की जा रही हो तो माहौल खराब करने से बचना चाहिए ।

ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी कहते हैं कि मदनी का बयान समाज को बांटने, देश को भ्रमित करने और मुसलमानों को भड़काने वाला है । देश के मुसलमान अदालतों और संसद पर पूरा भरोसा करते हैं । देश में शांति है परंतु मदनी मुसलमानों को उकसा रहे हैं । इन मुस्लिम धर्म गुरूओं की बात की जाए तो यह सच है कि मदनी देश के मुसलमानों को भड़का रहे हैं । उनका यह कहना कि जब-जब जुल्म होगा, जिहाद होगा, एक तरह से देश को धमकी देना है और कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा देने की कोशिश है । कितने ही आतंकी संगठन ऐसे हैं जो जिहाद को अपने नाम में इस्तेमाल करते हैं । ये लोग बिना किसी शर्म-संकोच के अपनी आतंकवादी गतिविधियों को जिहाद का नाम देते हैं । वो जिहाद को बदनाम करने की साजिश का आरोप लगा रहे हैं जबकि सच यह है कि किसी शब्द का क्या मतलब है, यह उसके इस्तेमाल से पता चलता है । जब जिहाद का इस्तेमाल आतंकी घटनाओं और हिंसा के लिए किया जाता है तो बदनाम करने का आरोप किस पर लगाया जाए । कुछ लोग बंदूक से आतंकवाद के साथ हैं तो कुछ लोग बुद्धिजीवी बनकर उसका समर्थन करते हैं । ये लोग अपनी वाणी और कलम का इस्तेमाल आतंकवाद के बचाव और उसके समर्थन में करते हैं । संविधान की बात करके उसका  इस्तेमाल देश पर हमला करने के लिए करने में इन्हें महारत हासिल है । शरीयत को लागू करने की दिल में तमन्ना लिए ये लोग संविधान के पीछे छिपने की कोशिश करते हैं। ये लोग शरीयत चाहते हैं लेकिन आंशिक रूप से चाहते हैं। आपराधिक मामलों में ये लोग शरीयत नहीं चाहते लेकिन सामाजिक और धार्मिक मामलों में शरीयत चाहिए ।

               ये लोग मुस्लिम समाज को पीड़ित साबित करने की कोशिश करते हैं तो दूसरी तरफ आतंकी भी यही कहते हैं कि वो अपने धर्म को बचाने के लिए जान दे रहे हैं। जुल्म के खिलाफ ही कट्टरपंथी युवा आत्मघाती हमलावर बनते हैं। कहीं न कहीं इस विमर्श से आतंकवाद फैलता है । उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और सरकार को मुस्लिम विरोधी सिद्ध करने की कोशिश की है। राममंदिर और तीन तलाक जैसे फैसले को मुस्लिम विरोधी माना है। मदनी कहते हैं कि उनकी बस्ती में उनसे पूछा जा रहा है कि तुम कौन हो । इसमें अब क्या दिक्कत है. कई तरह के दस्तावेज इसलिए तो जारी किए जाते हैं ताकि व्यक्ति की पहचान हो सके । किसी की पहचान उसके घर आकर ही पूछी जाती है, सड़क पर नहीं पूछा जाता । किसी योजना या सरकारी काम के लिए भी पहचान पूछी जा सकती है और उसके लिए दस्तावेज मांगे जा सकते हैं। इससे हिंदुओं को कोई परेशानी नहीं है तो मुस्लिमों को परेशानी क्यों है ।

 उनका कहना है कि मायूसी कौम के लिए जहर है. जिंदा कौम मायूस नहीं होती हैं । देखा जाए तो यह पूरी कौम को भड़काने की कोशिश है । न्यायपालिका पर सरकार के दबाव में काम करने का आरोप लगाकर उन्होंने पूरी न्यायपालिका को नीचा दिखाने की कोशिश की है । इससे मुस्लिम समाज को संदेश जाता है कि अदालतें सरकारी दबाव में उनके खिलाफ फैसले दे रही हैं । इसका दूसरा मतलब यही है कि जब अदालतें मुस्लिमों के पक्ष में फैसला दें तो उन्हें स्वतंत्र माना जा सकता है ।  मदनी जैसे लोग नफरत को बढ़ा रहे हैं, क्योंकि यही लोग कट्टरपंथियों और आतंकवादियों का समर्थन करते हैं । वास्तव में मुस्लिम बुद्धिजीवियों की बड़ी समस्या यही है कि वो कट्टरवाद का समर्थन करते हैं । ये लोग हिन्दुओं से उम्मीद करते हैं कि वो उदारवादी बने रहें लेकिन मुस्लिमों को कट्टरवादी बनाने की पूरी कोशिश करते हैं । 

राजेश कुमार पासी