भारतीय मुक्केबाजी की पहचान हैं मैरी कॉम

एशिया की सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट बनी मैरी कॉम

योगेश कुमार गोयल

      भारत की ओलम्पिक पदक विजेता चर्चित महिला मुक्केबाज एमसी मैरी कॉम (मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम) को हाल ही में एशिया की सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट का खिताब मिला है। 36 वर्षीया मैरी कॉम को यह पुरस्कार 29 अगस्त को ‘एशियन स्पोर्ट्स राइटर्स यूनियन’ (एआईपीएस एशिया) द्वारा आयोजित एशिया के पहले पुरस्कार समारोह में प्रदान किया गया। 1978 में अस्तित्व में आई एशियन स्पोर्ट्स राइटर्स यूनियन द्वारा पहली बार ये पुरस्कार दिए गए, जिसका लक्ष्य एशियाई एथलीटों के प्रदर्शन को मान्यता देना और उन्हें सम्मानित करना है। मैरी कॉम विश्व की ऐसी एकमात्र महिला मुक्केबाज हैं, जिन्होंने विश्व चैम्पियनशिप में अभी तक सात पदक जीते हैं और वह छह बार की विश्व चैम्पियन भी रह चुकी हैं। पिछला स्वर्ण पदक उन्होंने 24 नवम्बर 2018 को नई दिल्ली में आईबा (एआईबीए) विश्व चैम्पियनशिप के फाइनल में अपने से 13 वर्ष छोटी यूक्रेन की सना ओखोटा को परास्त कर जीता था। वह 2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018 में विश्व चैम्पियनशिप जीत चुकी हैं जबकि 2001 में उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा था। उससे पहले मैरी कॉम और आयरलैंड की केटी टेलर के नाम विश्व चैम्पियनशिप में पांच-पांच स्वर्ण पदक का रिकॉर्ड था लेकिन केटी प्रोफैशनल बॉक्सर बन जाने के कारण आईबा विश्व चैम्पियनशिप में शामिल नहीं हुई थी। विश्व चैम्पियन में छठा स्वर्ण जीतकर मैरी कॉम ने क्यूबा के महान् मुक्केबाज माने जाते रहे फेलिक्स सेवोन के उस रिकॉर्ड की भी बराबरी की थी, जो उन्होंने विश्व चैम्पियनशिप में 6 स्वर्ण और एक रजत जीतकर कायम किया था।

      मैरी कॉम ने 28 जुलाई 2019 को इंडोनेशिया में 23वें प्रेसिडेंट्स कप मुक्केबाजी टूर्नामेंट में आस्ट्रेलिया की एप्रिल फ्रैंक्स को 5-0 से करारी शिकस्त देते हुए महिलाओं के 51 किलोग्राम भार वर्ग में गोल्ड मैडल जीतकर भी देश को गौरवान्वित किया था। स्वर्ण जीतने के बाद उन्होंने ट्विटर पर लिखा था, ‘‘प्रेसिडेंट्स कप इंडोनेशिया में यह गोल्ड मैडल मेरे लिए और देश के लिए है, जिसे जीतने का अर्थ है कि आपने औरों से अधिक मेहनत की है।’’ पिछले साल नवम्बर माह में विश्व चैम्पियन बनने से पहले मई 2018 में इंडिया ओपन में भी उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था।

      तीन बच्चों की मां का दायित्व बखूबी निभा रही सुपरमॉम मैरी कॉम ने गृहस्थ जीवन और पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए 35 साल की उम्र में 8 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद विश्व चैम्पियनशिप जीतकर साबित कर दिखाया था कि उनके इरादे इतनी गृहस्थ जिम्मेदारियों के बाद भी कितने बुलंद हैं और उनके पंच में अभी भी कितनी ताकत है। वैसे तो उनके मुक्कों का लोहा पूरी दुनिया मानती रही है किन्तु 2018 से पहले हुई विश्व चैम्पियनशिप में वह चोटग्रस्त होने के कारण हिस्सा नहंी ले सकी थी। वह 15 स्वर्ण, दो रजत और दो कांस्य पदकों के साथ अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में 19 पदक जीतकर मुक्केबाजी में दुनियाभर में भारत को गौरवान्वित कर चुकी हैं। दो वर्ष के अध्ययन प्रोत्साहन अवकाश के बाद वापसी करते हुए उन्होंने जब लगातार चौथी बार विश्व गैर-व्यावसायिक बॉक्सिंग में स्वर्ण जीता था, तब उनकी इस विराट उपलब्धि से प्रभावित होकर एआईबीए ने उन्हें मैग्नीफिसेंट मैरी (प्रतापी मैरी) का सम्बोधन दिया था। विश्व पटल पर मुक्केबाजी में भारत का नाम रोशन करने के लिए मैरी कॉम को भारत सरकार द्वारा 2003 में ‘अर्जुन पुरस्कार’, 2006 में ‘पद्मश्री’, 2009 में सर्वोच्च खेल सम्मान ‘राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार’ तथा 2013 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित जा चुका है। 2014 में मैरी कॉम के जीवन पर आधारित फिल्म ‘मैरी कॉम’ भी प्रदर्शित हो चुकी है, जिसमें बॉलीवुड की सुपरस्टार प्रियंका चोपड़ा ने मैरी कॉम का किरदार निभाया था।

      मैरी कॉम के अब तक के बेहतरीन प्रदर्शन पर नजर डालें तो उन्होंने 2001 में पहली बार महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप जीती थी, जिसमें उन्होंने रजत पदक हासिल किया था। उसके बाद 2002 में आईबा वर्ल्ड वुमेन्स सीनियर बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2003 में एशियन महिला चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2004 में ताईवान में आयोजित एशियन महिला चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2005 तथा 2006 में आईबा महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2008 में निंग्बो (चीन) में विश्व महिला मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था। 2009 में हनाई (वियतनाम) में एशियन इंडोर गेम्स में स्वर्ण, 2010 में ब्रिजटाउन (बारबाडोस) में विश्व महिला एमेच्योर बॉक्सिंग चैम्पियनशिप तथा अस्ताना (कजाकिस्तान) में स्वर्ण, 2011 में हाइकू (चीन) में एशियन वुमेन्स कप में स्वर्ण, 2012 में उलानबटोर (मंगोलिया) में एशियन वुमेन्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2014 में इंचियोन (दक्षिण कोरिया) में एशियाई खेलों में स्वर्ण, 2017 में हू चेई मिन्ह (वियतनाम) में एशियन वुमेन्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2018 में गोल्डकोस्ट (आस्ट्रेलिया) में कॉमनवैल्थ खेलों में स्वर्ण और 2018 में नई दिल्ली में आईबा महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर मैरी कॉम ने अनोखा इतिहास रचा है। 2010 के एशियाई खेलों तथा 2012 के लंदन ओलम्पिक में मैरी कॉम ने कांस्य पदक जीता था।

      1 मार्च 1983 को मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में एक गांव में एक गरीब किसान के घर जन्मी मैरी कॉम का आरम्भिक जीवन संघर्षों और अभावों में बीता। ऐसे माहौल में उनके लिए खेलों में रूचि के बावजूद परिवार के कमजोर आर्थिक हालातों के चलते प्रोफैशनल ट्रेनिंग के ख्वाब संजोना बेहद मुश्किल था। प्राथमिक शिक्षा लोकटक क्रिश्चियन मॉडल स्कूल और सेंट हेवियर स्कूल से पूरी करने के बाद मैरी आगे की पढ़ाई के लिए इम्फाल के आदिमजाति हाई स्कूल गई किन्तु परीक्षा में फेल होने के बाद स्कूल छोड़ दिया और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय से परीक्षा दी। 17 साल की उम्र में जब एक रिक्शेवाले ने उनके साथ छेड़छाड़ की कोशिश की थी तो मैरी ने अपने मुक्के के पंच से उसे लहूलुहान कर दिया था। मैरी कॉम की शादी ओन्लर कॉम के साथ हुई थी और उनके जुड़वां बच्चे हैं।

      मुक्केबाजी में आने से पहले वह एक एथलीट थी और उनके मन में बॉक्सिंग के लिए जुनून उस वक्त पैदा हुआ, जब उन्होंने 1999 में खुमान लम्पक स्पोर्ट्स कॉम्पलैक्स में कुछ लड़कों के साथ 4-5 लड़कियों को भी बॉक्सिंग रिंग में बॉक्सिंग के दांव-पेंच आजमाते देखा। उस वक्त उन्हें अहसास हुआ कि अगर वे लड़कियां बॉक्सिंग कर सकती है तो फिर वह क्यों नहीं? अगले ही दिन वह भी बॉक्सिंग के रिंग में पहुंच गई और पहले ही दिन के अभ्यास के दौरान मैरी के मुक्कों से एक लड़का और दो लड़की रिंग में घायल हो गए। उसी दौरान वहां मौजूद कोच की नजर मैरी कॉम पर पड़ी, जिसने उन्हें बॉक्सिंग खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। बस, यहीं से मैरी कॉम ने बॉक्सिंग में ही अपना कैरियर बनाने की ठान ली। हालांकि उनके पिता उनके बॉक्सिंग में प्रैक्टिस के फैसले के सख्त खिलाफ थे क्योंकि पिता का मानना था कि बॉक्सिंग का खेल महिलाओं के लिए नहीं है किन्तु मैरी कॉम ने हार नहीं मानी और अपनी लग्न, जज्बे तथा कड़ी मेहनत के बल पर वह मुकाम हासिल कर दिखाया, जिसकी मैरी कॉम जैसी कठिन परिस्थितियों में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। फिलहाल वह गरीब बच्चों को बॉक्सिंग का प्रशिक्षण देने के लिए एक बॉक्सिंग एकेडमी भी चला रही हैं। बहरहाल, छह बार विश्व चैम्पियनशिप जीतकर विश्व रिकॉर्ड बना चुकी और एशिया की सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट का खिताब अपने नाम कर चुकी मैरी कॉम का इरादा अब 2020 के टोक्यो ओलिम्पक में भी रिकॉर्ड कायम करने का है। लंदन ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाली मैरी कॉम से अब टोक्यो ओलम्पिक में भी भारत को बड़ी उम्मीदें रहेंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि ओलम्पिक में भी उनके मुक्कों का लोहा पूरी दुनिया मानेगी। कयास लगाए जा रहे हैं कि टोक्यो ओलम्पिक के बाद मैरी कॉम बॉक्सिंग से संन्यास ले सकती हैं।

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