हाँथी जी की शादी

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हाँथी जी की शादी थी,
दिन महज बचे थे चार|
दरजी ना कर पाया था,
उनके कपड़े तैयार|

बीमारी से दरज़ी की,
माता जी थीं बेहाल|
ऊनकी दवा कराने दर्ज़ी
चला  गया भोपाल|

बिना सूट के कैसे होगी,
शादी,गज घबराया|
सभी जानवरों को उसने,
रो रो कर हाल  सुनाया|

बड़े बुज़ुर्गों ने आपस में,
सहमति एक बनाई|
नये तरीके से सज कर,
जायेंगे हाथी भाई|

सभी जानवरों ने हाथी को,
पत्तों से ढकवाया|
रंग बिरंगे फूल सजा कर,
दूल्हा    उसे बनाया|

हाथी जी की सुंदर वरदी,
हथिनी जी को भाई|
दौड़ लगा कर दूल्हे जी को,
वरमाला पहनाई|

रुद्र श्रीवास्तव‌

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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