मन्दिर निर्माण-रवीश क्यों परेशान

चुकी 1857 में लोकतंत्र या न्याय प्रणाली विकसित नही थी तो क्या उस समय के अनैतिक कार्यो को आज मान्यता दे दें जिसप्रकार हिन्दू निर्मानास्थल पर मस्जिद बनी उससे स्पस्ट है कि हिन्दू इमारत,”जो कि ASI कहती है कि मंदिर हो सकता है” को गिरा देना कानूनी था और 1992 में एक लोकतांत्रिक सरकार थी इसलिए हड़पी गई जमीन पर हिन्दू अपना दावा नही कर सकता जबकि हिन्दू बहुसंख्यक समाज बहुत पहले से इसे श्री राम जन्म भूमि मानता रहा है, रवीश कुमार जी आज की पीढ़ी भी धर्म को लेकर काफी संवेदनशील है, कुछ लोग आज भी सर्वाहारी या सर्वाभोगी होने को पाप मानती है आप सर्वाहारी या सर्वाभोगी हो सकते है ! आप के लिए नर और मादा का विचार मनुष्य तक विस्तृत हो सकता है ! किंतु आज भी बहुत लोग अपने जीवन को आदर्श और मूल्यों पर जीते हैं जो आदर्श श्री राम ने माता सीता ने इस भूभाग पर स्थापित किया जिस आदर्श को गांधी ने जिया देश के अधिकांश लोग इससे प्रभावित है और यही भारत देश की सुंदरता है आप के लिए भोग,विलास,सर्वाहारी, सर्वसम्भोगी होना और भौतिक शारीरिक सुख के लिए पशु समान व्यवहार वामपंथी होने के आदर्श प्रमाण हो सकते है ! पर देश की संस्कृति ऐसी नही है, हम राम,महावीर और बुद्ध को अपना आदर्श मानते है. गांधी के जीवन को साधारण मानुष का महान आत्मा की ओर जाने का सबसे अच्छा उदाहरण है. हम माओ और लेनिन के विचारों से अंश भर भी सहमत नही जो आज माओवाद,नक्सलवाद के निर्मम स्वरूप में बदल चुका है, जबकि गांधीवादी या सन्यासी होने को भारत ही नही पूरा विश्व सराहता है ।

निर्णय वर्तमान को देख कर ही नही अतीत को देख कर भी आया है जहाँ औरंगजेब तैमूर जैसे आतातायियों को इतिहास लिखित रूप से मन्दिर तोड़ने वाला और विश्वविद्यालय जैसे नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने वाला बताया गया है ।

वहीं ह्वेनसांग जो सातवी सदी में भारत आया कि विवरण में भारत वैभव और आदर्श जीवन जीने का उत्तम उदाहरण माना गया है। उस काल को स्वर्ण काल भी कहते हैं । जाहिर है आज जब अताताई भारत पर अपना अमेट काले धब्बे छोड़ गए हैं उसे हम ह्वेनसांग,इतसिग जैसे चीनी यात्रियों के सुंदर भारत के अहिंसक और शांतिप्रिय होने के विवरण से तथा अपने पराक्रम से धोने का हर सम्भव प्रयास करेंगे ,बिना इस बात की परवाह किये कि यह वर्तमान कानूनी मूल्यों के अनुकूल है अथवा नही . किन्तु भारतीय विरासत और संस्कृति के मूल्य हमारे लिए उतने ही महत्वपूर्ण है और बाबरी मस्जिद गिरा कर भारत के लोगो ने अपनी संस्कृति पर लगा बदनुमा दाग धोने का ही कार्य किया है । जिसे अताताई बाबर के सेना पति मीर बाकी ने बनवाया था और निश्चित है कि पहले से मौजूद प्राचीन भारतीय इमारत जो कि मंदिर हो सकता है को तोड़ कर बनाया गया था , जिसकी इजाजत इश्लाम भी नही देता कि किसी के पैतृक ऐतिहासिक निर्माण को तोड़कर मस्जिद बनाया जाय । यदि आप इस निर्माण को कानूनी मानते हैं तो हम इसकी अवज्ञा को सहर्ष स्वीकारते है । अगर आप इक्विटी और जस्टिश की बात करतें है तो उन देशों को मत भूलिए जहां किसी अन्य समुदाय का प्रवेश पर ही निषेद है जैसे मैक्का-मदीना में कोई गैर मुस्लिम नही जा सकता वैटिकन सिटी में कोई गैर क्रिश्चियन नही घुस सकता और हमारे देश में अयोध्या,काशी,मथुरा आदि तीर्थस्थलों पर जाने पर किसी को रोका नही जाता न ही अपने धर्म के अनुकूल व्यवहार करने से ही रोका जा सकता है ।

अब इतना सिर मत चढ़ जाईये कि हम अपने देवो की जन्मभूमि से अपने अधिकार छोड़ दें । हम ऐसा नही करेंगे और ऐसा न करने से औरंगजेब और वामपंथी पीढ़ी को अतिसार की बीमारी हो जाती है और यदि ऐसा होता है तो यह आप की समस्या है इसका इलाज करवाएं और आस पास गन्दगी न फैलाये जिससे आप के फैलाये अतिसार से दूसरे लोग प्रभावित हो और एक दिन आप को ही कूट बैठे, क्योंकि अतिसार के संदर्भ में भी देश में कोई कानून नही है । रही बात इक्विटी आदि जैसे शब्दों की तो भारत भूमि पर आप की उपस्थिति ही हमारी इक्विटी और नर्म हृदय होने का सबूत है। नही तो तुम्हे भी वही उसी कचरे में फेंक दिया जाता जहां से बाहर निकलने के बाद अमेरिका जस्टिश के तहत कुत्ते की मौत मारती है ।

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