कविता

मन में राम रहे

नर नारी के संकलन में।
केवल यही अभिराम रहे।।
वो किंचित ही ना सीता हो।
फिर भी मन में राम रहे।।

वो मंदोदरी सी नारी हो।
या केकई बन अभिशाप बने।।
वो राम बियोग में ना भी हो।
फिर भी मन में राम रहे।।

उर्मिला सा धैर्य हो थोड़ा।
कौसल्या सा त्याग बने।।
नीरा सा ना कष्ट सहे वो।
मणिकर्णिका सा साहस रहे।।

अवज्ञा का अनुमोदन है।
विरोध भी स्वीकार करे।।
सीता सी ना सौम्य हो।
फिर भी मन में राम रहे।।

अमित अनुरोध अंकित कर।
बस इतना ही कह पाऊंगा।।
राम खोजता हूं हृदय में।
तब ही सीता पाऊंगा।।

  • उत्कर्ष तिवारी